महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सीमा बर बसे, कपास के विख्यात व्यापार केन्द्र भैन्सा के श्री विवेकानंद आवासम् इस अनाथाश्रम मे..

प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप के विषय में बहुत कुछ लिखा जा चुका
है, बहुत कुछ लिखा जा रहा है। हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य
साहित्यकारों ने, राजनेताओं ने तथा अनेकों विशिष्ट व्यक्तित्वों
ने प्रताप के लिये शाब्दिक श्रद्धा सुमन चुने हैं।
प्रख्यात गांधीवादी कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी ने निम्न शब्दों में
प्रताप का ‘आह्वान' किया है--
लोचन प्रसाद पाण्डे ने अपनी लेखनी को यह लिखकर अमर दिया-
स्वातन्त्रय के प्रिय उपासक कर्म वीर।
श्री श्याम नारायण पाण्डे ने अपने काव्य हल्दीघाटी में इस वीर शिरोमणि का वर्णन निम्न ढंग से किया--
चढ़ चेतक पर तलवार उठा
बाबू जयशंकर प्रसाद ने अपने ऐतिहासिक काव्य ‘महाराणा का महत्व' में खानखाना के मुंह से कहलवाया--
सचमुच शहनशाह एक ही शत्रु वह
हरिकृष्ण प्रेमी ने अपनी श्रद्धा के सुमन निम्न शब्दों में अर्पित किये-
सारा भारत मौन हुआ जब
श्री सुरेश जोशी ने मानवता व प्रताप का वर्णन निम्न शब्दों में किया है।
राज तिलक सूं महाराणा पद पायो,
कन्हैयालाल सैठिया की प्रसिद्ध कविता पातल और पीथल में अपना संकल्प दोहराते हुए प्रताप कहते हैं-
‘हूं भूखमरूं, हूं प्यास मरूं,
प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री केसर सिंह बारहठ ने महाराणा श्री फतहसिंह को 1903 में एक पत्र लिखा, इस पत्र में उन्होंने महाराणा प्रताप के शौर्य, आनबान का वर्णन करते हुए महाराणा फतहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से मना किया था उसी पत्र की पंक्तियां प्रस्तुत हैं।
‘पग पग भाग्या पहाड़, धरा छौड़ राख्यों धरम।
आधुनिक खड़ी बोली में कई कवियों ने प्रताप को विषय बनाकर बहुत कुछ लिखा है। इन में प्रसाद, निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी, मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, नवीन, रामावतार, राकेश, श्याम नारायण पाण्डेय, रामनरेश त्रिपाठी,हरिकृष्ण प्रेमी आदि मुख्य हैं।
हरिकृष्ण प्रेमी की ये पंक्तियां--
प्रताप के त्याग, बलिदान, स्वातन्त्र्य भावना की कामना कवियों ने की है। रामनरेश त्रिपाठी ने प्रताप के वंशजों से कहा है--
‘हे क्षत्रिय! है एक बूंद भी
महाराणा प्रताप के विषय में सैकड़ों कविताएं, सोरठे हिन्दी, ब्रज भाषा, डिंगल, पिंगल आदि में उनके समय से ही मिलती है, यह बात उनकी लोकप्रियता, वीरोचित भावना तथा त्याग व बलिदान की ओर इशारा करती है। प्रख्यात कवि पृथ्वीराज राठोड़ ने ठीक ही कहा-
माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राणा प्रताप।
रचनाकार: यशवन्त कोठारी का आलेख : आधुनिक हिन्दी साहित्य में महाराणा प्रताप
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