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क्या गुजरात मुद्दे पर अमरीका भी इंग्लैंड की राह चलेगा?

अहमदाबाद, क्या नरेन्द्र मोदी और उनके गुजरात राज्य के बारे में
विश्व समुदाय का मत परिवर्तन हो रहा है? इस प्रकार के कुछ संकेत इधर
प्राप्त होते दिखाई दे रहे है। हाल ही में इंग्लैंड ने अपने राजनयिक
को निर्देश दे कर मोदी के गुजरात जाने और वहां के विकास कार्यक्रमों
के सन्दर्भ में परस्पर सहकार्य के विषयों पर मुख्यमंत्री नरेन्द्र
मोदी से चर्चा करने को कहा था।
इस पर टिपण्णी करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा अंततः इंग्लैंड ने
गुजरात के महत्त्व को समझा है। यूरोप भी इंग्लॅण्ड की राह पर चलेगा और
गुजरात के साथ सहकार्य करते हुए एक दुसरे की प्रगति कर सकेंगे।
गुजरात के पावागढ़ में अपने एक महीने से चल रही स्वामी विवेकानंद
यात्रा के समापन पर मोदी जनसभा को संबोधित कर रहे थे।
बता दें कि इंग्लैंड की सरकार ने गुजरात के साथ अपने संबंधो को
सुधारने तथा मजबूत करने के बारे में एक घोषणा की थी। एक प्रेस
विज्ञप्ति में इंग्लैंड के विदेश राज्य मंत्री ह्यूगो स्वायर ने
भारत में स्थित राजनयिक अधिकारी जेम्स बीवन को निर्देश दिए कि वे
गुजरात जा कर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकत कर पारस्परिक हितों
के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर सहकार्य के नए आयामों को तलाशें।
२००२ के दंगों के बाद गुजरात और मोदी के बहिष्कार के अपने निर्णय को
समाप्त करते हुए इंग्लैंड ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी ओर से
गुजरात और मुख्यमंत्री मोदी के साथ संबंधो को सुधारने की पहल की जा
रही है।
इस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए नरेन्द्र ओदी ने अपने
ट्विट्टर पर लिखा “देर आये दुरुस्त आये। मैं इंग्लैंड की सरकार के इस
कदम का स्वागत करता हूँ। इससे इंग्लैंड के गुजरात के साथ अच्छे
और दृढ सम्बन्ध स्थापित होंगे”।
२००२ के दंगों के बाद अंग्रेज अधिकारी मोदी से न मिलते थे न ही किसी
प्रकार से आर्थिक तथा औद्योगिक संबंधों की बाते करते थे। मोदी के
खिलाफ तीस्ता सेतलवाड, अंगना चटर्जी जैसे लोगों ने जो बदनामी का
आक्रामक आन्दोलन छेड़ा था उसके चलते २००५ के बाद मोदी ने इंग्लैंड और
अमेरिका जाना भी छोड़ दिया था।
इंग्लैंड के प्रख्यात उद्योजक लोर्ड स्वराज पाल ने ब्रिटिश सरकार के
इस निर्णय का यह कह कर स्वागत किया है कि यह तो बहुत पहले होना चाहिए
था। “हमारे बहुत से हित गुजरात में है। हम को राज्य में मानवाधिकार और
अच्छे प्रशासन को समर्थन देना है, गुजरात में जो अंग्रेज रहते
हैं या पर्यटक के नाते आते हैं उनको सहायता देना और यहाँ (यूके) में
जिन गुजरातियों ने एक सफल और प्रगतिशील समाज के नाते अपनी पहचान
बनायीं है उनको भी समर्थन देना है।”
स्वराज पाल ने कहा, “मोदी जी लोकतंत्र के
प्रक्रिया से चुनाव जीत कर गुजरात के नेता बने हैं वो भी दो बार।
गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ चर्चा करने का ब्रिटिश सरकार का निर्णय
स्वागत योग्य है ऐसा मेरा मानना है।”
लेकिन भारत में तीस्ता सेतलवाड, महेश भट्ट, जैसे सेकुलर और
मानवाधिकारवादी छवि वाले लोग और बरखा दत्त तथा राजदीप सरदेसाई जैसे
