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सर्वोच्च न्यायालय का मुस्लिम आरक्षण पर लगी रोक तुरंत हटाने से इनकार, सरकार को लताड़ा

६५ साल पहले सत्ता पाने के लिए धर्म के आधार पर देश का बंटवारा
स्वीकार करने के बाद भी भारत की आजादी का सेहरा अकेले अपने सर बाँधने
वाली पार्टी आज सत्ता में बने रहने के लिए धर्म के नाम पर शिक्षा और
नौकरियों में आरक्षण देने के लिए कितनी तत्पर है, यह बताने की
आवश्यकता नहीं। लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण की खिचड़ी पक नहीं पा रही।
पहले जब ४.५ प्रतिशत आरक्षण की घोषणा केंद्र सरकार ने संविधान की
भावना को तार तार कर के चुनावों के ऐन पहले की, तो चुनाव आयोग ने उसे
लागू करने पर रोक लगा दी। उसी बीच आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
में याचिका दायर हो गयी और गत २८ मई को न्यायालय ने उसे
संविधान-विरोधी बताकर निरस्त कर दिया। लेकिन जब सामने २० करोड़
मुस्लिम समुदाय के वोटों की हड्डी दिख रही हो, तो रुका कैसे जाए।
नतीजा ये हुआ कि जिस सरकार को कोयले के ब्लॉक्स नीलामी के आधार पर
आवंटित करने के नीतिगत निर्णय लेने के बाद उसे लागू करने में ८ साल लग
गए, जिस सरकार को देश की सेनाओं के लिए हथियार खरीदने की फुर्सत नहीं,
और जिस सरकार को इतना भी समय नहीं मिलता कि न्यायालय के आदेश के
बावजूद गोदामों में पड़ा सड़ रहा अनाज भूखे मर रहे लोगों में बाँट
दिया जाए, वही सरकार उच्च न्यायालय का निर्णय आते ही २ सप्ताह के
अन्दर अन्दर सर्वोच्च न्यायालय तक दौड़ गयी।
गुहार ये कि मामले की सुनवाई तो जब हो तो हो, परन्तु तब तक आंध्र उच्च
न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी जाए - यानी कि मजहबी आरक्षण को भले
असंवैधानिक बताया गया हो, परन्तु अभी तो आरक्षण दे दो, और तब तक देते
रहो जब तक सर्वोच्च न्यायालय इसे गलत न मान ले। पर सर्वोच्च न्यायालय
ने इस आशा पर भी पानी फेर दिया। उलटे सरकार को फटकार और लगा दी कि
आपने इतने गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को इतने हलके में ले रखा है और
पिछड़े वर्ग के कोटे को आप ऐसे ही काट रहे हो, कल को आप नया कोटा बनाने
लगोगे। न्यायालय ने बुधवार को अगली सुनवाई निर्धारित की है।
संभावना यही है कि असंवैधानिक होने के कारण इसे नकार दिया जायेगा
लेकिन यदि मजहबी आधार पर बंटवारा (अभी तो केवल शिक्षा और नौकरियों का)
करवाने की कांग्रेसी जिद कायम रही तो संभवतः वो न्यायालय का निर्णय
संसद में कानून बनवा कर उलटने की इंदिरा और राजीव की परंपरा का अनुकरण
करें और आरक्षण देने का बिल ले आयें। ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि
भाजपा-शिवसेना जैसी इक्का-दुक्का 'सांप्रदायिक' ताकतों को छोड़ कर बाकी
सेकुलरिस्म के ठेकेदार बाकी राजनीतिक दल इसका विरोध करते हैं या
मुस्लिम वोटों का मुर्ग-मस्सल्लम खाने की चाहत में भारत माँ को एक बार
फिर हलाल कर डालते हैं।

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