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उच्च न्यायालय ने ठुकराई पादरी समिति की गीता पढ़ाने का विरोध करने वाली याचिका

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता का झंडा लेकर भारतीय
संस्कृति एवं परम्पराओं पर कुठाराघात करने एवं उन्हें
लहू-लुहान करने की कुत्सित मानसिकता पर राम बाण प्रहार करते
हुए विद्यालयों में छात्रों को भगवद गीता पढ़ाने के
प्रदेश सरकार के निर्णय के विरोध में दायर की गयी याचिका को १० मिनट
में ठुकरा दिया | याचिका कैथोलिक पादरी बिशप काउन्सिल से गत वर्ष
अगस्त में दायर की थी | तब न्यायालय ने वादी को गीता पढके आने के लिए
कहा था |
काउन्सिल के प्रवक्ता 'फादर' आनंद मुत्तंगल की याचिका में कहा गया था
की मध्य प्रदेश सरकार को "किसी एक धर्म की शिक्षाएँ पढ़ानें
की जगह सभी धर्मों को पढ़ाना चाहिए" | याचिका में भारतीय
प्रतीकों, एवं कथानकों से लिए गए नामों पर भी आपत्ति करते हुए कहा गया
था कि सरकार की योजनायें जैसे "लाडली लक्ष्मी", "बलराम ताल", "कपिल
धारा" आदि हिन्दू नामों पर आधारित हैं और "सेकुलर" नहीं हैं | सरकारी
कार्यक्रमों में भूमि पूजन करना सेकुलरिस्म का उल्लंघन है |
याचिका सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अजित सिंह एवं संजय
यादव ने वादी के अधिवक्ता से पूछा कि क्या उन्होंने गीता पढ़ी
है | उनके उत्तरों से असंतुष्ट न्यायालय ने निर्णय दिया कि
गीता निश्चित रूप से भारतीय दर्शन का ग्रन्थ है न कि किसी धर्म विशेष
का | निर्णय से निराश पादरी ने कहा कि वो निर्णय पढ़ के फिर
आगे अपील करने पर विचार करेंगे |
आईबीटीएल विचार : प्रश्न ये उठता है कि भारत
की ही संतान होकर क्यों कुछ लोग सूर्य नमस्कार एवं भगवद गीता
जैसे मानव मात्र के लिए कल्याणकारी सनातन रत्नों का विरोध करते हैं?
क्या कारण है कि भारत में ही जन्म लेकर भारत की ही गौरवशाली परम्पराओं
एवं साहित्य का विरोध करना कुछ धर्मावलम्बियों की विवशता अथवा रूचि बन
जाती है | प्रश्न ये भी है कि क्या ऐसा सेकुलरिस्म भारतीयता और सनातन
राष्ट्रवाद का ही शत्रु नहीं ? यदि ऐसा विकृत सेकुलरिस्म देश की
संस्कृति का ही शत्रु बन जाए, तो भारतीय जन मानस को उस पर विचार करने
की आवश्यकता है |
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