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सुरक्षा सलाहकार के सुझाव दरकिनार, सस्ते आयात के कारण अर्थव्यवस्था पर खतरा

अंशुमान तिवारी, नई दिल्ली चीन से सस्ते आयात के कारण अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे खतरे को दूर करने को लेकर केंद्र सरकार गहरे अंतर्विरोधों में घिर गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से पर चीन के परोक्ष कब्जे को लेकर खतरे की घंटी बजा रहे हैं, दूसरी तरफ वित्त मंत्रालय ने वहां से आयात में वृद्धि का रास्ता खोल दिया है। भारतीय कंपनियों को चीनी मुद्रा युआन में विदेशी कर्ज लेने की छूट मिलने के बाद आयात की बाढ़ आना तय है।
युआन में विदेशी कर्ज का निर्णय सबसे पहले दूरसंचार और बिजली क्षेत्रों में चीन के उपकरणों की आपूर्ति को कई गुना बढ़ाएगा। इन क्षेत्रों में चीनी दखल को लेकर सुरक्षा की चिंताएं सबसे ज्यादा हैं। सुरक्षा सलाहकार ने चीन के खतरे को लेकर हाल में एक गोपनीय रिपोर्ट अहम महकमों को भेजी है। इसके मुताबिक देश का करीब 26 फीसदी औद्योगिक उत्पादन चीन पर आश्रित है। यह निर्भरता अगले पांच साल में 75 फीसदी हो जाएगी।
दैनिक जागरण ने पिछले सप्ताह इस सनसनीखेज रिपोर्ट का रहस्योद्घाटन किया था। रिपोर्ट में इस आर्थिक खतरे को रोकने की रणनीति बनाने का निर्देश भी शामिल था, लेकिन वित्त मंत्रालय ने कंपनियों को युआन में विदेशी कर्ज की छूट देकर चीन पर सरकार का बिखराव सार्वजनिक कर दिया है। बीते शनिवार को हुए इस फैसले का मतलब यह है कि यहां के आयातक चीन के बैंकों और निवेशकों से युआन में कर्ज लेंगे। स्वाभाविक रूप से यह कर्ज चीन से आयात के भुगतान में जाएगा, क्योंकि कोई अन्य देश तो युआन में भुगतान लेने से रहा। यह फैसला हमारे वित्तीय क्षेत्र में चीन के बैंकों की सक्रियता का रास्ता भी खोलेगा। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
चीन के पहले बैंक (इंडस्टि्रयल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना) की शाखा मुंबई में खुल चुकी है। चीन की घेरेबंदी की कोशिश के बावजूद मनमोहन सरकार असमंजस और परस्पर विरोधी फैसलों से घिरी हुई है। सुरक्षा सलाहकार ने योजना आयोग को निर्देश दिया है कि चीन से बिजली उपकरणों के आयात पर 14 फीसदी सीमा शुल्क लगाने के प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया जाए।
बिजली मंत्रालय ने बीते साल अंतिम मौके पर यह प्रस्ताव रोक दिया था। रिपेार्ट कहती है कि चीन की कंपनियां बिजली मशीनरी उत्पादन के लिए यहां संयंत्र लगाने को तैयार नहीं हैं, जिससे देसी कंपनियों के साथ बराबरी का मुकाबला हो सके। चीन अपनी कंपनियों को तरह-तरह के प्रोत्साहन देता है। ऊपर से यहां उन्हे सस्ते आयात शुल्क का लाभ मिलता है। सुरक्षा सलाहकार का इशारा वहां की कंपनियों के पीछे मौजूद वित्तीय ताकत से है। वहां की कंपनियां न सिर्फ उधार पर माल देने को तैयार हैं, बल्कि देर से भुगतान की सुविधा भी मुहैया करा रही हैं।
युआन में विदेशी कर्ज की सुविधा के बाद उन कंपनियों की इस रणनीति को और मजबूती मिल जाएगी। सुरक्षा सलाहकार ने चीन के सस्ते इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से मुकाबले के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स डिजाइन और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड बनाने का भी प्रस्ताव किया है। दवा आयात पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की पेशबंदी का भी सुझाव है। इन सुझावों के बावजूद वित्त मंत्रालय ने ऐसे फैसले लिए हैं जिनसे चीनी कंपनियों की पौ-बारह होना तय है।
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