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भारतीय इतिहास की गौरवशाली गाथा है शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

रायगढ़ में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार 6 जून 1674 को हुआ
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हिंदू इतिहास की सबसे गौरवशाली
गाथाओं में से एक है। सैकड़ों वर्ष विदेशियों के गुलाम रहने के पश्चात
हिंदुओं को संभवतः महान विजयनगर साम्राज्य के बाद पहली बार अपना राज्य
मिला था।
# Shivaji's coronation ceremony at Raigarh (6th June
1674)
उस दिन, शिवाजी का राज्याभिषेक कशी के विद्वान महापंडित तथा
वेद-पुराण-उपनिशदों के ज्ञाता पंडित गंगा भट्ट द्वारा किया गया।
शिवाजी के क्षत्रिय वंश से सम्बंधित न होने के कारण उस समय के अधिकतर
ब्राह्मण उनका राजतिलक करने में हिचकिचा रहे थे। पंडित गंगा भट्ट ने
शिवाजी की वंशावली के विस्तृत अध्ययन के बाद यह सिद्ध किया के उनका
भोंसले वंश मूलतः मेवाड़ के वीरश्रेष्ठ सिसोदिया राजवंश की ही एक शाखा
है। यह मन जाता था कि मेवाड़ के सिसोदिया क्षत्रिय कुल परंपरा के
शुद्धतम कुलों में से थे।
क्यूंकि उन दिनों राज्याभिषेक से सम्बंधित कोई भी अबाध परंपरा देश के
किसी हिस्से में विद्यमान नहीं थी, इसलिए विद्वानों के एक समूह ने उस
समय के संस्कृत ग्रंथों तथा स्मृतियों का गहन अध्ययन किया ताकि
राज्याभिषेक का सर्वोचित तरीका प्रयोग में लाया जा सके। इसी के
साथ-साथ भारत के दो सबसे प्राचीन राजपूत घरानों मेवाड़ और आम्बेर से भी
जानकारियां जुटाई गई ताकि उत्तम रीति से राजतिलक किया जा सके।
प्रातःकाल शिवाजी ने सर्वप्रथम शिवाजी महाराज ने प्रमुख मंदिरों में
दर्शन-पूजन किया। उन्होंने तिलक से पूर्व लगातार कई दिनों तक माँ
तुलजा भवानी और महादेव की पूजा-अर्चना की।
6 जून 1674 को रायगढ़ के किले में मुख्य समारोह का आयोजन किया गया।
उनके सिंहासन के दोनों ओर रत्न जडित तख्तों पर राजसी वैभव तथा हिंदू
शौर्य के प्रतीक स्वरुप स्वर्णमंडित हाथी तथा घोड़े रखे हुए थे। बायीं
ओर न्यायादेवी कि सुन्दर मूर्ति विराजमान थी।
जैसे ही शिवाजी महाराज ने आसन ग्रहण किया, उपस्थित संतों-महंतों ने
ऊंचे स्वर में वेदमंत्रों का उच्चारण प्रारंभ कर दिया तथा शिवाजी ने
भी उन सब विभूतियों को प्रणाम किया। सभामंडप शिवाजी महाराज की जय के
नारों से गुंजायमान हो रहा था। वातावरण में मधुर संगीत की लहरियां
गूँज उठी तथा सेना ने उनके सम्मान में तोपों से सलामी दी। वाहन
उपस्थित पंडित गंगा भट्ट सिंहासन की ओर बढे तथा तथा उन्होंने शिवाजी
के सिंहासन के ऊपर रत्न-माणिक्य जडित छत्र लगा कर उन्हें ‘राजा शिव
छत्रपति’ की उपाधि से सुशोभित किया।
इस महान घटना का भारत के इतिहास में एक अभूतपूर्व स्थान है। उन दिनों,
इस प्रकार के और सभी आयोजनों से पूर्व मुग़ल बादशाहों से अनुमति ली
जाती थी परन्तु शिवाजी महाराज ने इस समारोह का आयोजन मुग़ल साम्राज्य
को चुनौती देते हुए किया। उनके द्वारा धारण की गयी ‘छत्रपति’ की उपाधि
इस चुनौती का जीवमान प्रतीक थी। वे अब अपनी प्रजा के हितरक्षक के रूप
में अधिक सक्षम थे तथा उनके द्वारा किया गए सभी समझोते तथा संधियां भी
अब पूर्व की तुलना मैं अधिक विश्वसनीय और संप्रभुता संपन्न थे।
शिवाजी महाराज द्वारा स्वतंत्र राज्य की स्थापना तथा संप्रभु शासक के
रूप में उनके राज्याभिषेक ने मुगलों तथा अन्य बर्बर विधर्मी शासको
द्वारा शताब्दियों से पीड़ित, शोषित, अपमानित प्रत्येक हिंदू का ह्रदय
गर्व से भर दिया। यह दिन भारत के इतिहास में अमर है क्योंकि यह
स्मरण करता है हमारे चिरस्थायी गौरव, संप्रभुता और अतुलनीय शौर्य की
संस्कृति का। आइये, मिलकर उद्घोष करें:
गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक, यवन-परपीडक, क्षत्रिय कुलावातंश, राजाधिराज,
महाराज, योगीराज, श्री श्री श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की जय !
जय भवानी।|
जय शिवराय !!
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