कहा जाता हैं कि भारत विविधताओं का देश है। बात सच भी है। संस्कृति की समरसता के छत्र में वैविध्य की वाटिका यहाँ सुरम्य दृष..
दोपहर की शादी में थ्री पीस सूट पहनना स्वीकार, भले ही चर्म रोग क्योँ न हो : भारत का सांस्कृतिक पतन

अंग्रेजी कोई बड़ी भाषा नहीं है, केवल १४ देशों में चलती है
जो गुलाम रहे हैं से आगे पढ़ें : एक बहुत बड़ा विकार हमारी भूषा में
आया है। अमेरिका, यूरोप आदि के बहुताधिक भागो में ठंड अधिक पड़ती है कई
कई महीने हिमपात होता रहता है इसलिए उनकी भूषा का विकास उसके अनुकूल
है चुस्त कपड़े, शरीर से चिपके हुए जो अधिक गर्मी दे, कोट भी ठंड से
बचाव हेतु, टाई शीत से गर्दन के बचाव हेतु।
भारत में भूषा का विकास भी, हमारी जलवायु एवं आवश्यक्ता के अनुरूप
विकसित हुआ है। धोती, लुंगी लगभग एक ही जैसे वस्त्र होते है मात्र
पहनने का ढंग अलग अलग होता है एवं यह ढंग अलग अलग प्रान्तों का उनकी
जलवायु के अनुकूल है। बिना सिलाई वाले वस्त्रों को बहुत उत्तम माना
गया है सन्यासियों ऋषियों ने भी इसे पवित्र माना है। देश में जहाँ
ग्रीष्मकाल में तापमान कहीं कहीं ५० के भी पार हो जाता है। पूरे देश
में हिमालय एवं उसके चरणों के पास के राज्य ( जो कि भारत भूखंड के
लगभग एक चौथाई से भी कम निकलेगा ) को यदि छोड़ दे तो भारत में औसत
तापमान २७ के लगभग होता है।
जो की पसीना निकलने हेतु पर्याप्त है। परंतु पश्चिम अंधानुकरण के पथ
पर अग्रसर व्यक्तियों को चिलचिलाती गर्मी में ऐसी " चुस्त जींस "
पहनना स्वीकार है जिसके जेब में यदि मुद्रा रखी हो तो चित पट दिख जाए,
दोपहर की शादी में " थ्री पीस सूट " पहनना स्वीकार है भले ही चर्म रोग
क्योँ न हो जाए आदि। चर्म रोग हो जाने के उपरांत एक से दूसरे वैध तक
भागते रहेंगे पर यह नहीं की चुस्त कपड़ो की जगह भारतीय परिधान धोती,
कुरता, पजामा आदि पहनना शुरू कर दे।
आगे पढ़ें : भोजन की बात करें तो हम इतने भाग्यशाली है कोई दूसरा देश
उसकी कल्पना नहीं कर सकता
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