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बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा... मुस्लिम तुष्टीकरण एवं वामपंथी षड़यंत्र

हाल ही में बंगाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ित हिंदू परिवारों और इस हिंसा में वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस की भूमिका पर हिंदू समहति के अध्यक्ष और समाज सेवी तपन घोष से बात की आई.बी.टी.एल टीम ने और जाने वहाँ के हालात ...
तपन जी पश्चिम बंगाल में इस समय जो सांप्रदायिक हिंसा हो रही है, जिसके विषय में पूरा देश अमूमन अनजान है, उसके बारे में आप हमें क्या जानकारी दे सकते हैं?
सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहता हूँ कि अभी-अभी 19 फरवरी को जिन 4 गाँवों में हिंसा हुई उसमें 200 से ज्यादा हिंदू परिवारों के घरों को जलाया गया। ये केवल एकमात्र घटना नहीं है। ऐसी घटना साल में 4-5 निश्चित स्थानों पर होती ही रहती हैं। अभी पिछले साल 14 मई को उसी दक्षिण 24 परगना जिले के तारनगर और रूपनगर दो गाँवों में जमकर हिंसा हुई और हिंदू परिवारों के घरों को मुस्लिम दंगाईयों ने जला दिया था। मैं स्वयं उन गांवों में गया और पीड़ितों के लिए राहत की व्यवस्था के इंतेजाम किए। दो साल पहले भी मुर्शिदाबाद के नावदा थाना में छाओपुर नामक गाँव में जमकर हिंसा हुई थी। इस गांव में भी हिंदू परिवारों को प्रताड़ित किया गया था। मुस्लिम दंगाईयों द्वारा पहले तो घरों में आग लगाई और इसके बाद एक हिंदू व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा तारानगर का भी कमोवेश यही हाल था। वहाँ महिलाओं पर भी बहुत अत्याचार हुआ था। इन घटनाओं से दो-ढ़ाई वर्ष पूर्व 2010 सितम्बर को उत्तरी 24 परगना जिले में तेगंगा नामक ब्लॉक के 8 गाँवों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं जहां मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में हिंदुओं के साथ वीभत्स अत्याचार हुए। उस समय बंगाल में सीपीएम की सरकार थी और अभी ममता बनर्जी की है। बंगाल की पूर्ववर्ती और तत्कालीन सरकारें ऐसी घटनाओं को हमेशा से दबाती आई हैं क्योंकि ये उनके हित में हैं। इसी से ये लोग अपनी राजनीति चमका रहे हैं। बंगाल की मीडिया भी बंगाल में लगातार बढ़ रही सांप्रदायिक हिंसा की खबरों को सामने नहीं लाने दे रही हैं। सरकार, प्रशासन और मीडिया की निष्क्रियता का ही नमूना है कि 19 तारीख को कलकत्ता से मात्र 60 किमी की दूरी पर ही कैनिंग थाने के 4 गांवों में पहले हिंदू घरों को लूटा और फिर जलाया गया। पीड़ितों औऱ स्थानीय लोगों ने बताया कि कलकत्ता से करीब 150 ट्रकों में मुस्लिम दंगाई आए थे। किसी ने भी उन्हें नहीं रोका। दंगाइयों ने पहले जमकर लूटपाट की और जो भारी समान लूट नहीं सके जैसे धान आदि को पेट्रोल छिड़क के आग लगा दी गई। पुलिस मूक दर्शकों की तरह यह सब होता हुआ देखती रही।
In Eng: Bengal on verge of collpase due to Muslim Appeasement: Tapan Ghosh
क्या आपको नहीं लगता कि ये तात्कालिक प्रतिक्रिया न होकर एक षड़यंत्र था? कश्मीर की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी अलगाव वाद के बीज बोने की कोशिश की जा रही हो, ऐसी जानकारी मिल रही है कि आसाम के अलगाववादी सांसद बदरुद्दीन अजमल 3 दिन पहले बंगाल में थे?
