भारतीय प्रेस परिषद के नये अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने भारतीय इलेक्ट्रानिक एवं प्रिण्ट मीडिया को सरेआम लताड़ते हुए ..

आज फिर मुंडकोपनिषद का सार मंत्र - "सत्यमेव जयते" भारत मे गूंज
उठा और एक कड़वा सत्य सामने आया कि कन्या भ्रूण हत्या जैसी वीभत्स
सामाजिक बुराई को जन्म देने मे काँग्रेस की अविचारी नीतियों का हाथ
है। इस तथ्य को कपोल कल्पना मानकर खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि
तत्कालीन सरकार पर इसी प्रकार के अन्य गंभीर आरोप अर्थात ज़बरदस्ती
नसबंदी करवाने आदि जैसे आरोप भी लग चुके है। जाहिर है काँग्रेस
का उद्देश्य समस्या को खत्म करने की बजाय पीड़ित को ही खत्म करना रहा
है।
शो मे डॉक्टर साहब ने खुलासा किया कि कन्या भ्रूण हत्या की शुरुआत 70
के दशक मे तत्कालीन सरकार (सर्वज्ञात है कि उस वक़्त इन्दिरा सरकार
सत्ता मे थी) ने की थी। चूंकि लोग बेटे की चाह मे कई बच्चों (लड़कियों)
जन्म दे देते थे अतः इस अविवेकी बर्बर सरकार ने बड़े अस्पतालों के
चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिये कि जनसंख्या कम करने के लिए
अनचाही बच्चियों को खत्म कर दिया जाये और कन्या भ्रूण हत्या के लिए
माँ बाप को प्रेरित किया जाए।
कुछ समय पश्चात महिला अधिकार संगठनों का ध्यान इस बर्बर सरकारी कृत्य
पर गया और उनके विरोध के चलते सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा। किन्तु
तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चिकित्सा के पवित्र पेशे का व्यापारीकरण
करने वाले चिकित्सक और बच्चियों को बोझ मानने वाले लोग, दोनों ही
अवैधानिक गर्भपात के पैशाचिक हथियार से परिचित हो चुके थे। यह हथियार
भारतीय समाज के लिए अत्यंत विध्वंसक साबित हुआ। आज महिलाओं की
घटती आबादी, कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार हेतु
कहीं ना कहीं इन्दिरा सरकार की यह वीभत्स नीति जिम्मेदार है। कन्याओं
को देवी मानने वाले इस देश मे आज नन्ही बेटियों को पैदा होने से
पहले ही मार डाला जाता है।
हालांकि यह कृत्य कतई माफी लायक नहीं है किन्तु समय आ गया है कि इस
खुलासे के बाद काँग्रेस को नैतिक आधार पर देश से और खासकर भारतीय
महिलाओं से माफी मांगनी चाहिए।
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