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राइट टू रिकॉल पर अन्ना की मुहिम से निपटने के लिए कांग्रेस ने अभी से बनाई रणनीति
अन्ना हजारे के आंदोलन से मनमोहन सरकार और कांग्रेस की साख को जो बट्टा लगा है, उसकी भरपाई के लिए पार्टी ने ठोस रणनीति तैयार की है। अन्ना हजारे ने अपनी लड़ाई का अगला मुद्दा चुनाव सुधार और सांसद-विधायकों को वापस बुलाए जाने के अधिकार (राइट टू रिकॉल) को कानूनी स्वरूप दिलाना बताया है। ऐसे में पार्टी चाहती है कि अगर अगली बार अन्ना फिर आंदोलन करें तो उसकी छवि जनभावना के विपरीत नहीं बने और राजनीतिक विरोधियों को मौके का फायदा उठाने से रोका जाए।
कांग्रेस मानती है कि अन्ना के आंदोलन के पीछे राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वालों का भी दिमाग और हाथ था। रविवार को दलित और मुस्लिम बच्ची के हाथों अन्ना का अनशन तुड़वाए जाने को भी इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है। फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का यह कहना कि उनकी पार्टी बिना शर्त अन्ना की मांगों को समर्थन देगी, भी कांग्रेस को नागवार गुजरा है। पार्टी का मानना है कि अन्ना के आंदोलन से कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों ने किसी भी तरह फायदा उठाने और कांग्रेस को नीचा दिखाने की नीति पर काम किया। पार्टी का मानना है कि आगे भी ऐसे तत्व टीम अन्ना के साथ रहने वाले हैं।
टीम अन्ना की मुहिम में कथित राजनीतिक दखलअंदाजी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने जो रणनीति तैयार की है, उसके तहत सबसे पहले पार्टी और सरकार की ऐसी छवि पुख्ता की जानी है कि दोनों भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए लोकपाल के अलावा इससे संबंधित कई कानून तेजी से सदन में पेश किए जाने की योजना है। छवि सुधारने के लिए कांग्रेस ने युवा ब्रिगेड को आगे करने की रणनीति भी बनाई है।
सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा (सभी मंत्री), संदीप दीक्षित, प्रिया दत्त (दोनों सांसद) जैसे नेताओं को आगे किए जाने की योजना है। इनकी पहली जिम्मेदारी यह होगी कि अन्ना के आंदोलन के दौरान नकारात्मक खबरों के जरिए पार्टी और सरकार की साख को पहुंचे नुकसान की भरपाई की जाए। फिर आगे के आंदोलन के दौरान ऐसी स्थिति नहीं बने, इसका दारोमदार भी इन पर होगा। हालांकि इसे लेकर पार्टी में दो राय बन रही है। एक धड़ा आक्रामक रुख के साथ स्थिति से निपटने का पक्षधर है, जबकि दूसरा धड़ा नरम रुख रखते हुए स्थिति संभालने की पैरोकारी कर रहा है।
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