दिल्ली. ऐसे समय जब खुफिया एजेंसियां दिल्ली धमाकों के बाद मिल रहे एक के बाद एक ईमेलों से हलकान हैं, मनमोहन सिंह सोनिया गांध..
राहुल गाँधी जितनी फंडिंग नहीं कर रहे हैं वरुण गाँधी, मीडिया से दूर

यह तो सभी जानते हैं कि वरुण गांधी तब से चक्कर काट रहे हैं जब
राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कोई अभियान शुरू नहीं किया था। वरुण
स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे परन्तु अपने उम्मेदवार को लड़ा रहे हैं।
अपने लोकसभा क्षेत्र पीलीभीत के चार विधानसभा क्षेत्रों में वरुण
गांधी गांव-गांव जाकर वोट मांग रहे हैं। सुबह से शाम तक वे छोटी-बड़ी
25-26 सभाओं को संबोधित करते हैं। वे गरीब लोगों की बेटियों की शादी
कराते हैं। कहते हैं - यह बहुत ही पुण्य का काम है। सांसद बनने के बाद
पीलीभीत के हर गांव में सात-आठ लोगों की बेटियों की शादी तो करा ही
चुका हूं। अपने पैसे से।
वे भाषण नहीं देते। मतदाताओं से बातचीत करते हैं। सब ठीक-ठाक तो है?
बताइए क्या समस्याएं हैं? कभी हल्का सा मजाक कर लेते हैं - मेरा चुनाव
निशान क्या है - गोभी का फूल या कमल का फूल? दो मिनट का भाषण। फिर हाथ
उठवा कर अपने प्रत्याशी को जिताने का वादा लेना। बरखेड़ा के अधिकतर
गांवों को जोडऩे वाली सड़कें कच्ची हैं। नालियां बजबजा रही हैं। एक
गांव में लोग वरुण से सड़क की मांग करते हैं। वे कहते हैं सड़क बनवाना
मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हां, सोलर लाइटें ले लो। मैं
पांच-छ: सोलर लाइटें लगवा दूंगा। आपका गांव जगमगाएगा। थोड़ा रुककर
कहते हैं कि सड़क के लिए भी जिलाधिकारी से बात कर लूंगा। आपने इतने
ज्यादा वोटों से जिताया तो मेरी जिम्मेदारी है कि आपकी सभी जरूरतें
पूरी करूं।
ज्ञातव्य है कि वे लगभग 3 लाख वोटों से जीते थे। वरुण स्वयं कहते हैं
- 'प्रवक्तानंद का यहां एक भी वोट नहीं है। यह समझिए कि मैं ही लड़
रहा हूं।' तो उन्हें टिकट ही क्यों दिया? 'बस उन्होंने मांगा और मैं
मना नहीं कर पाया।' प्रवक्तानंद के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर
वरुण के मामा वीएम सिंह लड़ रहे हैं। बसपा से वर्तमान विधायक अरशद
खान, सपा से हेमराज वर्मा और कांग्रेस जोगिंदर सिंह। वीएम मेनका गांधी
के ममेरे भाई हैं। 1993 में पूरनपुर से जनता दल के विधायक थे। उसके
बाद से लगातार लड़े और हारे। पिछला लोकसभा चुनाव वरुण के खिलाफ
कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। टिकट बंटवारे को लेकर प्रदेश नेतृत्व से
मतभेद हुए और पार्टी छोड़ दी।
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