नहीं। ये तात्कालिक प्रतिक्रिया बिलकुल नहीं है। ये उनकी एक लंबी योजना का भाग है। इसमें वो सरकार को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं और हिंदुओं को दहशत में डालना चाहते हैं ताकि हिंदू अपने गाँव छोड़ के भाग जाएँ। बदरुद्दीन अजमल के बारे में जो आपको जानकारी मिली है-ऐसी कोई जानकारी मेरे पास नहीं है। हाँ वो कलकत्ता आए थे अपनी पार्टी को लॉन्च करने के लिए। इसके अलावा वह बंगाल के एक सांप्रदायिक मुस्लिम नेता है, उनका नाम है पी डी चौधरी है। उन्होंने एक पार्टी बनाया था जिसे उन्होंने बदरुद्दीन अजमल की पार्टी में विलीन कर दिया था लेकिन इस घटना में जो तृणमूल और सीपीएम में जो बड़े मुस्लिम नेता हैं, ये उनका षड़यंत्र है। मेरे अनुसार इसमें उनकी संलिप्तता है।
लेकिन प्रदेश की मुख्यमंत्री साहिबा कहती हैं कि दंगे सिर्फ गुजरात में ही होते हैं। पश्चिम बंगाल में नहीं होते हैं?
इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। यहाँ बंगाल में साल में एक हज़ार बार दंगे होते हैं। उसे दबाया जाता है, छुपाया जाता रहा है। सब मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियां अपना कर वोट बैंक राजनीति कर रही है।
क्या आपको लगता है कि केंद्र में यूपीए और बंगाल में वामपंथियों के बाद अब तृणमूल भी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है?
ये तो एक अंधे को भी देखने को मिलेगा कि स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो स्वयं को सेकुलर कहती हैं, हिजाब पहन के नमाज़ पढ़ने जाती हैं। मुस्लिम छात्रों के लिए अलग से स्टाईपेंड, साइकिल, इमाम भत्ता और आदि सुविधाएं देती हैं, जो अन्य वर्गों को नहीं दी जा रही है। हाल ही में हुए जहरीली शराब कांड के पीछे भी घोरा बादशाह नाम का एक असामाजिक तत्व था, जो शराब का अवैध व्यापार कर रहा था। हादसे के बाद तृणमूल सरकार ने ऐसे असामाजिक तत्वों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, जो गैरकानूनी काम कर के मरे हैं। राज्य में ममता बनर्जी ने मुस्लिम तुष्टिकरण की सारी हदें पार कर दी हैं। ममता बनर्जी बिल्कुल वामपंथी पार्टियों के नक्शे कदम पर चल रही हैं।
भारतीय मीडिया गुजरात दंगों पर एक तरफा रिपोर्ट करती है और दूसरी तरफ बंगाल में लगातार हो रहे हिंदू विरोधी दंगों पर कोई कवरेज नहीं कर रही, क्या मीडिया के ये दोहरे मापदंड नहीं हैं
दरअसल मीडिया कवरेज नहीं करने का जो कारण दे रही है वह ये है कि इसको राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित करने से दंगे भड़क सकते हैं। मीडिया का कहना है कि वह रेगुलेशन के तहत कवरेज नहीं कर रही है। वैसे मीडिया से ये पूछना चाहिए कि रेगुलेशन किसकी है। प्रेस कॉन्सिल ऑफ इंडिया भारत सरकार के अंतर्गत काम कर रही है या पश्चिम बंगाल सरकार के मीडिया ये झूठ कह रही है, कोई रेगुलेशन नहीं आई है। घटना को रिपोर्ट करना आपका नैतिक उत्तरदायित्व है पर