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भारतीय बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अमेरिका के मूल निवासियों को ‘इंडियन्स’ कहा जाता है, क्योंकि जिस
कोलंबस ने अमेरिका की खोज की थी, वह वास्तव में ‘इंडिया’ की खोज के
लिए ही निकला था| उसने अमेरिका के आदिवासियों को पहले-पहल ‘इंडियन’
कहकर ही संबोधित किया था लेकिन अब सचमुच के ‘इंडियन’ लोग अमेरिका में
लाखों की संख्या में पहुंच गए हैं| इन्हें आजकल ‘इंडियन-अमेरिकन’ कहा
जाता है|
इस समय भारतीय मूल के लगभग 32 लाख लोग अमेरिका में रहते हैं| इन लोगों
में सूरिनाम, टि्रनिडाड, गयाना, मोरिशस और फिजी के लोग भी हैं| इनमें
से लगभग 12 लाख लोगों को वोट का अधिकार भी है याने ये लोग बाक़ायदा
अमेरिका के नागरिक हैं| वे चाहें तो चुनाव भी लड़ सकते हैं| वे
पार्षद, महापौर, विधायक, राज्यपाल, सीनेटर, कांग्रेसमेन और यहां तक कि
उप-राष्ट्रपति भी बन सकते हैं| वे लोग राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़
सकते, जो अमेरिका में पैदा नहीं हुए हैं| दूसरे शब्दों में अगले 25-30
साल में जब भारतीयों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी तैयार होगी, तब तक ऐसे
सैकड़ों जवान निकल आएंगे, जो राष्ट्रपति-भवन का दरवाजा भी खटखटाएंगे|
अभी वे राज्यपाल बने हैं, अन्य स्थानीय और प्रांतीय पदों पर भी
नियुक्त हुए हैं और ओबामा प्रशासन में अनेक संघीय जिम्मेदारियां भी
निभा रहे हैं| उप-राष्ट्रपति और राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना उनके लिए
बहुत कठिन नहीं है| खुद ओबामा इस तथ्य के प्रमाण हैं|
भारतीय मूल के लोगों को पहली खूबी तो यह है कि वे शत प्रतिशत
सुशिक्षित हैं| इस समय अमेरिका के बड़े से बड़े औद्योगिक, अकादमिक और
व्यावसायिक संस्थानों में भारतीयों का डंका बज रहा है| दूसरा, अमेरिका
के प्रवासियों में भारतीय समुदाय सबसे अधिक संपन्न है| भारतीयों के
मकान, वस्त्र्, कारें आदि सामान्य अमेरिकियों से बेहतर होते हैं|
तीसरा, भारतीयों की संस्कृति अन्य लोगों के लिए अनुकरणीय होती है|
भारतीय परिवारों का आदर्श वातावरण वहां सबको प्रभावित करता है| चौथा,
स्वयं भारत जिस गति से आगे बढ़ रहा है, उसका सीधा असर
‘इंडियन-अमेरिकन’ लोगों की छवि पर भी पड़ता है| पिछले दस वर्षों में
भारतीय मूल के लोगों की संख्या लगभग दुगुनी हो गई है| कोई आश्चर्य
नहीं कि अगले 15-20 साल में वह एक करोड़ का आंकड़ा भी पार कर जाए| ऐसी
स्थिति में भारतीय मूल का कोई अमेरिकी नागरिक अमेरिका का राष्ट्रपति
बन जाए, यह असंभव नहीं है| हम कर रहे हैं, उस दिन का इंतजार!
साभार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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