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मानव सेवा प्रतिष्ठान के बंगाल वनवासीयों में सेवा-प्रकल्प

भारत का पूर्वी भाग आज भी काफी पिछडा हुआ है| शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा की समस्याओं से लेकर आर्थिक शोषण तक कई गंभीर प्रश्न आज भी यहॉं ज्यों के त्यों बने हैं, अपितु दिन-ब-दिन उनका स्वरूप अधिक गंभीर बनते जा रहा है| इन हालात में पश्चिम बंगाल में वनवासियों के उत्थान के लिए ‘मानव सेवा प्रतिष्ठान’ निःस्वार्थ भाव से बडा ही सराहनीय कार्य कर रहा है|
हिंदी में एक कहावत है- ‘जो बोओगे सो पाओगे’| मानव सेवा प्रतिष्ठानने वनवासी इलाकों में कार्य करते हुए उन्हें विकास के लिए स्वयं प्रेरित होने के लिए इसी कहावत का सहारा लिया है| इस विचार को वनवासियों के मन पर प्रतिबिंबित कर उन्हें प्रतिष्ठान ने सक्रिय किया, उसके काफी अच्छे नतीजे अब देखने को मिल रहे हैं|
जलबेरिया आश्रम
प्रतिष्ठान के अनेक उपक्रमो में एक महत्त्वाकांक्षी उपक्रम है जलबेरिया आश्रम| यह आश्रम कोलकाता से ६५ किलोमीटर दूरी पर सुंदरबन में जयनगर-जामतला मार्ग पर स्थित है| इस आश्रम के लिए गांववालों ने ही जमीन उपलब्ध कराई है| इस आश्रम में निम्नलिखित विविध उपक्रम शुरू हैं-
१) पाठशाला- इस आश्रम में १९८२ से बुनियादी और उच्च माध्यमिक पाठशाला सुरू की गई है| आज इस बुनियादी पाठशाला में २०० से अधिक, तो उच्च माध्यमिक पाठशाला में ३०० से अधिक वनवासी छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं| यहॉं एक सुसज्ज वाचनालय बनाया गया है| इसका उपयोग छात्रों के साथ गांव के लोग भी लेते हैं, जिससे उनका भी बौध्दिक विकास होता है| स्थानीय वनवासी और पिछडे वर्ग के छात्रों को पाठशाला के छात्रालय में रखा जाता है| सातवी, आठवी कक्षा के सभी छात्रों को सिलाई का काम अनिवार्य रूप से सिखाया जाता है|
२) शारीरिक शिक्षा- पाठशाला में पढनेवाले, उसी प्रकार छात्रालय में रहनेवाले और अन्य वनवासी युवकों को तंदुरुस्ति के लिए यहॉं नियमित रूप से शारीरिक शिक्षा दी जाती है| इस के लिए यहॉं शिविरों का आयोजन भी किया जाता है|
३) स्वास्थ्य केंद्र- जलबेरिया आश्रम में एक होमियोपॅथिक चिकित्सालय शुरू किया गया है| वहॉं ५०० से अधिक मरीजों पर इलाज किया जाता है| होमियोपॅथी की दवाईयॉं काफी सस्ती होती हैं और उनका इलाज भी काफी कारगर होता है| निर्धन, गरीब वनवासियों के लिए ऍलोपॅथी की तुलना में यह सस्ता इलाज महत्त्वपूर्ण साबित हुआ है| साथ ही यहॉं एक नेत्र चिकित्सालय भी शुरू किया गया है|
४) मंदिर- साल २००८ में यहॉं शिवजी का एक मंदिर निर्माण किया गया| बांगला देश के सीमा से काफी नजदीक इस इलाके में यह पहला मंदिर है| श्रावण मास में यहॉं वनवासियों समवेत सभी शिवभक्तों की बडी भीड उमडती है| इसके सिवा यहॉं बंगाली नववर्ष, गाजन मेला, बैसाख उत्सव आदि त्यौहारों पर विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है| विविध फलों के पेड और कई प्रकार के आकर्षक फूलों के पौधों से आश्रम का बगीचा सुशोभित किया गया है, जो यहॉं का एक आकर्षण का केंद्र बना है|
कृष्णानगर प्रकल्प
इस प्रकल्प में कुछ दानशूरों की सहायता से सरस्वती शिशु मंदिर शुरू
किया गया है| शिशु मंदिर की विशाल इमारत है| यहॉं बुनियादी
