बेंगलुरु।। विपक्षी पार्टियां और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां के बाद देश के दिग्गज उद्योगपतियों ने भी यूपीए सरकार को आर..
प्रधानमंत्री लाखों कपास उत्पादक किसानों के साथ खिलवाड़ बंद करें : मोदी का आक्रोश

मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर मांग की है कि कपास के निर्यात पर
पाबंदी का यूपीए सरकार के प्रतिवर्ष किए जाने वाले ऐसे मनगढंत
निर्णयों से सबसे ज्यादा नुकसान गुजरात के कपास किसानों को होता है और
अरबों रुपये का आर्थिक घाटा सहन करना पड़ता है। इसलिए कपास पर से
निर्यात का प्रतिबंध तत्काल खत्म किया जाना चाहिए। हर साल केंद्र की
विकृत नीति का शिकार देश में सबसे ज्यादा गुजरात के कपास बनते हैं।
गुजरात के शंकर कपास की उच्च गुणवत्ता की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार
में भारी मांग है। इसलिए इसके निर्यात पर लगे केंद्रीय प्रतिबंध में
से स्थायी मुक्ति दी जानी चाहिए।
मोदी ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है कि पिछले वर्ष भी
कपास के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय कर अचानक गुजरात के
किसानों को 14 हजार करोड़ रुपये का भारी-भरकम आर्थिक घाटा करवाया गया
और इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भाव नीचे जाने के बाद कपास के
निर्यात की छूट दी गई। इससे भी किसानों को आर्थिक घाटा हुआ।
कपास के निर्यात पर प्रतिबंध संबंधी अचानक किए जाने वाले निर्णय पर
सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों और
उसके साथ स्थापित हित रखने वाली कई टैक्सटाइल मिलों और कॉटन यार्न
उत्पादक के बीच सांठगाठ हो गई है, क्योंकि इन टैक्सटाइल मिलों-यार्न
उत्पादकों के पास 52 लाख कपास गांठों का स्टाक होना चाहिए।
लेकिन अभी यह सिर्फ 27 लाख गांठे ही है, इससे साबित होता है कि
जान-बूझकर ऐसी साजिश रची जाती है। भारत में कपास की कृत्रिम कमी का
षड्यंत्र रचकर अब न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम भाव में किसानों का
कपास खरीदा जाता है।
यह किसान विरोधी षड्यंत्र ही है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में
गुजरात के शंकर कपास की उत्तम गुणवत्ता की वजह से भारी मांग है, ऐसे
में कपास निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया गया है। कपास उत्पादक
किसानों के पास इसका संग्रह करने की कोई व्यवस्था नहीं होती, इसलिए
महंगे कपास को किसानों से निम्नतम भावों पर खरीद लेने की यह चाल
है।
मोदी ने कहा कि गुजरात के कपास किसान कपास के अधिकतम उत्पादन और
निर्यात द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में भारी योगदान देते हैं, ऐसे
में विशाल किसान समाज के हितों की सरेआम उपेक्षा कर राज्य सरकार के
साथ परामर्श किए बगैर ऐसा किसान विरोधी निर्णय किस प्रकार लिया जा
सकता है? क्या राज्य के कृषि हितों की कोई परवाह नहीं की जाती?
मोदी ने पत्र में लिखा है कि इस वर्ष भारत में 365 लाख कपास
गांठों का उत्पादन हुआ है और गुजरात के किसानों ने पिछले वर्ष 98 लाख
कपास गांठों का उत्पादन किया था। इसकी तुलना में इस वर्ष तो 116 लाख
गांठ उत्पादन होने का अनुमान है। गुजरात के किसानों ने उत्तम क्वालिटी
के शंकर की गुणवत्ता ऊपर लाने के लिए दस वर्ष से पसीना बहाया है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुजरात के शंकर कपास की मांग अधिकतम रही है
और भाव भी ऊंचे आ रहे हैं। ऐसे में, निर्णयात्मक समय पर गुजरात के
लाखों कपास उत्पादकों पर निर्यात पाबंदी का डंडा चलाकर उन्हें कंगाल
बनाने की साजिश केंद्र की यूपीए सरकार कर रही है। पिछले वर्ष भी ऐसा
ही षड्यंत्र किया गया था और किसानों का आक्रोश बढऩे पर निर्यात पर से
प्रतिबंध हटाने का नाटक किया गया था। तब, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में
भाव घट गए थे और स्थानीय बाजारों में भाव नीचे चले गए थे। तब गुजरात
के किसान को कपास बेचने के लिए मजबूर किया गया था, जिससे उन्हें 14
हजार करोड़ रुपये का भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
केंद्र सरकार ने रातोंरात कपास के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है और
इसके साथ ही किसानों द्वारा लिए गए निर्यात के रजिस्ट्रेशन लाइसेंस को
भी रद्द कर तानाशाही की सीमाएं लांघ दी गई है।
मोदी ने कहा कि गुजरात के कपास की उत्तम गुणवत्ता की वजह से चीन इसका
सबसे बड़ा खरीददार है। परन्तु गुजरात का उत्तम कपास ऊंचे भाव पर
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचकर चीन लाभ कमाता है। जबकि वास्तव में
यह फायदा गुजरात के किसान को मिलना चाहिए। इसके बावजूद केंद्र में
स्थापित हित रखने वाले टैक्सटाइल मिलों के मालिकों को लाभ करवाने के
लिए गुजरात के लाखों किसानों का आर्थिक नुकसान किया जा रहा है। गुजरात
का किसान अब इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।
मुख्यमंत्री ने कपास के निर्यात पर लगा प्रतिबंध तत्काल हटा लेने और
गुजरात के शंकर कपास के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को स्थायी रूप से
हटाने की मांग करते हुए चेतावनी दी है कि गुजरात के कपास उत्पादक
किसानों के हितों के साथ अन्याय करने की हरकत केंद्र को भारी
पड़ेगी।
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