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भारतीय संस्कृति का प्रतीक 'नमस्कार' एवं इसके आध्यात्मिक लाभ

१.नमस्कार के लाभ
२. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें ?
३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है
?
४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
५. किसी से मिलने पर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार
करना इष्ट क्यों है ?
६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
७. विवाहोपरांत पति व पत्नीको एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
८. किसी से भेंट होने पर नमस्कार कैसे करें ?
९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ?
ईश्वर के दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्तिसे मिलनेपर
हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिंदू मनपर अंकित एक सात्त्विक
संस्कार है `नमस्कार' । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको
व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक
कृति है । नमस्कारकी योग्य पद्धतियां क्या है, नमस्कार करते समय क्या
नहीं करना चाहिए, इसका शास्त्रोक्त विवरण यहां दे रहे हैं ।
१. नमस्कार के लाभ - मूल धातु `नम:' से `नमस्कार'
शब्द बना है । `नम:' का अर्थ है नमस्कार करना, वंदन करना । `नमस्कारका
मुख्य उद्देश्य है - जिन्हें हम नमन करते हैं, उनसे हमें आध्यात्मिक व
व्यावहारिक लाभ हो ।
व्यावहारिक लाभ : देवता अथवा संतोंको नमन करनेसे उनके गुण व
कर्तृत्वका आदर्श हमारे समक्ष सहज उभर आता है । उसका अनुसरण करते हुए
हम स्वयंको सुधारनेका प्रयास करते हैं ।
आध्यात्मिक लाभ :
१. नम्रता बढती है व अहं कम होता है ।
२. शरणागिति व कृतज्ञताका भाव बढता है ।
३. सात्त्विकता मिलती है व आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होती है ।
२. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें
? - सीढियों को दाहिने हाथ की उंगलियों से स्पर्श कर, उसी
हाथ को सिरपर फेरें । `मंदिर के प्रांगण में देवताओं की तरंगों के
संचारके कारण सात्त्विकता अधिक होती है । परिसर में फैले चैतन्य से
सीढियां भी प्रभावित होती हैं । इसलिए सीढी को दाहिने हाथ की उंगलियों
से स्पर्श कर, उसी हाथको सिर पर फेरने की प्रथा है । इससे ध्यान में
आता है कि, सीढियों की धूल भी चैतन्यमय होती है; हमें उसका भी सम्मान
करना चाहिए ।
३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र
क्या है ? -
# `देवताको नमन करते समय, सर्वप्रथम दोनों हथेलियों को छातीके समक्ष
एक-दूसरे से जोडें । हाथों को जोडते समय उंगलियां ढीली रखें । हाथों
की दो उंगलियों के बीच अंतर न रख, उन्हें सटाए रखें । हाथों की
उंगलियों को अंगूठे से दूर रखें । हथेलियों को एक-दूसरे से न सटाएं;
उनके बीच रिक्त स्थान छोडें ।
# हाथ जोडने के उपरांत, पीठको आगे की ओर थोडा झुकाएं ।
# उसी समय सिरको कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहों के मध्य भाग) को दोनों
हाथों के अंगूठों से स्पर्श कर, मनको देवताके चरणों में एकाग्र करने
का प्रयास करें ।
# तदुपरांत हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छाती के मध्य भाग को
कलाईयों से कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं ।
इस प्रकार नमस्कार करने पर, अन्य पद्धतियों की तुलना में देवता का
चैतन्य शरीर द्वारा अधिक ग्रहण किया जाता है । साष्टांग नमस्कार :
षड्रिपु, मन व बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना
अर्थात् साष्टांग नमस्कार ।
४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? - घर
के वयोवृद्धों को झुककर लीनभाव से नमस्कार करने का अर्थ है, एक प्रकार
से उनमें विद्यमान देवत्वकी शरण जाना । वयोवृद्धों के माध्यम से, जीव
को आवश्यक देवता का तत्त्व ब्रह्मांड से मिलता है । उनसे प्राप्त
सात्त्विक तरंगों के बलपर, कष्टदायक स्पंदनों से अपना रक्षण करना
चाहिए । इष्ट देवता का स्मरण कर की गई आशीर्वादात्मक कृतिसे दोनों
जीवों में ईश्वरीय गुणों का संचय सरल होता है ।
५. किसी से मिलने पर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर
नमस्कार करना इष्ट क्यों है ?
