"भारत निर्माण" में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला प्राकृतिक संसाधन, कोयला भी जब घोटाले का शिकार बन जाए तो देश म..

सूरज की किरणों से लेकर मलमूत्र और कचरा तक से विद्युत पैदा करने के बाद अब नाक से बिजली बनाने की बारी है। सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि वे एक ऐसी तकनीक विकसित करने में जुटे हैं, जो सांस ऊर्जा पैदा कर सके। एनर्जी एंड एंवायरनमेंटल साइंस जर्नल में छपे शोध पत्र के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन मेडिसिन के शोधकर्ता सांस से बिजली बनाने की परियोजना पर काम कर रहे हैं। यह दल ऐसी तकनीक ईजाद करने में जुटा है, जो एक दिन व्यक्ति की नाक में हो रहे श्वसन के जरिए चेहरे में फिट संवेदकों (सेंसर) के लिए ऊर्जा का उत्पादन करने में मददगार साबित होगा। इसके लिए परियोजना से जुड़े इंजीनियरों ने प्लास्टिक की एक ऐसी माइक्रोबेल्ट बनाई है जो इंसान के सांस लेने पर कंपन करने लगेगा। इससे ऊर्जा पैदा होगी।
विज्ञान की भाषा में इसे पिजोइलेक्टि्रक प्रभाव कहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पॉलीविनाइलडीन फ्लोराइड (पीवीडीएफ) जैसे तत्वों पर यांत्रिक दबाव पड़ने से ऊर्जा पैदा होती है। फिलहाल शोधकर्ताओं ने पीवीडीएफ से बने माइक्रोबेल्ट के जरिए सांस से ऊर्जा पैदा कर सेंसर को संचालित किया। दल की अगुवाई करने वाले डॉ. जुदांग वांग ने कहा कि हम जैविक प्रणाली से यांत्रिक ऊर्जा का दोहन कर रहे हैं। सामान्य मानव श्वसन से पैदा होने वाली हवा की रफ्तार आमतौर पर दो मीटर प्रति सेकेंड से नीचे रहती है। वांग के मुताबिक, अगर हम माइक्रोबेल्ट के तत्व को और पतला कर देते हैं तो इससे एक माइक्रोवाट तक की बिजली पैदा की जा सकती है।
उससे चेहरे में फिट सेंसर और अन्य उपकरणों को संचालित किया जा सकता है। उनका कहना है कि श्वसन से बिजली पैदा करने पर हमारा निष्कर्ष अभी प्रायोगिक दौर में हैं। इस बारे में किसी सटीक निष्कर्ष पर पहुंचने में अभी कुछ वक्त लगेगा।
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