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सीमा-पार पड़ोसी देशों से भारत में होने वाली घुसपैठ पिछले कुछ
वर्षों से कला के क्षेत्र में भी हो रही है। कभी कोई गायक, कोई
संगीतकार, कोई स्टैंड-अप कॉमेडियन, कोई अभिनेत्री और कभी क्रिकेटर इस
देश में आ रहे हैं। भले ही पाकिस्तान में भारतीय गायकों-कलाकारों और
चैनलों पर रोक लगी हो, लेकिन भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे
शत्रु-देशों से आने वाले कलाकारों का समर्थन करने वालों की कमी नहीं
है। इनके समर्थक भारतीय कलाकार अक्सर ये तर्क देते हैं कि
"कला की कोई सीमा नहीं
होती" या "हम सिर्फ कलाकार हैं,
हमें राजनीति से कोई सरोकार नहीं है"
लेकिन आश्चर्य होता है कि चुनावों के समय यही "कलाकार", "जिन्हें
सिर्फ कला से मतलब है, राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है", राजनैतिक
दलों के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते और चुनावी सभाओं में भीड़
जुटाते दिखाई देते हैं और फिर भी राजनीति से दूर होने का दावा करते
हैं। आश्चर्य होता है कि यही "कलाकार" राजनैतिक दलों के टिकट पर चुनाव
लड़ते हैं और फिर भी राजनीति से दूर होने का दावा करते हैं। आश्चर्य
होता है कि यही "कलाकार" राजनेताओं के लिए चुनावी भाषण लिखते हैं या
उनके खिलाफ चल रहे किसी आन्दोलन के मंच पर भी दिखाई देते हैं और फिर
भी राजनीति से दूर होने का दावा करते हैं। ये कैसा दोहरा मापदंड है कि
आप अपने लाभ और सुविधा के अनुसार कभी राजनेताओं के पास और कभी उनसे
दूर खड़े दिखाई देंगे? आप राजनीति से, राजनैतिक दलों से और आम-जनों से
प्रशंसा, मान-सम्मान और धन तो लेंगे, लेकिन आलोचना से बचने के लिए
अपनी कला को अपनी ढाल बनाएंगे!! ये कैसे स्वीकार किया जाए?
इस बात से मैं भी सहमत हूँ कि विभिन्न देशों के लोगों के बीच कला,
संस्कृति, साहित्य, खेल आदि के माध्यम से संवाद व संपर्क विकसित हों
और विचारों का आदान-प्रदान हो। लेकिन ये सब किन देशों के साथ करना है
और किस सीमा तक करना है, क्या इस पर विचार नहीं होना चाहिए?
खेल दोस्तों के बीच खेला जाता
है, दुश्मनों से सिर्फ युद्ध किया जाना
चाहिए।
एक ओर पाकिस्तान और बांग्लादेश लगातार हम पर प्रत्यक्ष और परोक्ष
आक्रमण कर रहे हैं और दूसरी ओर हमारे ही देश के कलाकार और खिलाड़ी उन
देशों के साथ एक मंच पर दिखाई दे रहे हैं। एक ओर आप पाकिस्तानी
आतंकवाद के विरोध में मोमबत्तियां जलाकर रैली निकालेंगे, कसाब की
फांसी की मांग करेंगे और दूसरी ओर उसी पाकिस्तान के साथ दोस्ती के गीत
गाएंगे, ये कैसे हो सकता है?
मैं न कला का विरोधी और न कलाकारों का। मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि
कला को देश की सीमाओं में नहीं बांधा जाना चाहिए। लेकिन क्या इसका
अर्थ ये है कि कलाकार का तमगा लगाकर कोई भी, कहीं से भी इस देश में आ
जाए और हम उसकी जय-जयकार करने लगें! क्या ऐसे लोगों का समर्थन करने
वालों को भी अपनी सीमा का ध्यान नहीं रखना चाहिए? आप चाहे कितने ही
महान कलाकार, गायक, अभिनेता या खिलाड़ी क्यों न हों, लेकिन आप अपनी
मातृभूमि से बड़े कैसे हो सकते हैं? आप उस राष्ट्र से बड़े कैसे हो
सकते हैं, जिसने आपका पालन-पोषण किया और जिससे आपको यश, सम्मान और धन
मिला? क्या उसके प्रति आपका कोई कर्तव्य नहीं?
भारत में कलाओं और कलाकारों की कभी कमी नहीं रही। लेकिन ऐसे अनेक
श्रेष्ठ कलाकार हुए हैं, जिन्होंने हमेशा अपने देश को अपनी कला से
अधिक महत्व दिया। चाहे वीर सावरकर हों, बंकिमचन्द्र चटर्जी हों,
रामप्रसाद बिस्मिल हों, अशफाक़उल्ला खां हों या आधुनिक युग में
अटलबिहारी वाजपेयी जैसे लेखक और कवी हों। इन्होंने अपनी कला के बजाय
अपने देश की स्वतंत्रता और सम्मान को अधिक महत्व दिया।यह न तो संभव
है, न आवश्यक है और न ही अपेक्षित है कि हर गायक, कलाकार या खिलाड़ी
अपना सर्वस्व त्यागकर समाजसेवा में लग जाए, लेकिन कम से कम इतना तो
करें कि शत्रु-देशों के साथ किसी भी तरह के संबंध न रखें, उनके साथ एक
मंच पर न आएं। पाकिस्तानी आतंकवादी और बांग्लादेशी घुसपैठिये लगातार
भारत पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आक्रमण करये आ रहे हैं और
हमारे सैनिक हर मोर्चे पर उनसे लड़ रहे हैं। यदि हमारे देश के कलाकार
पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों के साथ मंच साझा करने के बजाय सीमा
पर लड़ रहे सैनिकों का हौसला बढ़ाने में सहायता करें तो क्या ये
ज़्यादा बेहतर नहीं होगा?
आप भले ही "राजनीति से दूर"
रहते हों, लेकिन कम से कम अपने
राष्ट्र से और राष्ट्रभक्ति से दूर मत जाइए
!
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