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भाजपा का " आ बैल मुझे मार " : उत्तर प्रदेश चुनाव
उत्तर प्रदेश चुनाव सर पर हैं और उमा भारती को आशा की किरण बना कर
" प्रदेश बचाओ, भाजपा लाओ " अभियान चला रही भाजपा ने अपने पैरों पर
अंततः कुल्हाड़ी मार ही ली। भाजपा ने मायावती द्वारा निकाले बीच मझदार
में छोड़ दिए गए पूर्व मंत्रियों को अपनी नाव में चढ़ा लिया है। दद्दन
मिश्र और अवधेश वर्मा तक तो ठीक था। उन्हें भाजपा ने विधासभा चुनाव के
टिकेट भी दे दिए। पर हद तो तब हो गयी जब भाजपा ने बाबू सिंह कुशवाहा
तक को अपनी नाव में बैठा लिया। बाबू सिंह कुशवाहा पर संगीन आरोप हैं।
उनके मंत्रित्व काल में दो मुख्य स्वास्थ्य अधिकारियों की हत्या हुई।
एनआरएचएम घोटाले में उनका नाम है। स्वयं भाजपा के किरीट सोमैया ने ३१
दिसंबर को प्रेस वार्ता में आरोप लगाया था की कुशवाहा के परिवार जनों
के नाम पर २४ कम्पनियां हैं और ३ दिन बाद कुशवाहा भाजपा में आ गए।
पहले ही अंतर्विरोधों में घिरी भाजपा में इस निर्णय से घमासान जोर
पकड़ गया है। विरोधी तो नाराज हुए ही, अपने ही दल के नेता समझ नहीं पा
रहे की निर्णय से स्वयं को अलग कर लें, या उसका बचाव करें। इस बीच
सीबीआई ने कुशवाहा पर छापा मार कर रही सही कसर भी पूरी कर दी। पहले ही
भाजपा को पानी पी पी कर कोसने वाले 'सेकुलर' दल और मीडिया को बैठे
बिठाये मुद्दा मिला गया। पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं के खुले विरोध
के चलते कुशवाहा को टिकट तो नहीं दिया जाएगा, लेकिन अपने फैसले पर
अड़े पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी साफ कर दिया है कि उन्हें बाहर
भी नहीं किया जाएगा। गडकरी ने हालात संभालने के लिए चुनाव समिति की
बैठक के पहले प्रमुख नेताओं से लंबी मंत्रणा की। नेताओं ने महसूस किया
कि अब कुशवाहा को निकालने पर ज्यादा फजीहत होगी। परन्तु पार्टी के
वरिष्ठ नेताओं ने विरोध दर्ज दिया है। लालकृष्ण आडवाणी ने भी गडकरी से
अपनी असहमति दर्ज कराई है। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में भी यह
मामला उठा। आडवाणी, डॉ. जोशी व सुषमा स्वराज ने कहा कि पार्टी की छवि
पर दाग लग रहा है।
दरअसल भाजपा की रणनीति प्रदेश में पिछड़ा वर्ग को अपने साथ जोड़ने की
है, जिसमें वह माया सरकार से हटाए गए पिछड़ा वर्ग के पांच मंत्रियों
को मुद्दा बनाएगी। भाजपा कुशवाहा को मायावती एवं केंद्र सरकार का
पीडि़त साबित करेगी। कुशवाहा ने भी साफ किया कि वह भाजपा में सोच
समझकर आए हैं। पिछड़ी जातियों के आरक्षण से जो हिस्सा काटा गया है वे
उसके खिलाफ हैं।
भाजपा अपने बचाव में जो भी कहे। भाजपा का जो वोटर उसे आशा भरी निगाहों
से देख कर उससे एक वापसी की अपेक्षा कर रहा था, उसकी आशाओं पर अवश्य
इस निर्णय से तुषारापात हुआ है। ये तो नहीं पता कि कुशवाहा के आने से
भाजपा की बुंदेलखंड में कितनी सीटें बढेंगी, पर पूरे देश में जो उसकी
थू थू हो रही है, उसने एक बार फिर भाजपा की छवि को धूमिल किया है और
उसकी भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई को खोखला कर दिया है।
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