यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते दुनिया भर के निवेशकों का भारत पर से भरोसा बिखरता जा रहा है। धनाढ्य विदेशी प्रतिभूत..
पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं। किनारे पर खड़े रहने वाले कभी
नहीं डूबते। लेकिन किनारे पर खड़े रहने वाले लोग कभी तैरना भी तो नहीं
सीखते। - सरदार बल्लभ भाई पटेल
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई के पूर्व निदेशक आर.के.राघवन की
अध्यक्षता में गठित किए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अमदाबाद की
गुलबर्ग सोसायटी में गुजरात दंगों के दौरान हुई हिंसा के बारे में
लगभग साढ़े पांच हजार पृष्ठों की जो "क्लोजर रिपोर्ट" दी है, उसमें
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनके प्रशासन की किसी भी
भूमिका को पूरी तरह अस्वीकार किया जाना और मुख्यमंत्री के साथ-साथ
गुजरात के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक व अमदाबाद के पुलिस आयुक्त सहित
62 लोगों को "क्लीन चिट" दिया जाना उन मोदी विरोधियों के मुंह पर एक
तमाचा है जो गत दस वर्षों से मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगाकर गुजरात दंगों
को लेकर मोदी की एक "राक्षसी छवि" बनाने में लगे हैं।
रपट में "एसआईटी" ने मोदी और उनकी सरकार के विरुद्ध कोई सबूत न होने
के कारण इस मामले को बंद करने की भी सिफारिश की है। जबकि तीस्ता
सीतलवाड़ जैसे सेकुलरों ने तो अपने इस मोदी विरोधी झूठ को सही साबित
करने के लिए गवाहों को खरीदने और फर्जी गवाह खड़े करने तक के घटिया
हथकंडे अपनाने से भी परहेज नहीं किया और हर बार मुंह की खाई, यहां तक
कि अदालत से भी उन्हें फटकार मिली।
अब इस दुष्प्रचार का अंत होना चाहिए, क्योंकि कई मौकों पर यह सफेद झूठ
उजागर हो चुका है और मोदी इस सबसे निर्लिप्त गुजरात में सुशासन, विकास
व सामाजिक सद्भाव निर्माण के अपने राजधर्म में पूरी तन्मयता से लगे
रहे हैं। इसका परिणाम सामने है कि मोदी विरोधी अलग-थलग पड़ गए हैं,
उनकी विश्वसनीयता खत्म हो गई है और गुजरात पूरी तरह इस
हिन्दुत्वनिष्ठ, समाजसेवी व कुशल प्रशासक राजनेता के साथ खड़ा है।
देवबंद में वस्तानवी प्रकरण ने भी मोदी की
लोकप्रियता को स्पष्ट कर दिया था जब गुजरात में बिना भेदभाव के
मुस्लिम समाज के उन्नयन में मोदी सरकार की भूमिका की प्रशंसा करते हुए
वस्तानवी ने अपना कुलपति पद भी दांव पर लगाने की परवाह नहीं की और
हिम्मत के साथ सच्चाई सामने रखी, अंतत: वस्तानवी को इसकी कीमत चुकानी
पड़ी।
मोदी की लोकप्रियता तो सात समंदर पार इंग्लैंड की पत्रिका
"इक्नॉमिस्ट" से होती हुई उस अमरीका के भी सिर चढ़कर बोल रही है,
जिसने कथित मानवाधिकारों के हनन का हवाला देकर मोदी को वीजा देने से
इनकार कर दिया था, जबकि मोदी ने तो वीजा मांगा ही नहीं था। आज तो
अमरीका की मानवाधिकारों के मामले में चौधरी बनने की हनक उसी की विश्व
प्रसिद्ध पत्रिका "टाइम" और अमरीकी संसद से जुड़े एक शोध संस्थान ने
मोदी की प्रशंसा में आगे आकर तोड़ दी है। इनका भी मानना है कि मोदी के
नेतृत्व में गुजरात विकास व सुशासन में अनुकरणीय राज्य बन गया है।
"टाइम" पत्रिका के द्वारा मोदी के राज-काज पर आवरण कथा प्रकाशित किया
जाना व अपने मुखपृष्ठ पर प्रमुखता से मोदी का चित्र छापना क्या
दर्शाता है?
विश्व की प्रमुख और प्रभावी हस्तियों में मोदी की गणना किया जाना उन
पर जबर्दस्ती थोपी जाने वाली उनकी "मुस्लिम विरोधी खलनायक" की छवि का
करारा जवाब है। मोदी के नेतृत्व में गुजरात की शांतिपूर्ण विकास
यात्रा ने उनके विरुद्ध सेकुलरों व कांग्रेस के सुनियोजित दुष्प्रचार
की धज्जियां उड़ा दी हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा कभी उन्हें "मौत का सौदागर" कहा
जाना आज कांग्रेस को ही मुंह चिढ़ा रहा है, जब एक सर्वेक्षण में देश
के प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को 24 प्रतिशत लोगों ने और कांग्रेस
के "तारणहार" माने जाने वाले "युवराज" राहुल गांधी को महज 17 प्रतिशत
लोगों ने ही पसंद किया। इस सच्चाई के सामने तो कांग्रेस की शह पर जुटी
पूरी सेकुलर जमात का मोदी विरोधी दुष्प्रचार का षड्यंत्र ध्वस्त होता
दिखाई पड़ रहा है कि जिन मोदी के नाम पर मुस्लिमों को बरगलाकर उनके
वोट कबाड़ने की जुगत में ये तत्व जुटे रहते थे, आज वही मोदी अपनी
हिन्दुत्वनिष्ठ दृढ़ता व लोकहितकारी प्रशासनिक कौशल के कारण कांग्रेस
के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़े है, जिनके सामने कांग्रेसी
नेतृत्व बेहद बौना दिखता है और देश की जनता किंवा अधिसंख्य मुस्लिमों
के बीच भी मोदी की लोकप्रियता का स्तर निरंतर बढ़ रहा है।
यहां तक कि "टाइम" पत्रिका भी मोदी को भारत के
अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है, जो राहुल गांधी के मुकाबले
बहुत मजबूत दावेदार हैं। "एसआईटी" की रपट आने के बाद मोदी ने ठीक ही
कहा है कि "गुजरात की विकास यात्रा को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक
सकती।" यह उनकी संकल्पशक्ति, राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और जनसेवा की
भावना की ही अभिव्यक्ति है। अब देश की जनता गुजरात से बाहर उनकी
राष्ट्रीय भूमिका की प्रतीक्षा कर रही है।
- पाञ्चजन्य
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