काले धन पर संसद में चली बहस कितनी सतही थी? इस बहस से यह पता नहीं चलता कि आखिर काला धन है क्या? हम किस धन को काला कहें और..
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...

वो भयभीत हैं,
अपने ही काले कारनामों के खुलने से,
अपने पापों के जगजाहिर हो जाने से,
अपने अपराधों के जवाब मांगे जाने से,
अपनी सत्ता के छिन जाने से,
अपनी ताकत के हीन हो जाने से,
अपने कुर्ते के काले धब्बों के दिखने से...
उन्हें धमक सुनाई दे रही है,
कोई कुर्सी से हटा देने वाला है,
कोई कुर्सी से उठने को कहने वाला है,
कोई कुर्सी को खींच देने वाला है...
उनपर कहने को कुछ नही बचा,
वो भागलपुर नही उठा सकते,
वो अयोध्या नही उठा सकते,
वो गुजरात नही उठा सकते,
वो मुजफ्फरनगर नही उठा सकते..
वो असहाय से हैं,
वो निरीह से हैं,
वो पंखकटे पक्षी से हैं..
लेकिन क्योंकि अभी वो सत्ता मे हैं,
उन्हें वो सत्ता दोबारा चाहिये,
इसलिये जिन्हें उन्होने दशको से लूटा,
दशकों तक पीटा,
दशकों तक जिनको दबाये रखा,
उनको वो सस्ती रोटी देने लगे हैं,
वो सस्ता अनाज देने लगे हैं,
वो मजदूरी देने लगे हैं...
कोई आ रहा है,
वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है,
वो सवाल पूछ रहा है,
वो जवाब मांग रहा है,
वो कमियां बता रहा है,
वो झूठ को नंगा कर रहा है,
वो नकाब नोच रहा है,
वो असली शक्ल दिखा रहा है...
अब क्या किया जाये,
कहां जाया जाये..
सांप्रदायिकता नही काम आ रही,
धर्मनिरपेक्षता नही काम आ रही,
भीख नही काम आ रही,
धमकी नही काम आ रही...
सत्ता का काल है? सत्ता की मृत्यु है? सत्ता का अंत है या उसका आरंभ है...
वो भाजपा है? वो संघ है? वो मोदी है?
किशोर बड़थ्वाल, लेखक को ट्विटर पर फॉलो करें ... twitter.com/kbarthwal
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