कहा जाता हैं कि भारत विविधताओं का देश है। बात सच भी है। संस्कृति की समरसता के छत्र में वैविध्य की वाटिका यहाँ सुरम्य दृष..
भारत से हाथ खींच रहे निवेशक, ३ माह में वापस लिया १ लाख करोड़ का निवेश
यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते दुनिया भर के निवेशकों का
भारत पर से भरोसा बिखरता जा रहा है। धनाढ्य विदेशी प्रतिभूतियों
द्वारा पार्टिसिपेटरी नोट्स द्वारा भारत में निवेश किये गए रुपये में
से गत ३ महीनों में ही लगभग १ लाख करोड़ रुपया वापस खींच लिया जाने का
अनुमान है। इसका कारण सरकार द्वारा टैक्स के मामले पर की जा रही
कलाबाजियाँ हैं।
परोक्ष विदेशी निवेश में कुछ वर्ष पहले तक इन
पार्टिसिपेटरी नोट्स का योगदान ५०% (50%) के लगभग होता था जो यूपीए के
शासनकाल में औंधे मुंह लुढ़क कर १० (10) प्रतिशत तक आ गिरा है। प्रणब
मुख़र्जी की नयी कर नीति की घोषणा के साथ ही निवेशकों ने नए
निवेश करना भी बंद कर दिया है और पहले ही तय हो चुका लगभग ५००००
(5000) करोड़ का निवेश भी रोक दिया है। स्पष्ट है कि पहले ही डॉलर की
तुलने में गिरता जा रहे रुपये की सेहत के लिए यह समाचार अच्छा नहीं
है।
सेबी के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारतीय बाजारों में
पार्टिसिपेटरी नोट्स का मूल्य अप्रैल २०१२ में केवल १.३ लाख करोड़ रह
गया है जो कि फरवरी २०१२ (2012) के १.८३ (1.83) लाख करोड़ से ५००००
करोड़ से भी अधिक नीचे है। एक लाख करोड़ का ये अनुमान केवल फरवरी से
अप्रैल के बीच में ही निकाले गए ५०००० करोड़ केउपलब्ध आंकड़ों के आधार
पर निकाला गया है।
यही नहीं, जून के पहले १० दिनों में ही १००० करोड़ रुपाई निकाले जाने
का भी अनुमान है। ज्ञात हो कि इस वर्ष की प्रथम तिमाही में भारत की
विकास दर भी औंधे मुंह लुढ़क कर ५.३ प्रतिशत पर आ गिरी है जबकि मार्च
में ही प्रधानमंत्री ने इसके ७ प्रतिशत रहने का भरोसा देश को दिलाया
था। २०११-२०१२ में भारत की अर्थव्यवस्था केवल ६.५% की दर से बढ़ पायी
जो कि पिछले ९ वर्षों में सबसे कम है।
संदर्भ : इकोनिमिक टाइम्स, डेक्कन हेराल्ड
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