भारतीय मीडिया ने नहीं किया है। मीडिया भी मुसलमानों और तत्कालीन सरकार के प्रभाव में है। जो बंगाल का लीडिंग मीडिया संस्थान आनंद बाजार पत्रिका का रुख हमेशा से हिंदू विरोधी रहा है। वह बहुसंख्यक आबादी की आस्था पर लगातार कुठाराघात करने वाले देवी-देवता विरोधी लेख लिखते रहते हैं, लेकिन किसी मीडिया की मुस्लिम धर्म के विरूद्ध लिखने की हिम्मत नहीं होती है। बंगाल मीडिया उनकी लगातार गलत हरकतों को दबाता आया है। पश्चिम बंगाल आगे चल कर के इस्लामिक राज्य बनेगा तो आनंद बाजार जैसे संस्थानों की प्रमुख भूमिका होगी।
आप मीडिया द्वारा गुजरात दंगों पर की जा रही रिपोर्टिंग को कैसे देखते हैं? जहां लगातार बिना कोई फैसला आए ही नरेन्द्र मोदी को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा खलनायक बनाया जा रहा है
ये मीडिया को जो एड और फंड मिलते हैं यह मुस्लिम देशों (अरब देशों) और ईसाई मिशनरियों द्वारा दिए जा रहे हैं। दरअसल उन्हें आदेश ही यही मिले हैं कि हर तरफ से यह दिखाया जाए कि हिंदू दंगाई होते हैं और मोदी, आरएसएस सांप्रदायिक हैं। ये उनकी सोची समझी नीति है। उसकी समझ यह है कि मुसलमान तो कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता है। जबकि दूसरी तरफ मुसलमानों ने कलकत्ता पोर्ट एरिया के डिप्युटी कमिश्नर विनोद मेहता की बहुत ही नृशंसता के साथ हत्या कर दी थी। उसके बाद उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े किए, उनका लिंग काट लिया और शरीर को सिगरेट से दागा था। इतनी नृशंस हत्या के बाद भी इसको दबाया क्योंकि मुसलमान तो छोटा भाई है, भले ही छोटा भाई देश को तोड़े, आतंक फैलाए वह गलत नहीं है।
सभी मीडिया संस्थानों सहित उच्च शिक्षा तंत्र पर वामपंथियों का कब्ज़ा है और जब हम भावी मीडिया कर्मियों को देखते हैं तो ऐसा लगता है, कि उनका ब्रेनवाश कर वामपंथी बनाया जा रहा है। तो हम कैसे मीडिया से निष्पक्षता की अपेक्षा कर सकते हैं?
ये बात बिलकुल सही है कि आज वामपंथी सत्ता में नहीं होते हुए भी मीडिया और शिक्षा पर अपनी पूरी दखल रखते हैं। उसी तरफ बंगाल पर के बंगला भाषियों के मस्तिष्क पर भी वामपंथियों का ही कब्ज़ा है। वामपंथ की स्थापना हुई थी सोवियत संघ में। ये वामपंथी कभी भी देश को एक स्वस्थ नजरिय़ा नहीं दे पाए। हमेशा वामपंथी भारत विरोधी रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि बंगाल का दुर्भाग्य है कि वामपंथी यहां हावी है। इन्होंने बंगाल को कुछ दिया तो नहीं लेकिन एक बीमार राज्य जरूर बना दिया। राष्ट्रवादियों को इस दिशा में काम करने की जरुरत है। दुनिया में स्टालिन को राक्षस मान लिए जाने के बाद भी वामपंथी उसकी पूजा करते हैं। ये दरअसल एक ब्रेन-डेड कौम है। जब तक इसका कब्ज़ा रहेगा, तब तक कुछ सही नहीं होगा।
इसी से जुड़ा एक और प्रश्न है। क्या आपको लगता है कि वामपंथ पोषित शिक्षा प्रणाली ने देश की युवा पीढ़ी को उसकी जड़ों से काट दिया है?
