सरकारी लोकपाल विधेयक के विरोध में अनशन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे को मिल रहे जन समर्थन पर भारत के सेना प्रमुख ..
क्या विदेशी कंपनियों के आने से लोगों को आजीविका मिलती है, गरीबी कम होती है? : राजीव दीक्षित
क्या विदेशी कंपनियों के आने से भारत का निर्यात बढ़ता है
(भाग ०३) से आगे पढ़ें... जैसे जैसे विदेशी कंपनियां भारत में बढ़ रही
है यहाँ गरीबी बढ़ती जा रही है, इसे समझने के लिए अगर इस तर्क को मान
लें कि विदेशी कंपनियों के आने से देश की पूंजी बढ़ती है तो स्वाभाविक
है कि गरीबी कम हो जानी चाहिए।
जब १९४७ (1947) में भारत स्वतंत्र हुआ तब इस देश में एक विदेशी कंपनी
को हमने भगाया था जिसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी था किंतु इसके मात्र दो
वर्ष पश्चात ही १५६ (156) विदेशी कंपनियों को बुला लिया गया। जवाहर
लाल नेहरु ने १९४९-५० (1949-1950) में पहली औद्योगिक नीति बनाई,
उन्होंने संसद में घोषणा की, कि हमारे पास पैसे कि कमी है अंग्रेज
यहाँ से सब धन लूट कर ले गए है, कोष रिक्त है अतैव भारत का विकास करना
है तो विदेशी पूंजी चाहिए, ऐसा लंबा भाषण १९४८ (1948) में लोकसभा में
उन्होंने दिया।
जब भारत में १५६ विदेशी कंपनियां आई तब भारत में गरीबों कि संख्या
सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग ४.५ (4.5) करोड़ थी। अब हमारे देश में
विदशी कम्पनीयों की संख्या बढ़ कर ५००० (5000) हो गई तो १५६ कंपनियां
जितनी पूंजी लायीं थी, ५००० कंपनियां उससे अधिक ही लायेंगी तो इसका
अर्थ यह है पूंजी और बढ़ जायेगी तो गरीबी कम हो जायेगी लेकिन भारत
सरकार के ही आंकडें हैं कि इस समय भारत में गरीबों की संख्या ८८ (88)
करोड़ है। गरीबों कि संख्या में २१ गुना वृद्धि हुई है सीधा सा अर्थ है
कि भारत कि लूट में अत्यधिक वृद्धि हुई है इसी कारण गरीबी कि संख्या
बढ़ी है।
इसलिए प्रति वर्ष गरीबों कि संख्या में वृद्धि होती है क्यूंकि पूंजी
यहाँ से लूट कर विदेशों में चली जाती है यहाँ पूंजी विदेश से आती नहीं
है यह बात आपके समझ में आये तो बहुत अच्छा है क्यूंकि हमारे देश में
सरकार कि भाषा बोलने वाले कई लोग है जब हम विदेशी कंपनियों को भगाने
कि बात उठाते है तो वह प्रश्न उठाते है पूंजी कहाँ से आएगी? तो आप इन
आकड़ो कि सहायता से बताइये कि पूंजी हमारी जा रही है और यदि हम इन
विदेशी कंपनियों को भगा देते है। इनके अधिकार (लाइसेन्स) रद्ध कर देते
है तो पूंजी का बाहर जाना रुक जाएगा तो इस देश में पूंजी बढ़ना, गरीबी,
बेकारी का कम होना स्वतः प्रारंभ हो जाएगा। अगले भाग में पढेंगे :
क्या विदेशी कंपनियों के आने से तकनीकी आती है?
# भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा की जा रही लूट : राजीव
दीक्षित (भाग ०१)
# क्या विदेशी कंपनियों के आने से पूंजी आती है : राजीव दीक्षित
(भाग ०२)
# क्या विदेशी कंपनियों के आने से भारत का निर्यात बढ़ता है :
राजीव दीक्षित (भाग ०३)
- भाई राजीव दीक्षित | अन्य लेखों के लिए
राजीव भारत खंड पढ़ें
Share Your View via Facebook
top trend
-
लोकतंत्र की और लोगों की ताक़त का संकेत है, सेनाध्यक्ष वीके सिंह
-
मुर्शरफ़ की संपत्ति ज़ब्त करने का आदेश : आतंकवादी निरोधक अदालत, पाकिस्तान
पाकिस्तान में एक आतंकवादी निरोधक अदालत ने निर्देश दिया है कि पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ की संपत्ति ज़ब्त कर ली जाए. ..
-
अन्ना के बाद अब दिग्विजिय सिंह गए मौन व्रत पर, मीडिया में मचा हड़कंप - फ़ेकिंग न्यूज़
Oct 18 2011 01:20:00 PM| अन्ना हज़ारे को मौन व्रत पर गए अभी एक दिन भी नहीं बीता कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी मौ..
-
आरटीआई में बदलाव का विरोध करेगी भाजपा
सरकार को पारदर्शी बनाने के लिए सूचना का अधिकार [आरटीआई] कानून को प्रभावी हथियार बताते हुए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने प्..
-
नरेन्द्र मोदी की और कितनी अग्नि परीक्षाएं?
पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं। किनारे पर खड़े रहने वाले कभी नहीं डूबते। लेकिन किनारे पर खड़े रहने वाले लोग कभी तैरना ..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)