शनिवार को संसद के दोनों सदनों में लोकपाल पर सार्थक बहस और प्रस्ताव पारित होने के बाद गांधीवादी अन्ना हजारे आज रविवार को दस..
भारत से हाथ खींच रहे निवेशक, ३ माह में वापस लिया १ लाख करोड़ का निवेश

यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते दुनिया भर के निवेशकों का
भारत पर से भरोसा बिखरता जा रहा है। धनाढ्य विदेशी प्रतिभूतियों
द्वारा पार्टिसिपेटरी नोट्स द्वारा भारत में निवेश किये गए रुपये में
से गत ३ महीनों में ही लगभग १ लाख करोड़ रुपया वापस खींच लिया जाने का
अनुमान है। इसका कारण सरकार द्वारा टैक्स के मामले पर की जा रही
कलाबाजियाँ हैं।
परोक्ष विदेशी निवेश में कुछ वर्ष पहले तक इन
पार्टिसिपेटरी नोट्स का योगदान ५०% (50%) के लगभग होता था जो यूपीए के
शासनकाल में औंधे मुंह लुढ़क कर १० (10) प्रतिशत तक आ गिरा है। प्रणब
मुख़र्जी की नयी कर नीति की घोषणा के साथ ही निवेशकों ने नए
निवेश करना भी बंद कर दिया है और पहले ही तय हो चुका लगभग ५००००
(5000) करोड़ का निवेश भी रोक दिया है। स्पष्ट है कि पहले ही डॉलर की
तुलने में गिरता जा रहे रुपये की सेहत के लिए यह समाचार अच्छा नहीं
है।
सेबी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारतीय बाजारों में
पार्टिसिपेटरी नोट्स का मूल्य अप्रैल २०१२ में केवल १.३ लाख करोड़ रह
गया है जो कि फरवरी २०१२ (2012) के १.८३ (1.83) लाख करोड़ से ५००००
करोड़ से भी अधिक नीचे है। एक लाख करोड़ का ये अनुमान केवल फरवरी से
अप्रैल के बीच में ही निकाले गए ५०००० करोड़ केउपलब्ध आंकड़ों के आधार
पर निकाला गया है।
यही नहीं, जून के पहले १० दिनों में ही १००० करोड़ रुपाई निकाले जाने
का भी अनुमान है। ज्ञात हो कि इस वर्ष की प्रथम तिमाही में भारत की
विकास दर भी औंधे मुंह लुढ़क कर ५.३ प्रतिशत पर आ गिरी है जबकि मार्च
में ही प्रधानमंत्री ने इसके ७ प्रतिशत रहने का भरोसा देश को दिलाया
था। २०११-२०१२ में भारत की अर्थव्यवस्था केवल ६.५% की दर से बढ़ पायी
जो कि पिछले ९ वर्षों में सबसे कम है।
संदर्भ : इकोनिमिक टाइम्स, डेक्कन हेराल्ड
Share Your View via Facebook
top trend
-
अन्ना नहीं छोड़ना चाहते रामलीला मैदान, प्रशांत भूषण इसके खिलाफ
-
मल्लिका जी, एक बार 'पवित्र परिवार' से माफ़ी माँगने को कहिये ना ?
मल्लिका साराभाई ने नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 2002 में साराभाई की जनहित याचिकाओं को खारिज करवाने..
-
वामपंथियों की नीति छोड़ दुर्गापूजा में उमड़े तृणमूल के मंत्री, 35 वर्षों की परंपरा तोड़ी
खुद को सेकुलर साबित करने के लिए धार्मिक अनुष्ठानों से दूर रहने की वामपंथियों की परंपरा को तोड़ते हुए तृणमूल कांग्रेस के मं..
-
कैसे जानें कब हैं अपने त्यौहार?
समय के साथ साथ समाज बदलता है परन्तु जो अपना महत्व बनाए रखता है - वही परंपरा का प्रतीक बन जाता है। ऐसी ही कुछ बातों में स..
-
बाघा जतिन के १४० वें जन्मदिवस पर शत् शत् नमन : राष्ट्र वंदना
बाघा जतिन ( ०७ दिसम्बर, १८७९ - १० सितम्बर , १९१५) जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १९७९ ईसवी में हुआ था। पाँ..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)