# जब दो जीव हस्तांदोलन करते हैं, तब उनके हाथों से प्रक्षेपित
राजसी-तामसी तरंगें हाथों की दोनों अंजुलियों में संपुष्ट होती हैं ।
उनके शरीर में इन कष्टदायक तरंगों के वहन का परिणाम मन पर होता है
।
# यदि हस्तांदोलन करने वाला अनिष्ट शक्ति से पीडित हो, तो दूसरा जीव
भी उससे प्रभावित हो सकता है । इसलिए सात्त्विकता का संवर्धन करने
वाली नमस्कार जैसी कृति को आचरण में लाएं । इस से जीव को विशिष्ठ कर्म
हेतु ईश्वर का चैतन्य मय बल तथा ईश्वर की आशीर्वाद रूपी संकल्प-शक्ति
प्राप्त होती है ।
# हस्तांदोलन करना पाश्चात्य संस्कृति है । हस्तांदोलन की कृति,
अर्थात् पाश्चात्य संस्कृति का पुरस्कार । नमस्कार, अर्थात् भारतीय
संस्कृति का पुरस्कार । स्वयं भारतीय संस्कृति का पुरस्कार कर, भावी
पीढी को भी यह सीख दें ।
६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? -
त्रेता व द्वापर युगों के जीव कलियुग के जीवों की तुलना में अत्यधिक
सात्त्विक थे । इसलिए उस काल में साधना करने वाले जीव को देहत्याग के
उपरांत दैवगति प्राप्त होती थी । कलियुग में कर्मकांड के अनुसार,
'ईश्वर से मृतदेह को सद्गति प्राप्त हो', ऐसी प्रार्थना कर मृत देह को
नमस्कार करने की प्रथा है ।
७. विवाहोपरांत पति व पत्नी को एक साथ नमस्कार क्यों करना
चाहिए ? - विवाहोपरांत दोनों जीव गृहस्थाश्रम में प्रवेश
करते हैं । गृहस्थाश्र में एक-दूसरे के लिए पूरक बनकर
संसारसागर-संबंधी कर्म करना व उनकी पूर्ति हेतु एक साथ बडे-बूढों के
आशीर्वाद प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार नमस्कार करने से
ब्रह्मांड की शिव-शक्तिरूपी तरंगें कार्यरत होती हैं । गृहस्थाश्रम
में परिपूर्ण कर्म होकर, उनसे योग्य फलप्राप्ति होती है । इस कारण
लेन-देनका हिसाब कम निर्माण होता है । एकत्रित नमस्कार करते समय पत्नी
को पति के दाहिनी ओर खडे रहना चाहिए ।
८. किसी से भेंट होने पर नमस्कार कैसे करें ? - किसी
से भेंट हो, तो एक-दूसरे के सामने खडे होकर, दोनों हाथों की उंगलियों
को जोडें । अंगूठे छाती से कुछ अंतरपर हों । इस प्रकार कुछ झुककर
नमस्कार करें । इस प्रकार नमस्कार करने से जीव में नम्रभाव का संवर्धन
होता है व ब्रह्मांड की सात्त्विक-तरंगें जीव की उंगलियों से शरीर में
संक्रमित होती हैं । एक-दूसरे को इस प्रकार नमस्कार करने से दोनों की
ओर आशीर्वादयुक्त तरंगों का प्रक्षेपण होता है ।
९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ? -
# नमस्कार करते समय नेत्रोंको बंद रखें ।
# नमस्कार करते समय पादत्राण धारण न करें ।
# एक हाथ से नमस्कार न करें ।
# नमस्कार करते समय हाथ में कोई वस्तु न हो ।
# नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें व स्त्रियों को सिर ढकना चाहिए
।
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