अब अमरनाथ यात्रा के दिनों में कटौती के आदेश, केवल ३९ दिन की अनुमति

कश्मीर में हिन्दू हित दमन अनवरत जारी है | अब यूपीए की केंद्र
सरकार द्वारा नियुक्त जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने अमरनाथ यात्रा के
दिनों में और कटौती करने के आदेश दे दिए हैं | पहले ये यात्रा ६०
दिनों के लिए खुली रहती थी | गत वर्ष राज्यपाल एन एन वोहरा ने इस
यात्रा को ६० दिन से घटा कर ४५ दिन करने के आदेश दिए थे और अब
उन्होंने साल में केवल ३९ दिन हिन्दुओं को अमरनाथ यात्रा की अनुमति
देने के आदेश दे दिए हैं | ज्ञातव्य है कि ये वही वोहरा हैं जिन्होंने
केंद्र सरकार द्वारा २००८ में राज्यपाल नियुक्त किये जाने के बाद अपने
पहले निर्णय में हिन्दुओं को दी गयी ९९ एकड़ भूमि वापस ले ली थी
क्योंकि कश्मीरी मुस्लिम उसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे | उससे
पहले अमरनाथ यात्रियों की सुविधा के लिए ये भूमि अमरनाथ श्राइन बोर्ड
को दी गयी थी |
बोर्ड स्वयं राज्यपाल के ही अंतर्गत आता है | प्रदर्शनकारियों का तर्क
था कि मुस्लिम बहुल राज्य में गैर-कश्मीरियों को भूमि खरीदने की
अनुमति नहीं है क्योंकि इससे "जनसँख्या संतुलन बिगड़ सकता है" | ये
बात अलग है कि लाखों कश्मीरी पंडितों को बलात कश्मीर से खदेड़ने वाले
कश्मीरी बहुसंख्यकों को तब जनसँख्या संतुलन की याद नहीं आई थी जब
कश्मीर बनेगा पाकिस्तान के नारे वहाँ की मस्जिदों से लगाए जाते थे
| राज्यपाल वोहरा भारत सरकार द्वारा अलगाववादियों से बातचीत के
लिए बनायीं गयी मध्यस्थ समिति के भी सदस्य हैं | इस समिति ने कश्मीर
को और अधिक स्वायत्तता देने की संस्तुति कर के भारत से अलग करने की
जमीन पहले ही तैयार कर दी है |
अब राज्यपाल के आदेश के अनुसार यात्रा २५ जून से शुरू होगी और
रक्षाबंधन के दिन २ अगस्त को समाप्त होगी | विश्व हिन्दू परिषद् ने
राज्यपाल के इस निर्णय का प्रखर विरोध किया है और यात्रा को दो महीने
चलाने की बात पर कोई समझौता न करने की बात की है | अमरनाथ संघर्ष
समिति के अध्यक्ष ब्रिगेडियर सुचेत सिंह ने भी हिन्दू हित के लिए लड़ने
के लिए कमर कस ली है | यहाँ यह बता देने योग्य है कि हुर्रियत
के पाकिस्तान परस्त नेता सैय्यद शाह गिलानी ने अमरनाथ यात्रा को
केवल १५ दिन तक सीमित करने के लिए मोर्चा खोला हुआ है |
इस सम्बन्ध में विचारणीय प्रश्न ये भी है कि जबकि किसी भी अल्पसंख्यक
संस्थान (यहाँ तक कि शैक्षिक संस्थान भी) पर सरकारी नियंत्रण नहीं
रहता है जिसका लाभ उठा कर वे मनमानी कर सकते हैं जिसका एक उदहारण गत
दिनों में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामने आया था जहां महिलाओं
को पुस्तकालय में जाने की अनुमति नहीं दी गयी थी | वही दूसरी ओर
हिन्दुओं के धार्मिक संस्थान कभी भी सरकारी नियंत्रण में लिए जा सकते
हैं जिस प्रकार अमरनाथ श्राइन बोर्ड को सरकारी नियंत्रण में ले लिया
गया है |
Share Your View via Facebook
top trend
-
विद्यालयों से लेकर न्यायालयों तक अंग्रेजी भाषा की गुलामी : भारत का सांस्कृतिक पतन
-
अन्ना फिर बोले, 'प्रशांत भूषण को हटाया जा सकता है
16 Oct 2011, 0826 hrs IST || नई दिल्ली ।। अन्ना हजारे और उनकी टीम के अहम सदस्यों के बीच मतभेदों की खाई गहरी होती दिख रही ह..
-
चिदंबरम चाहते तो नहीं होता 2G घोटाला, आवंटन के दौरान इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने में रुकावट डाली
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गृहमंत्री पी. चिदंबरम बुरी तरह घिरते दिख रहे हैं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की ओर से 25 मार्च 2..
-
बाघा जतिन के १४० वें जन्मदिवस पर शत् शत् नमन : राष्ट्र वंदना
बाघा जतिन ( ०७ दिसम्बर, १८७९ - १० सितम्बर , १९१५) जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १९७९ ईसवी में हुआ था। पाँ..
-
मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक मानते हैं राजनीतिक दल
देश की राजनीति के कई चेहरे हैं। यहां हर फैसले जरूरत के हिसाब से नहीं चुनाव की बिसात पर लिए जाते हैं। कमोबेश ऐसी ही कुछ हकी..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)