जिस राजनीति को सारी गंदगी की जड़ बता रहे थे, अचानक उसी की ओर चल पड़ने के अन्ना के फैसले से बड़ी तादाद में उनके समर्थकों ..

स्वतंत्रता पूर्व भारत मे सरकारी समारोहों में ‘गाड सेव द किंग’ या ‘गाड सेव द क़्वीन’ गाया जाता था. पर्ंतु 15 अगस्त 1947 से उसका स्थान ‘जन-गण-मन-अधिनायक जय हे’ ने लिया. रातोंरात सभी सरकारी भवनो पर से ‘यूनियन जैक’ झंडा उतारकर तिरंगा झंडा लहरा दिया गया. भारत में स्वतंत्रता का जश्न मनाया गया. भारत को यह स्वतंत्रता लाखो स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की कीमत पर मिली थी. पहली बार भारत के लोगों ने आज़ादी का अर्थ समझा था. देश का संविधान बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी थी और 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया. किसी भी राष्ट्र के लिये राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और और राष्ट्रभाषा का बहुत महत्व होता है. इसी महत्ता के चलते देश का राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान तय हो गया परंतु बहुभाषी भारत मे राष्ट्रभाषा का चुनाव करने में बहुत समय लगा. देश का यह दुर्भाग्य ही है कि आज भी अपने देश की कोई राष्ट्रभाषा नही है. हिन्दी के प्रचलन के चलते हिन्दी को राजभाषा का दर्जा जरूर दे दिया गया था.
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा... क्रांतिकारियों के संघर्षो के कारण देश को स्वाधीनता मिली परंतु संविधान सभा का गठन स्वतंत्रता-पूर्व जुलाई, 1946 में ही हो गया था. 11 दिसम्बर 1946 को डा. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी सदस्य चुना गया. डा. कैलाश चन्द्र भाटिया ने एक लेख में लिखा है कि संविधान सभा की नियम समिति ने डा. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता मे 1946 में ही एक निर्णय ले लिया था कि संविधान सभा का कामकाज की हिन्दी या अंग्रेजी ही होगी और यदि कोई सदस्य अपनी मातृभाषा मे भाषण देना चाहे तो अध्यक्ष की अनुमति से वह अपनी मातृभाषा मे भाषण दे सकता है. फरवरी, 1948 में संविधान का जो प्रारूप प्रस्तुत किया गया उसमें राजभाषा के संबंध को उल्लेख नही था. परंतु कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी के अथक प्रयासों से 12,13,14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा मे राजभाषा के विषय पर चर्चा हुई और 14 सितम्बर 1949 को संविधान निर्मताओं ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में अपनाया. इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार देवनागरी लिपि मे लिखी गई हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप मे अंगीकार किया गया. हलाँकि संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार संविधान लागू होने से 15 वर्ष पश्चात तक अर्थात 25 जनवरी 1965 तक अंग्रेजी भाषा को संघ के सभी कार्यों के लिये अंग्रेजी भाषा मे करने की व्यवस्था की गई. साथ यह व्यवस्था भी की गई देश के महामहिम राष्ट्रपति यदि चाहें तो 15 वर्ष की अवधि पूर्व भी यह आदेश दे सकते है कि अंग्रेजी के साथ हिन्दी का भी प्रयोग किया जा सकता है.
हिन्दी और राष्ट्रपति के आदेश... राष्ट्रपति का पहला आदेश 27 मई 1952 को विधि-मंत्रालय की अधिसूचना के रूप में और भारत के राजपत्र में प्रकाशित हुआ. इस आदेश के अनुसार राज्यपालों, उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति अधिपत्रों को प्राधिकृत कर दिया गया. राष्ट्रपति का दूसरा आदेश 3 दिसम्बर 1955 को गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया जिसे संविधान (राजकीय प्रयोजनो के लिये हिन्दी भाषा) आदेश 1955’ के रूप में जाना जाता है. इस आदेश के अनुसार जनता से पत्र-व्यवहार, संसद और प्रशासनिक रिपोर्टें, राजकीय पत्रिकाएँ, सरकारी संकल्प, राजभाषा को अपनाने वाले राज्यों से पत्र-व्यवहार, संधिय़ाँ व करार जैसे प्रमुख क्रियाकलापों में हिन्दी को अपनाने के लिये कहा गया. इसी आदेश के परिणामस्वरूप विभिन्न मंत्रालयों में हिन्दी-अनुवादकों की नियुक्तियाँ शुरू हुई. उसके बाद राष्ट्रपति द्वारा कई आदेश जारी किये गये और 1963 में राजभाषा अधिनियम बना.
