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भारतीय उपखंड में इन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की
तूती बोल रही है। भारत में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ही उनसे भयभीत
नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान भी आतंकित है। गुजरात विधानसभा
के चुनाव घोषित होने से ठीक तीन दिन पूर्व पाकिस्तान के जाने-माने
अंग्रेजी दैनिक 'डान' में एक लेख प्रकाशित हुआ है। 1 अक्तूबर के अंक
में सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित इस लेख का शीर्षक है 'दी स्पेक्टर आफ
मोदी' यानी मोदी का हौव्वा। इसके लेखक हैं सुनील शरण। लेखक के संबंध
में दैनिक ने नाम के अतिरिक्त कोई अन्य जानकारी प्रदान नहीं की है।
लेखक ने इन दिनों भारत में जो राजनीतिक वातावरण है उसे ध्यान में रखते
हुए परिस्थितियों का मूल्यांकन करने की कोशिश की है। लेखक ने यह भी
स्पष्ट कर दिया है कि भारत में आम चुनाव 2014 में ही होंगे। लेकिन
भारतीय राजनीति में जो अस्थिरता का वातावरण है उसे देखते हुए मनमोहन
सिंह की सरकार किसी भी क्षण गिर सकती है। कांग्रेस चाहेगी कि इस समय
चुनाव न हों, लेकिन विपक्ष को यह महसूस होता है कि अब मनमोहन सिंह की
सरकार नहीं टिक सकती। यदि ऐसा हुआ तो भारत में सरकार कौन बनाएगा? लेखक
का मत है कि चुनाव हों या न हों लेकिन समय-समय पर किये गए जनमत संग्रह
से स्पष्ट है कि चुनाव जब भी होंगे एक बदलाव दिखाई पड़ेगा। इसमें मोदी
और एनडीए के अवसर उज्ज्वल हैं। भारतीय जनता पार्टी इस गठबंधन का सबसे
बड़ा घटक है।
आतंकित पाकिस्तान : लेख को पढ़ने से ऐसा लगता है कि
जिस पड़ोसी देश ने भारत पर चार-चार बार हमला बोला और जो आज भी भारत को
धूल चटाने के सपने देखता है वह अब भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री से
आतंकित है। उसका मानना है कि यदि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं
तो पाकिस्तान के साथ उनके संबंध ठीक नहीं रहने वाले हैं। एक विदेशी
अखबार ने पहली बार भारत के एक मुख्यमंत्री का लोहा माना है और यह
स्वीकार किया है कि मोदी यदि मुख्यमंत्री बने रहते तब तो उनके बारे
में चिंतन करने में गुंजाइश हो सकती थी लेकिन अब जबकि भारत में
कांग्रेस अंतिम सांसें ले रही है और केन्द्र में कांग्रेस विरोधी
सरकार बनने की पूर्ण संभावनाएं दिखाई पड़ रही हैं उस समय पाकिस्तान
चुप नहीं बैठ सकता है। पाकिस्तान का मीडिया आज तक नरेन्द्र मोदी के
संबंध में जो कुछ गुजरात में हुआ उसी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता
रहा। उन्हें मुस्लिम समाज के शत्रु के रूप में निरूपित करने में
अग्रणी रहा। लेकिन अब पाकिस्तान के मीडिया को इस बात का अहसास हो गया
है कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्थापित होने वाले हैं
तब 'डान' का चिंतन एक राज्य से निकलकर राष्ट्रव्यापी रूप धारण करता
दिखाई पड़ रहा है।
चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी के बयान पाकिस्तान को आहत कर रहे
हैं। लेखक का कहना है कि ऐसे समय में जबकि उनकी पार्टी भाजपा सत्ता
में आने का सपना देख रही है और पार्टी के कुछ लोग उन्हें
प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं, उनके बयान पाकिस्तान के लिए
डरावने लगते हैं। यद्धपि इन दिनों स्वयं मोदी अपने को ही पीड़ित बताने
में जुटे हुए हैं। लेखक आगे कहता है कि भाजपा ने जब पहले केन्द्र में
सरकार बनाई थी तो संयत व्यक्तित्व के स्वामी अटल बिहारी वाजपेयी ही
ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी लोकप्रियता सबसे अधिक थी। लेकिन उनके पश्चात
पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं है। इस बार यदि भाजपा जीतती है तो
बागडोर मोदी के हाथों में सौंपे जाने की संभावना है। तब सवाल उठता है
कि पार्टी का रवैया पाकिस्तान के साथ कैसा होगा? दूसरा सवाल यह है कि
मोदी पाकिस्तान के साथ कैसा व्यवहार करेंगे? जब भी दोनों देशों के बीच
रिश्तों में कड़वाहट आई है, समझदार नेतृत्व ने हालात बिगड़ने नहीं
दिये। लेकिन मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो हालात बिगड़ सकते हैं।
पाकिस्तान इसलिए परेशान है कि भाजपा के पास और कोई ऐसा नेता नहीं है
जिसको इतनी बड़ी संख्या में लोग समर्थन देते हों। लेखक का कहना है कि
मोदी को चाहिए कि वे पाकिस्तान के सामने अपनी मंशा स्पष्ट कर दें।
यानी यह बता दें कि वे यदि सत्ता में आ गए तो भारत के साथ पाकिस्तान
के रिश्ते कैसे होंगे?