(प्रायमरी) कक्षाओं में ६०० से अधिक छात्र शिक्षा ले रहें हैं| यहॉं
एक कम्प्यूटर ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू किया गया है|
लालपूर बोद्रा आश्रम
पश्चिम बंगाल के माल्दा शहर से ३५ किलोमीटर दूर लालपूर गांव में १९८२ से यह प्रकल्प कार्यरत है| विविध ट्रस्ट्स की सहायता से शुरू किए गये इस आश्रम की नींव विश्व हिंदू परिषद द्वारा रखी गयी थी| अब यह आश्रम मानव सेवा प्रतिष्ठान को सौंपा गया है| प्रतिष्ठान इस आश्रम का कामकाज सम्भालता है और उसका विस्तार भी बढा रहा है| आश्रम में एक विशाल शिव मंदिर बनाया गया है, जहॉं इस परिसर से काफी शिवभक्त पूजा और अन्य कार्यक्रमों में सहभागी होते हैं| प्रतिष्ठान ने यहॉं १९९२ में एक पाठशाला का और १९९७ में छात्रावास का भी निर्माण किया| छात्रावास में वनवासी और पिछडे वर्गों के १०० से अधिक छात्र रहते हैं, तो बुनियादी पाठशाला में १३५ से अधिक छात्र पढ रहे हैं| और करीबन १०० छात्र छात्रावास में प्रवेश हेतू प्रतीक्षा में हैं| यहॉं छात्रों को पाठ्यक्रम के साथ ही बगीचा काम (गार्डनिंग) का भी प्रशिक्षण दिया जाता है|
पुलेश्वर प्रकल्प
कोलकाता से करीबन ३० किलोमीटर की दूरी पर पुलेश्वर गॉंव में यह प्रकल्प स्थित है| यहॉं पर भगवान नारायण (विष्णू) जी का मंदिर है| यहॉं नियमित रूप से विविध त्यौहार एवं उत्सवों का आयोजन किया जाता है| यहीं पर एक होमियोपॅथिक चिकित्सालय शुरू किया गया है, जहॉं हर महिने ३५० से अधिक मरीजों पर इलाज किया जाता है| इसके सिवा यहॉं नियमित रूप से नेत्र चिकित्सा शिबिरों का भी आयोजन किया जाता है|
यहॉं एक कम्प्यूटर ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू किया गया है, जिसमें ५ से १० कक्षा के १८० छात्रों को ६ शिफ्ट में निःशुल्क प्रशिक्ष दिया जाता है| यहॉं शुरू किये गए बाल संस्कार केंद्र में छात्रों पर उचित संस्कार कि ये जाते हैं| गांववासी और यहॉं के छात्रों को नियमित रूप से शारीरिक शिक्षण, योगासन आदि पढाया जाता है| यहॉं मैदानी खेलों के लिये भी उचित प्रबंध किया गया है| महिलाओं को सिलाई, बुनाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वयंरोजगार के लिए प्रेरित किया जाता है| यहॉं एक वृद्धाश्रम भी शुरू किया गया है|
पोड्रा प्रकल्प कोलकाता से करीबन ८ किलोमीटर दूरी पर आंदुल मार्ग पर स्थित इस प्रकल्प में योग केंद्र, वाचनालय, सत्संग केंद्र, महिला कल्याण केंद्र आदि शुरू किये गए हैं| इस केंद्र की इमारत के लिए गॉंव वालों ने जमीन उपलब्ध की और इमारत के लिए सहायता भी की| यहॉं एक होमियोपॅथी चिकित्सालय और संस्कार केंद्र भी शुरू किया गया है|
संपर्क
मानव सेवा प्रतिष्ठान,
११७ बी, नलिनी सरकार मार्ग,
कोलकाता
पश्चिम बंगाल (भारत)
कैसे पहुँचे-
विमान द्वारा- डमडम के नेताजी सुभासचंद्र बोस आंतरराष्ट्रीय हवाई
अड्डे से कोलकाता शहर १७ किलोमीटर दूरी पर है|
रेल्वे द्वारा- कोलकाता में हावडा और सीलदाह ये हो प्रमुख रेल्वे
स्टेशन हैं| कोलकाता शहर में मेट्रो रेल सुविधा भी
है| बस द्वारा- पश्चिम बंगाल मार्ग परिवहन की बसों
द्वारा कोलकाता राज्य के सभी शहरों से और नजदीकी राज्यों के प्रमुख
शहरों से जुडा है|
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