देखिये वामपंथियों का दोष इसमें दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर तो मैकाले की शिक्षा पद्धति ने ये काम किया पर दुर्भाग्य से वामपंथियों का अंग्रेजों से गठबंधन हो गया क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ और ब्रिटेन एक साथ लड़े थे। भारत में भी वामपंथी अंग्रेजों के चमचे बन गए। आज़ादी के बाद नेहरू के सोवियत संघ के करीबी होने के कारण कांग्रेस ने शिक्षा प्रणाली के क्षेत्र में वामपंथियों को स्थापित किया। एक उदाहरण है कि नूरुल हसन वामपंथी पार्टी के कार्ड होल्डर थे, फिर भी उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया। आज़ादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत और वामपंथ तथा आज़ादी के बाद काँग्रेस और वामपंथ का जो 'अपवित्र गठबंधन' हुआ, उसने जानबूझकर देश की शिक्षा प्रणाली को भारतीत्व से दूर किया तथा राष्ट्रवाद और राष्ट्रतत्व को पाठ्यक्रम से निकाल अपने हिसाब से बदलाव किए। देश की शिक्षा प्रणाली में वामपंथियों का दखल देश के भविष्य को नष्ट कर रहा है। सीबीएसई पाठ्यक्रम में नए परिवर्तन इसका उदाहरण हैं।
क्या आपको लगता है कि भारत मे मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने और अलगाववाद को हवा देने मे वामपंथ की भूमिका है?
जी हाँ। ये लोग जानबूझकर इस्लामी कट्टरपंथ और अलगाववाद की अनदेखी करते हैं। दरअसल वामपंथियों की विचारधारा में भारत का हित कहीं नहीं है। इसी तरह 1947 में देश का बंटवारा इस्लामी अलगाववाद का उदाहरण है। क्योंकि इस्लाम की शिक्षाओं को आधार बनाकर मुस्लिम धर्म के लोग किसी अन्य धर्म-मत-पंथ के लोगों के साथ रहना अस्वीकार करते हैं। वे पूरे विश्व को दार-उल-इस्लाम बनाने के स्वप्न देखते हैं और इसी स्वप्न की वजह से देश का धार्मिक आधार पर बंटवारा हुआ। इसी बंटवारे के कारण हमारे लाखों हिन्दू भाई-बहन मारे गए। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और आज भी कई सालों बाद यही स्थिति है। क्या यह इतिहास नहीं है? किन्तु वामपंथियों ने इतिहास के इस काले अध्याय को छिपाकर एक फर्जी इतिहास तैयार किया है। जहां मुगलों द्वारा किए नरसंहारों और तलवार के बल पर हुए धर्म परिवर्तन जैसे अनेक प्रसंगों के स्थान पर मुगलों की गंगा-जमुनी तहज़ीब जैसे फर्जी प्रसंगों को इतिहास में स्थापित किया गया। बंगाल पहले से ही कट्टर सांप्रदायिक ताकतों का केन्द्र रहा है। आजादी के वक्त जब जस्टिस सुहरावर्दी मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कोलकाता में डाइरेक्ट एक्शन के जरिए दंगे करवाए थे। तब 16 अगस्त 1946 को बंगाल के कई वर्तमान वामपंथी उस समय साथ मौजूद थे और उन्होंने नारा दिया था कि "पहले पाकिस्तान देना पड़ेगा, उसके बाद भारत को आज़ाद करना है। " इसके बाद आज मुस्लिमों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 26% से अधिक हो गयी है वहीं हिन्दू सिमटकर 54% से कम रह गए हैं। बंगाल मे तो पूरे 34 साल तक वामपंथी शासन रहा। इन 34 सालों मे मुस्लिम कट्टरता को जो बढ़ावा मिला है। ताज़ा दंगे उसी का ज्वलंत उदाहरण हैं।
क्या आप आने वाले समय मे बंगाल मे किसी प्रकार का हिन्दू जागरण देख रहे हैं?
बंगाल मे केवल हिन्दू जागरण ही नहीं , हिन्दू धर्म का विस्फोरण होने वाला है। सभी राजनैतिक दल और मीडिया इसे किसी प्रकार दबा देने के प्रयास मे हैं। इसी प्रकार के अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के चलते एक बार हमारे बंगाल का विभाजन हो चुका है। लाखों लोग मारे गए, हिन्दू माता-बहनों के साथ बलात्कार हुआ, मंदिर तोड़े गए... किन्तु अब हिन्दू इन कुत्सित प्रयासों को दोबारा बर्दाश्त नहीं करेगा। पश्चिम बंगाल का वर्तमान राजनैतिक वर्ग मुस्लिम तुष्टीकरण के आगे बिछ चुका है। किन्तु ऐसे लोगों को सत्ता से उखाड़ फेंकना होगा और आने वाले समय में बंगाल में ऐसा हिन्दू जागृति का ऐसा विस्फोटीकरण होगा कि पूरी दुनिया देखेगी।
क्या आने वाले समय में हम पश्चिम बंगाल में कोई हिंदू पक्षवादी सरकार देख सकते हैं?