मुस्लिम चिंतन : पाकिस्तान में यह पहला अवसर है कि
जब किसी एक व्यक्ति के बारे में इतनी गहनता से विचार हो रहा है। देखा
जाए तो मोदी ने अब तक पाकिस्तान के लिए ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जिससे
उसे चिंता करने की आवश्यकता है। लेकिन मोदी की लोकप्रियता से वह भयभीत
लगता है।
लेखक की इस बात का विश्लेषण करें तो 1969 में जब गुजरात में कांग्रेस
का राज था, उस समय जो भीषण दंगे हुए थे वे 2002 में हुए दंगों को पीछे
छोड़ जाते हैं। यहां दंगों की चर्चा बार-बार इसलिए होती है कि
कांग्रेस मुसलमानों के नाम पर गुजरात में अगला चुनाव जीतना चाहती है।
इसलिए जब तक वह मोदी को अपना निशाना न बनाए तो उसका काम सरल नहीं हो
सकता है। आजादी के बाद अधिकतर समय तो कांग्रेस ही सत्ता पर रही है। इस
बीच जो भयंकर दंगे होते रहे हैं क्या इसके लिए मोदी जिम्मेदार हैं? सच
तो यह है कि गुजरात में समझदार मुसलमानों का जो वर्ग है वह इस पर भी
चिंता करता है कि बार-बार मोदी का नाम लेकर कांग्रेस मुसलमानों को
उनका विरोधी बनाना चाहती है लेकिन क्या इस प्रकार का अभियान मुसलमानों
के लिए हितकारी है? मुसलमानों के नाम पर जीत हो कांग्रेस की और उसका
खामियाजा भरें मुसलमान, इस मुद्दे पर भी मुसलमानों का चिंतन जारी
है।
पाकिस्तान भारत को इस्रायल बना देना चाहता है ताकि
कोई भी मुस्लिम देश भारत को समर्थन देने से दूर रहे। लेकिन यह संभव
नहीं है। पाकिस्तान भुट्टो के दौर में यह सब करने का प्रयास करता रहा
लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। सऊदी अरब से लेकर खाड़ी के देश और ईरान से
लेकर अफगानिस्तान,पाकिस्तान की तुलना में भारत के अधिक निकट रहे हैं।
अफगानिस्तान तो आज भी इस बात पर मन ही मन पछताता है कि यदि उस पर
अमरीका और रूस के आक्रमण के समय उसने भारत का हाथ पकड़ा होता तो आज
उसके यहां अलकायदा और तालिबान का जन्म नहीं हुआ होता। यह जो कुछ हुआ
है वह पाकिस्तान का साथ लेने से हुआ है। इसलिए पाकिस्तान की यह
मनोकामना कभी पूर्ण होने वाली नहीं है। मात्र एक मोदी के मामले को
उछाल कर इस्लामी जगत को भारत से दूर नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त
लेख में मोदी की जीत को भारत की विदेशी नीति से जोड़कर इस्लामी जगत को
चौकन्ना करना पाकिस्तान की सनक तो हो सकती है, लेकिन इस्लामी जगत की
वास्तविकता नहीं।
पाञ्चजन्य
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