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वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है। एक बार फिर से धर्म निरपेक्षता के नाम पर भारत माँ का, हमारे प्राणप्रिय राष्ट्र का घोर अपमान हुआ है। स्वाधीनता के महायज्ञ के उद्घोष.. लाखों अमर बलिदानियों के प्रेरणास्त्रोत हमारे राष्ट्रगीत वन्देमातरम का तिरस्कार.. इस कदर निरादर और हम चुप बैठने के तर्क खोज रहे हैं?? सहिष्णुता और धार्मिक स्वतन्त्रता की दुहाइयाँ दी जा रही हैं, यहाँ तक कि राष्ट्रगीत के अपमान को सही ठहराने की कोशिशें जारी हैं !!
सांसद शफीकउर्रहमान बर्क मजहब के नाम पर संसद की गरिमा को धता बताते हुए राष्ट्रगीत के समय वॉकआउट कर गए। एक धर्मनिरपेक्ष देश की संसद मे कैसा मजहब? बर्क साहब सांसद हैं, जो अपने क्षेत्र के सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उस वक़्त वे संसद मे थे, किसी मस्जिद मे नहीं। क्या उन्हे मिला हर एक वोट केवल मुस्लिम का है? और क्या उन्हे वोट देने वाला हर एक मुस्लिम वन्देमातरम विरोधी है? उत्तर है- नहीं! तो आखिर किस अधिकार से उन्होने राष्ट्रगीत का अपमान किया?
उम्मीद थी कि संसद, जो भारत की प्रतिनिधि सभा है, जिसके कंधों पर भारतीय स्वाभिमान की रक्षा का उत्तरदायित्व है, वह शफीकउर्रहमान बर्क को इस अक्षम्य कृत्य पर उन्हे अवश्य दंडित करेगी, भारतीय मुस्लिम संगठनों द्वारा इस्लाम की गलत छवि पेश करने के लिए बर्क के खिलाफ फतवा जारी किया जाएगा, भारत की जनता, विशेषतः भारतीय मुस्लिम बर्क के विरोध में खुलकर अपनी देशभक्ति की उद्घोषणा करेंगे। एक स्वर मे “वन्देमातरम” कहकर आसमान गुंजा देंगे ताकि मजहब के नाम पर देश का अपमान करने वाले थर्रा उठें क्योंकि इस्लाम और देशभक्ति में कोई विरोधाभास नहीं है। यदि ऐसा होता तो सभी मुस्लिम देशों के अपने ध्वज तथा राष्ट्रगान नहीं होते!
किन्तु हुआ ठीक उल्टा।
बर्क ‘साहब’ कैमरे के सामने सीना ताने वन्देमातरम का फिर-फिर अपमान करते फिर रहे हैं और संसद चुप है, सभी राजनैतिक दल चुप हैं, धार्मिक जमातें चुप हैं। शोर मचा रहे हैं तो बस छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी और इस्लाम का तनिक भी ज्ञान न रखने वाले कथित मजहबी लोग।
वन्देमातरम का आदर करने वाले मुस्लिम भाइयों तथा महान शहीद अशफाक़ उल्ला खान व पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम जैसे देशभक्ति के अनन्यतम उदाहरणों पर आधारित मेरी फेसबुक पोस्ट्स पर एक से एक इस्लामी धुरंधर आकर देशभक्त मुस्लिमों के खिलाफ ‘फतवे’ जारी करने लगे। उन्होने वन्देमातरम गाने वाले देशभक्त मुस्लिमों को ‘अज्ञानी, काफिर, भटके हुए’ आदि-आदि उपाधियाँ दे डालीं। हद तो तब हो गई जब इस्लाम के एक स्वघोषित ठेकेदार महान शहीद अशफाक उल्ला खान के प्रति अपमानजनक सम्बोधन पर उतर आए।
एक अन्य बुद्धिजीवी वन्देमातरम की खिलाफत के जोश में भारत के अस्तित्व पर ही सवाल उठाने लगे और राष्ट्रवादियों की ओर से करारा जवाब मिल जाने पर रोने-पीटने लगे कि इस देश में मुस्लिमों से देशभक्ति का प्रमाण मांगा जाता है! अब देश और देशभक्तों के इस अपमान को देशद्रोह ना कहें तो क्या कहें?
आप क्या चाहते हैं कि भारत माँ को डायन कहने के बावजूद हम आज़म खान से सवाल तक ना करें? कोई भारत के अस्तित्व पर सवाल उठाते रहें और देश चुपचाप बर्दाश्त करे क्योंकि वह मुसलमान हैं? गिलानी इस्लाम के नाम पर कश्मीर मे अलगाववाद को हवा दे और फिर भी हम उसे पुचकारें क्योंकि वह मुसलमान है? सिमी, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे दुर्दांत आतंकी संगठनों को खुली छूट दे दें क्योंकि वे मुसलमान हैं?