मीडियाकर्मी मोदी को क्रूर हुकुमशाह, और मुसलमानों के कत्ले-आम के लिए
जिम्मेदार मान कर उनको बदनाम करने की कोशिश में लगे हुए हैं। तीस्ता
सेतलवाड को तो उसके कुछ सहयोगियों ने बेनकाब कर दिया था और मोदी के
खिलाफ उनके आरोप कितने मनगढ़ंत एवं बेबुनियाद थे।
तीस्ता सेतलवाड को अंगना चटर्जी जिस ने
अमरीका में मोदी के खिलाफ २००५ में जंग छेड़ी थी, उन का समर्थन मिल
गया। मुख्यामंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावित अमरीका प्रवास को लेकर
अंगना चटर्जी ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसका शीर्षक था “गुजरात
हत्याकांड, संघ परिवार, नरेन्द्र मोदी और गुजरात सरकार”। कश्मीर के
अलगाववादी तत्वों की खासी समर्थक रही अंगना ने मेरिलैंड स्थित इंडिया
डेवलपमेंट एंड रिलीफ फंड २००२ के लिए भारत में सेवा संगठनों को मिलने
वाले धन के संदर्भ में एक रिपोर्ट बनाने में सहकार्य किया
था।
मीडिया, राजनीतिक विरोधक और मानवाधिकारवादी लोग मोदी पर लगातार हमला
बोलते रहे फिर भी मोदी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। वरना उन्होंने अपना
ध्यान गुजरात के विकास पर केन्द्रित किया। मजाक में वे कहते थे कि “जब
लोग मुझ पर पत्थर फेकते हैं तो मैं उन्हीं पत्थरों से सीढिया बनवाता
हूँ।”
अब जब गुजरात में विकास की गंगा के दर्शन सारी दुनिया को हो रहे हैं
और मोदी के खिलाफ जितने भी मुकदमे चल रहे थे, वे सब तीस्ता सेतलवाड
जैसे लोगों को बेनकाब कर रहे हैं तो यूके की सरकार का मोदी के
साथ लगा प्रतिबन्ध हटा कर चर्चा का नया दौर शुरू करना यह मोदी के
नीतियों का ही विजय माना जा रहा है।
उसी प्रकार अमरीका में भी कई सांसद तथा भारतीय लोग मोदी के खिलाफ
चलाये जा रहे इस द्वेषमूलक अभियान के झूट एवं खोखलेपन को समझ गए हैं
इसलिए मोदी पर लगाये गए प्रतिबन्ध को उठाने की मांग कर रहे हैं। गत
जून १९ को अमरीकी कांग्रेस के सदस्य जो वाल्श खुल कर मोदी के समर्थन
में आगे आये हैं। उन्होंने यह जानना चाहा कि वे किस कारण से मोदी को
रोक रहे हैं? मोदी को अमरीका प्रवास के लिए वीसा न देने के कौन से
कारण थे? वाल्श ने अमरीकी प्रशासन से हमेशा यह सवाल पूछते रहते हैं।
उन्होंने ने इस सन्दर्भ में अमरीकी विदेशमंत्री हिलरी क्लिंटन को पत्र
लिखकर इसका कारण जानने की भी कोशिश की थी।
सन २००५ में अमरीका ने मोदी को राजनयिक वीसा देने से इंकार किया था और
उनको पहले से मिला हुआ बी-१/बी-२ वीसा भी रद्द कर दिया था। मोदी को
अमरीका के एशियन अमेरिकेन होटल ओनर्स एसोसिअशन ने उनके वार्षिक
कार्यक्रम में भाषण देने की लिए मुख्य अतिथि के रूप निमंत्रित किया
था। यह कार्यक्रम फ्लोरिडा में होना था।
जो वाल्श का यह कहना था कि मोदी को तो किसी न्यायालय ने दोषी करार
देकर सजा नहीं सुनाई है। तो अमरीकी प्रशासन किस आधार पर मोदी को दोषी
मानता है और इस आधार पर उनको वीसा न देना। जो वाल्श ने कहा, "यह
मूर्खतापूर्ण और कानून के खिलाफ है।"
मोदी जो एक कुशल राजनेता हैं, अभी तक अमरीका के निर्णय पर चुप्पी साधे
बैठे हैं। लेकिन उनको यह लगता है जैसे आज यूके ने अपनी गलती में
सुधार किया है वैसे ही अमरीका भी देर सवेर अपनी गलती मान लेगा। अगर
यूके यह कर सकता है तो अमरीका क्यों नहीं?
विशेष रिपोर्ट : न्यूज़ भारती
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