सोहराबुद्दीन झूठी मुठभेड़ मामले के संबंध में गुजरात के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह के विरुद्ध बनाये गए मामले में सर्वोच्च न्..
भारतीय संस्कृति का प्रतीक 'नमस्कार' एवं इसके आध्यात्मिक लाभ
१.नमस्कार के लाभ
२. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें ?
३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है
?
४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
५. किसी से मिलने पर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार
करना इष्ट क्यों है ?
६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
७. विवाहोपरांत पति व पत्नीको एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
८. किसी से भेंट होने पर नमस्कार कैसे करें ?
९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ?
ईश्वर के दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्तिसे मिलनेपर
हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिंदू मनपर अंकित एक सात्त्विक
संस्कार है `नमस्कार' । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको
व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक
कृति है । नमस्कारकी योग्य पद्धतियां क्या है, नमस्कार करते समय क्या
नहीं करना चाहिए, इसका शास्त्रोक्त विवरण यहां दे रहे हैं ।
१. नमस्कार के लाभ - मूल धातु `नम:' से `नमस्कार'
शब्द बना है । `नम:' का अर्थ है नमस्कार करना, वंदन करना । `नमस्कारका
मुख्य उद्देश्य है - जिन्हें हम नमन करते हैं, उनसे हमें आध्यात्मिक व
व्यावहारिक लाभ हो ।
व्यावहारिक लाभ : देवता अथवा संतोंको नमन करनेसे उनके गुण व
कर्तृत्वका आदर्श हमारे समक्ष सहज उभर आता है । उसका अनुसरण करते हुए
हम स्वयंको सुधारनेका प्रयास करते हैं ।
आध्यात्मिक लाभ :
१. नम्रता बढती है व अहं कम होता है ।
२. शरणागिति व कृतज्ञताका भाव बढता है ।
३. सात्त्विकता मिलती है व आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होती है ।
२. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें
? - सीढियों को दाहिने हाथ की उंगलियों से स्पर्श कर, उसी
हाथ को सिरपर फेरें । `मंदिर के प्रांगण में देवताओं की तरंगों के
संचारके कारण सात्त्विकता अधिक होती है । परिसर में फैले चैतन्य से
सीढियां भी प्रभावित होती हैं । इसलिए सीढी को दाहिने हाथ की उंगलियों
से स्पर्श कर, उसी हाथको सिर पर फेरने की प्रथा है । इससे ध्यान में
आता है कि, सीढियों की धूल भी चैतन्यमय होती है; हमें उसका भी सम्मान
करना चाहिए ।
३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र
क्या है ? -
# `देवताको नमन करते समय, सर्वप्रथम दोनों हथेलियों को छातीके समक्ष
एक-दूसरे से जोडें । हाथों को जोडते समय उंगलियां ढीली रखें । हाथों
की दो उंगलियों के बीच अंतर न रख, उन्हें सटाए रखें । हाथों की
उंगलियों को अंगूठे से दूर रखें । हथेलियों को एक-दूसरे से न सटाएं;
उनके बीच रिक्त स्थान छोडें ।
# हाथ जोडने के उपरांत, पीठको आगे की ओर थोडा झुकाएं ।
# उसी समय सिरको कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहों के मध्य भाग) को दोनों
हाथों के अंगूठों से स्पर्श कर, मनको देवताके चरणों में एकाग्र करने
का प्रयास करें ।
# तदुपरांत हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छाती के मध्य भाग को
कलाईयों से कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं ।
इस प्रकार नमस्कार करने पर, अन्य पद्धतियों की तुलना में देवता का
चैतन्य शरीर द्वारा अधिक ग्रहण किया जाता है । साष्टांग नमस्कार :
षड्रिपु, मन व बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना
अर्थात् साष्टांग नमस्कार ।
४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? - घर
के वयोवृद्धों को झुककर लीनभाव से नमस्कार करने का अर्थ है, एक प्रकार
से उनमें विद्यमान देवत्वकी शरण जाना । वयोवृद्धों के माध्यम से, जीव
को आवश्यक देवता का तत्त्व ब्रह्मांड से मिलता है । उनसे प्राप्त
सात्त्विक तरंगों के बलपर, कष्टदायक स्पंदनों से अपना रक्षण करना
चाहिए । इष्ट देवता का स्मरण कर की गई आशीर्वादात्मक कृतिसे दोनों
जीवों में ईश्वरीय गुणों का संचय सरल होता है ।
५. किसी से मिलने पर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर
नमस्कार करना इष्ट क्यों है ?
