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शास्त्र को शस्त्र अथवा हथियार ना बनाओ - अष्टावक्र
ज्ञान ही शक्ति है। इसलिए ज्ञान का उद्देश्य "सभी का समान रूप से
लाभ" होना चाहिए। लेकिन अगर ज्ञान किसी के अहंकार का साधन बन जाये,
किसी के ध्वंस का हथियार बन जाये, तो ज्ञान का वास्तविक उद्देश्य नष्ट
हो जाता है। ज्ञान को ग़लत अर्थ में समझे जाने के प्रति सावधान रहना
चाहिए क्यों कि यह विध्वंस करने वाले को भी नष्ट कर देता है।
In English : Scriptures are not weapons to establish one's
superiority...
अष्टावक्र और बन्दी की कहानी के माध्यम से ज्ञान का उद्देश्य दिखाया
गया है। युवा अष्टावक्र अपनी माँ सुजाता से बार बार पूछते हैं कि उनके
पिता कौन हैं। लेकिन उनकी माँ हर बार यही कहती हैं कि ऋषि उद्दालक ही
उनके पिता हैं।
फिर भी अष्टावक्र की ज़िद पर सुजाता उनके पिता काहोड़ के बारे में
बताती हैं कि वे राजा जनक की सभा में बन्दी नामक ज्ञानी से
शास्त्रार्थ करने पहुँचे तो बन्दी ने शर्त रखी कि जो हार जायेगा उसे
जल समाधि लेनी होगी और काहोड़ हार गये। उन्हे जल समाधि लेनी पड़ी। इस
कहानी को सुनने के बाद अष्टावक्र ने तय किया कि वह भी जनक की सभा में
जाकर बन्दी से शास्त्रार्थ करेंगे और उसे ज्ञान का अर्थ समझाएंगे।
अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुँचकर आचार्य बन्दी को चुनौती देते
हैं और अंततः शास्त्रार्थ में उसे पराजित करतें हैं। बन्दी अपनी पराजय
स्वीकार करने के बाद जब जल समाधि के लिए उठे तो अष्टावक्र ने उन्हें
क्षमा करते हुए कहा, “शास्त्र को शस्त्र अथवा हथियार ना बनाओ”।
स्रोत : उपनिषद् गंगा | फेसबुक.कॉम/उपनिषद्गंगा (जुडें)
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