मैं फिलहाल पश्चिम बंगाल मे किसी हिंदूपक्षवादी सरकार के आने के विषय में आशा नहीं रखता क्योंकि वर्तमान मे पश्चिम बंगाल मे 30% मुस्लिम वोटर हैं और ये लोग जत्थाबंद होकर वोटिंग करते हैं। जैसे पिछले चुनावों में इन्होने सीपीएम के खिलाफ तृणमूल काँग्रेस या काँग्रेस को वोट दिया था। अतः सभी पार्टियाँ इन 30% जत्थाबंद वोटों को पाने के प्रयास में मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने मे लगी रहती हैं। यहाँ तक कि भाजपा, जिसे हिन्दूवादी पार्टी माना जाता है। वह भी इस तुष्टीकरण के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पाती। इसके अलावा लोकतन्त्र है तो कई पार्टियाँ भी हैं। हिंदुओं के वोट अलग-अलग पार्टियों में बंट जाते हैं। यदि हिन्दू हितों के संरक्षण के लिए सत्ता में आना है तो किसी राष्ट्रवादी पार्टी को आगे आकर सभी हिंदू वोटरों को एकत्र करना होगा।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हिन्दू संगठन कार्य कर रहे हैं। आपको नहीं लगता की इन सभी संगठनों मे राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय होना चाहिए
मैं देशभर के ऐसे कई संगठनों के संपर्क में हूँ जो क्षेत्रीय स्तर पर हिन्दू हितों के लिए कार्य कर रहे हैं और कह सकता हूँ कि उनमें से अधिकांश की कोई राष्ट्रीय आकांक्षा नहीं है। किन्तु ये सभी संगठन ईमानदारी से अपने-अपने छोटे कार्यक्षेत्र में काम कर रहे हैं और स्वयं ही राष्ट्रीय स्तर पर आना नहीं चाहते क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र की अपनी भिन्न समस्याएँ हैं, भिन्न चुनौतियाँ हैं। किन्तु यदि कोई बड़ा संगठन चाहे तो ये सभी राष्ट्रीय समन्वय के लिए उत्सुक हैं। किसी राष्ट्रीय स्तर के संगठन द्वारा इन सबके बीच समन्वय का कार्य किया जाना चाहिए। क्योंकि क्षेत्रीय संगठनों द्वारा उठाई गई आवाज़ पूरे देश तक नहीं पहुँच पाती है। यदि हिन्दू संगठनों में राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय होगा तो हिन्दू धर्म की प्रगति अवश्यंभावी है।
कई बार ऐसा महसूस होता है कि हिंदुत्ववादी गुटों को भी अपनी प्राथमिकताओं का ज्ञान नहीं है। क्योंकि कई दल कई बार अनावश्यक मुद्दों पर तो हंगामे करते हैं किन्तु हिन्दू हितों से जुड़े ठोस प्रश्नों की अनदेखी कर जाते हैं। इस विषय मे आपका क्या कहना है?
इस प्रश्न पर मैं आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। शायद आप बंगलुरू की पब वाली घटना का उल्लेख कर रहे हैं। देखिये वह घटना हो गयी और हिन्दू विरोधी मीडिया को मौका मिल गया हिन्दू संगठनों के विरोध का। वेलेन्टाइन डे का विरोध आदि श्री राम सेना की प्राथमिकता नहीं है। वह उनकी विचारधारा का एक हिस्सा भर है, प्राथमिकता नहीं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक संगठन की प्राथमिकताएँ भिन्न रहेंगी ही। इसलिए हमें एक साझा मंच बनाने की आवश्यकता है। इससे सभी हिन्दू धर्म संगठन मजबूत होकर राष्ट्रकार्य को आगे बढ़ा सकें।
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