# जब दो जीव हस्तांदोलन करते हैं, तब उनके हाथों से प्रक्षेपित
राजसी-तामसी तरंगें हाथों की दोनों अंजुलियों में संपुष्ट होती हैं ।
उनके शरीर में इन कष्टदायक तरंगों के वहन का परिणाम मन पर होता है
।
# यदि हस्तांदोलन करने वाला अनिष्ट शक्ति से पीडित हो, तो दूसरा जीव
भी उससे प्रभावित हो सकता है । इसलिए सात्त्विकता का संवर्धन करने
वाली नमस्कार जैसी कृति को आचरण में लाएं । इस से जीव को विशिष्ठ कर्म
हेतु ईश्वर का चैतन्य मय बल तथा ईश्वर की आशीर्वाद रूपी संकल्प-शक्ति
प्राप्त होती है ।
# हस्तांदोलन करना पाश्चात्य संस्कृति है । हस्तांदोलन की कृति,
अर्थात् पाश्चात्य संस्कृति का पुरस्कार । नमस्कार, अर्थात् भारतीय
संस्कृति का पुरस्कार । स्वयं भारतीय संस्कृति का पुरस्कार कर, भावी
पीढी को भी यह सीख दें ।
६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? -
त्रेता व द्वापर युगों के जीव कलियुग के जीवों की तुलना में अत्यधिक
सात्त्विक थे । इसलिए उस काल में साधना करने वाले जीव को देहत्याग के
उपरांत दैवगति प्राप्त होती थी । कलियुग में कर्मकांड के अनुसार,
'ईश्वर से मृतदेह को सद्गति प्राप्त हो', ऐसी प्रार्थना कर मृत देह को
नमस्कार करने की प्रथा है ।
७. विवाहोपरांत पति व पत्नी को एक साथ नमस्कार क्यों करना
चाहिए ? - विवाहोपरांत दोनों जीव गृहस्थाश्रम में प्रवेश
करते हैं । गृहस्थाश्र में एक-दूसरे के लिए पूरक बनकर
संसारसागर-संबंधी कर्म करना व उनकी पूर्ति हेतु एक साथ बडे-बूढों के
आशीर्वाद प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार नमस्कार करने से
ब्रह्मांड की शिव-शक्तिरूपी तरंगें कार्यरत होती हैं । गृहस्थाश्रम
में परिपूर्ण कर्म होकर, उनसे योग्य फलप्राप्ति होती है । इस कारण
लेन-देनका हिसाब कम निर्माण होता है । एकत्रित नमस्कार करते समय पत्नी
को पति के दाहिनी ओर खडे रहना चाहिए ।
८. किसी से भेंट होने पर नमस्कार कैसे करें ? - किसी
से भेंट हो, तो एक-दूसरे के सामने खडे होकर, दोनों हाथों की उंगलियों
को जोडें । अंगूठे छाती से कुछ अंतरपर हों । इस प्रकार कुछ झुककर
नमस्कार करें । इस प्रकार नमस्कार करने से जीव में नम्रभाव का संवर्धन
होता है व ब्रह्मांड की सात्त्विक-तरंगें जीव की उंगलियों से शरीर में
संक्रमित होती हैं । एक-दूसरे को इस प्रकार नमस्कार करने से दोनों की
ओर आशीर्वादयुक्त तरंगों का प्रक्षेपण होता है ।
९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ? -
# नमस्कार करते समय नेत्रोंको बंद रखें ।
# नमस्कार करते समय पादत्राण धारण न करें ।
# एक हाथ से नमस्कार न करें ।
# नमस्कार करते समय हाथ में कोई वस्तु न हो ।
# नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें व स्त्रियों को सिर ढकना चाहिए
।
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