इसके विपरीत क्या आपने कभी खुले दिमाग से यह सोचा कि क्यों कोई भी कलाम साहब से जाकर उनकी देशभक्ति का प्रमाण नहीं मांगता? क्यों ए आर रहमान को ऑस्कर मिलने पर उनके मजहब का ख्याल किए बिना पूरा देश जश्न मे डूब जाता है? क्यों एक भारतीय सैनिक से कोई नहीं पूछता कि उसका मजहब क्या है? यूसूफ़ पठान जब भारत के लिए शतक जमाता है या ज़हीर खान जब विरोधी टीम को अपनी रिवर्स स्विंग पर नचाता है तो क्यों उन्हे सर पर उठाने मे भारतीय लोग कोई कसर नहीं छोडते?
मरणोपरांत परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद याद हैं आपको? उनका ज़िक्र आते ही हर एक भारतीय का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। तब यह सवाल नहीं पूछते आप?
प्रत्यक्ष को प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं होती और यहाँ कोई उपनाम से देशभक्त या देशद्रोही नहीं होता। अपने पूर्वाग्रहों को अपने ही पास रखें ! यदि अजहरुद्दीन फिक्सिंग करके भी मुस्लिम होने का रोना रोते हैं तो उन्हे मनोज प्रभाकर और अजय जडेजा के नाम नहीं भूलने चाहिए। यहाँ बर्क का विरोध हो रहा है तो देश के विरुद्ध बोलने पर प्रशांत भूषण को भी आलोचना (और जूते) झेलने पड़ते हैं।
अब यदि कोई कलाम साहब को ही ‘काफिर’ और उनकी देशभक्ति को हराम कहने पर उतर आए तो फिर वह दया का पात्र है। गर ये लोग शरीयत की ऐसी विकृत व्याख्या करने लगे तब तो कल को वे स्व॰ रफी साहब, शमशाद बेगम, नौशाद साहब, उस्ताद विलायत खान, ज़ाकिर हुसैन और तमाम विश्व-प्रसिद्ध संगीतज्ञों, ज़हीर खान और मुनाफ जैसे क्रिकेटरों, दिलीप कुमार और मधुबाला से लेकर इरफान जैसे फिल्म कलाकारों, रज़ा साहब जैसे चित्रकारों आदि को भी गैर-इस्लामी घोषित कर देंगे!
तब उनके पास बचेगा क्या?
केवल लादेन और मसूद अजहर जैसे आतंकवादी?
भारत मे इस्लाम के नाम पर दिन-ब-दिन भारत विरोध की आवाज़ें प्रखर हो रहीं हैं और इसका विपरीत प्रभाव भारतीय मुस्लिमों की छवि पर पड़ा है। किन्तु हमे पूरा भरोसा है कि भारत का मुसलमान राष्ट्रगीत का अपमान नहीं करेगा। मेरे इस विश्वास की वजह है मेरे मुस्लिम मित्र जिन्हे देश पर, राष्ट्रगीत पर गर्व है। मगर क्या करें? भारतीय मुसलमान तो मुस्लिमों मे भी अल्पसंख्यक हो चले हैं! बांग्लादेशियों ने ही तो कब्जा कर लिया है मदरसों से लेकर राजनीतिक पार्टियों तक मे! (यकीन ना हो तो राजस्थान के सीमावर्ती जिलों के छोटे-छोटे हजारों मदरसों का निरीक्षण कर लें जहां अधिकांश मौलवी बांग्लादेशी हैं) और बांग्लादेशियों से भारत भक्ति की उम्मीद बेमानी है। इन्ही लोगों की वजह से देश में विघटन की राजनीति जारी है
इसी विघटनकारी राजनीति की वजह से शफीकउर्रहमान बर्क को दंडित ना करने के बहाने खोजे जा रहे हैं जिनमे से एक बहाना यह भी है कि संविधान मे राष्ट्रगीत गाने की बाध्यता नहीं है, और नहीं गाने पर किसी को दंडित नहीं किया जा सकता।
माना कि वन्देमातरम गाने की बाध्यता नहीं है किन्तु राष्ट्र के प्रतीकों का अपमान करने पर सज़ा का पूर्ण प्रावधान है। बर्क पर 'राष्ट्रीय प्रतीको के अपमान' और 'संसद के अपमान' दोनों अभियोग पर कार्यवाई हो सकती है मगर हो नहीं रही क्योंकि छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को अपने वोट बैंक की फिक्र है। ये छद्म धर्म निरपेक्षता वादी लोग भारतीय मुस्लिमों पर इतना भी भरोसा नहीं करते कि बर्क को सज़ा देने पर उनकी तरफ से कोई विरोध नहीं होगा। भारतीय मुस्लिमों को पूरे देश के साथ ऐसे सिरफिरे धर्मान्धों के विरोध मे आगे आना ही चाहिए। हमे राष्ट्र तथा उसके प्रतीकों का अपमान करने वालों को कठोर दंड देना ही होगा क्योंकि आज ये राष्ट्रगीत का अपमान कर रहे हैं, कल राष्ट्र के अपमान पर उतर आएंगे। तमाम राजनेताओं के मौन के बीच... क्या एक भी नेता ऐसा नहीं जो देश के सम्मान की रक्षा कर पाये? राष्ट्र प्रतीक्षा में है... कोई साहस तो दिखाये!
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