हिन्दी-प्रयोग में आशंकाएँ... हिन्दी-प्रयोग ने लोगों को कई आशंकाओं में डाल दिया. सैन्य-सेवा मे हिन्दी-प्रयोग से लोग सबसे ज्यादा आशंकित थे. उनका मानना था कि सेना के जवानो आदेश या उनके साथ वार्तालाप अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद कर कैसे उपयोग किया जाय. भाषा के कारण सैनिकों के मनोबलों और देश-सुरक्षा के साथ खिलवाड नही किया जा सकता. इसी प्रकार से हिन्दी-प्रयोग को लेकर लोगों के मन में बहुत सी आशंकाएँ रही, जिसका कारण लोग मुख्यतया दैनिक कार्यों के निमित्त हिन्दी मे शब्दों की कमी मानते थे. कुछ कमोबेश यही हालत विधि क्षेत्र की भी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के प्रारम्भिक वर्षों में न्यायालयों का अधिकतर कार्य फारसी भाषा में होता था. आज भी हम न्यायालयों के आदेशों मे हम फारसी भाषा का प्रभाव देख सकते हैं. 1836 तक आते-आते फारसी का उपयोग खत्म हो गया और उसका स्थान हिन्दी,अंग्रेजी और उर्दू ने ले लिया. 1950 में देशी रियासतों के भारत में विलय होने तक न्यायालयों का कामकाज़ प्रादेशिक भाषा मे ही होता था. ग्वालियर, पटियाला, बडौदा, जम्मू-कश्मीर हैदराबाद की रियासतें इसका प्रमुख उदाहरण हैं. इतना ही नही भारत की विशालता के चलते ही यहाँ पर कई भाषाई-राज्यों का भी गठन किया गया. और राज्यो को यह अधिकार दिया गया कि वे खुद तय करें कि उनकी राज्यभाषा क्या होगी. सारी परिस्थितियों पर चर्चा के उपरांत यह तय किया गया कि सभी राज्य एक दूसरे राज्य व केन्द्र के साथ राजभाषा में ही पत्र-व्यवहार करें. परंतु यह देश की विडम्बना ही है कि सरकारी स्तर पर प्रयास करने के बावज़ूद आज भी राजभाषा सुचारू रूप से देश-स्तर पर संतोषजनक रूप से लागू नही है. आज भी अशिक्षित लोगों को न्यायालय मे न्याय उनकी मातृभाषा में नही मिलता है.
पिछले दिनों कैट (केन्द्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण) से लेकर उच्च न्यायालय तक के दिये हुए फैसलों को पलटते हुए देश की सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दी मे आरोपपत्र पाने के अधिकार पर ऐसा ऐतिहासिक फैसला दिया जिसने देश के हिन्दी-प्रेमियों की दम तोडती आस पर संजीवनी-बूटी सा असर किया. जिसने आम-जन को अपनी मातृभाषा मे न्याय पाने अधिकार की माँग करने वालों लोगों में एक आस की अलख को जगाया. दरअसल यह मामला मुम्बई के एक नौसेना कर्मी मिथलेश का था, जिसे उच्चाधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार व उनका आदेश न मानने पर एक आरोपपत्र दिया गया था. नौसेना कर्मी ने हिन्दी भाषा मे आरोपपत्र की मांग की जिसे विभाग ने खारिज कर दिया. जिससे नौसेना कर्मी ने विभागीय जाँच मे भाग नही लिया. परिणामत: विभाग ने नौसेना कर्मचारी पर कार्यवाही कर सजा के रूप मे उसके वेतनमान मे कटौती कर दी. जिसे नौसेना कर्मचारी ने आरोपपत्र हिन्दी में न मिलने के कारण को आधार बनाते हुए विभागीय जाँच को रद्द करने की माँग की. स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात आज भी सर्वोच्च न्यायालय और अधिकांश उच्च न्यायालयों मे अपनी मातृभाषा मे आरोपी अपना पक्ष नही रख सकता. परिणामत: आरोपी को यह पता ही नही चल पाता कि उसके वकील माननीय न्यायाधीशों के समक्ष क्या तर्क कर रहें है. इसलिये आरोपी अपने आप को ठगा-सा महसूस करते है.
कहने को तो हिन्दी देश की राजभाषा है, परंतु आज भी प्रशासनिक व न्यायालय के कामकाज़ में अंग्रेजी का ही वर्चस्व है. देश की शीर्ष अदालत के फैसले के निहितार्थ यही है कि ऐसे मामलों में न्याय के लिये उसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए जिस भाषा को आरोपी समझता हो, ताकि कोई भी व्यक्ति तथ्यों को ठीक-ठाक समझकर अपना पक्ष रख सके. अब समय आ गया है कि अब राजभाषा अधिनियम की नये सिरे से समीक्षा की जाये क्योंकि किसी भी स्वतंत्र देश में मातृभाषा में अपना पक्ष रखना और जवाब मांगना किसी भी व्यक्ति का हक होता है.
Share Your View via Facebook
top trend
-
राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए इस्तेमाल किया गया : अन्ना समर्थक
-
आर्थिक दुर्दशा से मूर्ति और प्रेमजी हताश, 2004 से 2011 के दौरान सुधार नहीं : मॉर्गन स्टैनली रिसर्च
बेंगलुरु।। विपक्षी पार्टियां और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां के बाद देश के दिग्गज उद्योगपतियों ने भी यूपीए सरकार को आर..
-
राहुल ने गोद लिया गाँव, बीजेपी ने किया पालन पोषण
गरीबो का मसीहा बन कर घर घर जा कर मीडिया के माध्यम से गैर कांग्रेसी सरकारों को कोसने वाले कांग्रेसी युवराज (?) राहुल गाँध..
-
अन्ना ने कहा ६५ वर्ष बाद किसान आत्महत्या करते हैं, सरकार चिंतित है तो एफडीआइ से पहले उनका कुछ करे
जनलोकपाल बिल और भ्रष्टाचार विरोध की नई जंग छेड़ने का आह्वान कर चुके अन्ना हजारे ने सरकार के खिलाफ बुधवार को नया मोर्चा खोल..
-
सनसनीखेज खुलासा हाथ लगा अग्निवेश का ऑडियो-टेप, अग्निवेश सरकार के आदमी ...
बड़ी और बुरी खबर है. बड़ा खुलासा है. टीम अन्ना के मजबूत स्तंभ स्वामी अग्निवेश सरकार के पाले में खड़े हो गए हैं. यह साबित क..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
IBTL Gallery
-
-
Bollywood actor Lalia Khan's car seized in Delhi HC blast probe
-
Serious Corruption Charges on Arvind Kejriwal by Social Activist Niramla Sharma
-
After robotic arms, Scientists working on thought-controlled cursors : BrainGate
-
Gujarat's agriculture turnaround an eye opener for the entire nation: Dr. Kalam
-
Comments (Leave a Reply)