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सर्न में भारतीय वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी का अहम योगदान : धरती पर सृष्टि की रचना कैसे हुई?
जिनिवा, विश्व की निगाहें आज यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च
(सर्न) पर केंद्रित थीं जिसने गॉड पार्टिकल की खोज करने का दावा किया
लेकिन इसके सुखिर्यों में आने के पीछे भारतीय वैज्ञानिकों और
प्रौद्योगिकी का भी अहम योगदान है। गॉड पार्टिकल के बारे में माना
जाता है कि इसकी ब्रह्मांड की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका है।
वैज्ञानिकों ने आज दावा कि उन्होंने एक सूक्ष्म अणु (सबएटोमिक
पार्टिकल) को खोज निकाला है जो कि हिग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल से
मिलता-जुलता है और जिसके बारे में माना जाता है कि वह ब्रह्मांड की
उत्पत्ति में महत्वपूर्ण है। इस खोज से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के
रहस्यों को समझने में मदद मिलेगी।
स्विट्जरलैंड स्थित सर्न के वैज्ञानिकों ने पांच दशक से जारी हिग्स
बोसॉन या ‘गॉड पार्टिकल’ खोजने के अभियान में महत्वपूर्ण सफलता मिलने
की घोषणा की। गॉड पार्टिकल के बारे में माना जाता है कि यह उन कणों को
द्रव्यमान प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है जिससे 13.7 अरब वर्ष पहले
हुए बिग बैंग (महाविस्फोट) के बाद अंतत: तारों और ग्रहों का निर्माण
हुआ।
सर्न में जो कुछ भी हो रहा है उसका एक महत्वपूर्ण भारतीय संबंध है और
वह है भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस। एक सूक्ष्म अणु (सबएटोमिक
पार्टिकल) का नाम में ‘बोसोन’ बोस के नाम से ही लिया गया है। बोस के
अध्ययन ने अणु भौतिकी के अध्ययन का तरीका ही बदल दिया। हिग्स बोसॉन ही
वह अणु है जो कि सैद्धांतिक कारण है कि ब्रह्मांड में सभी पदाथरें का
द्रव्यमान होता है।
हिग्स बोसॉन नाम ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स और बोस के नाम से लिया
गया है। हिग्स ने बोस और अलबर्ट आइंस्टीन की ओर से किये गए कार्यों को
आगे बढ़ाया जिससे आज की खोज संभव हो सकी।
गत वर्ष सर्न के प्रवक्ता पाउलो गिउबेलिनो ने कहा था, ‘‘भारत इस
परियोजना का ऐतिहासिक जनक जैसा है।’’
सर्न से करीब दस भारीतय संस्थान जुड़े हुए हैं। इसमें मुख्य रूप से
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर स्थित
इंस्टीट्यूट आफ फिजिक्स, पंजाब विश्वविद्यालय, गुवाहाटी विश्वविद्यालय
और राजस्थान तथा कोलकाता स्थित साहा इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर
फिजिक्स, वैरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रान सेंटर, बोस इंस्टीट्यूट और
आईआईटी मुम्बई शामिल है।
सर्न हार्डवेयर के सबसे मुख्य घटकों में आठ हजार टन वजनी चुंबक शामिल
है जो कि एफिल टावर से भी भारी है और इसका निर्माण भारतीय योगदान से
हुआ। इसके साथ ही इस प्रयोग में इस्तेमाल लाखों इलेक्ट्रॉनिक चिपों का
निर्माण चंडीगढ़ में हुआ। इसके साथ ही सुरंग को सहारा देने वाला
हाइड्रोनिक स्टैंड भी भारत में बना है। यह विश्व की सबसे बड़ी फ्रिज
जैसा है। सुरंग के भीतर का तापमान शून्य से 271 डिग्री नीचे है। इस
सुरंग में न्यूट्रिनो प्रति सेकंड 11 हजार बार सफर करता है।
सर्न के महत्वपूर्ण विभिन्न हार्डवेयर और साफ्टवेयर का निर्माण या तो
भारतीय सहयोग से या पूरी तरह से भारतीय कंपनियों द्वारा किया गया है।
परमाणु अनुसंधान विभाग (डीएई) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
(डीएसटी) भी सर्न से जुड़े हुए हैं।
न्यूज़ भारती
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