कहते हैं गुरु का स्थान भगवान् के समकक्ष होता है और संकट के समय में सहायता करने वाला ही सच्चा मित्र होता है | भारतीय संस्कृ..
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अन्वेषण संस्थान के वैश्विक भुभुक्षा सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) २०११ के अनुसार भारत की खाद्य सुरक्षा अवस्था "चिंताजनक" बनी हुयी है | निकृष्टतम खाद्य सुरक्षा स्थिति वाले विश्व के ८१ देशों में भारत का स्थान ६७ वां है, अर्थात संसार में केवल १४ ऐसे देश हैं जिनसे पोषण अवस्था में भारत बेहतर स्थिति में है |
यह सूचकांक ३ समभारिक सूचकों से मिल कर बना है - प्रथम, कितने प्रतिशत जनता कुपोषण की शिकार है, दूसरा, कितने प्रतिशत बच्चे मानक से कम भार वाले हैं, एवं तीसरा ५ बर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर |
२०११ में भारत का सूचकांक २३.७ आँका गया है, जो की पिछले वर्ष की तुलना में नीचे है (यद्यपि १५ वर्ष पहले से तुलना करे तो यह बेहतर है) | पाकिस्तान, नेपाल, रवांडा एवं सूडान जैसे देश भी भारत से ऊपर हैं, यद्यपि बंगलादेश (भारत से २.५ गुना जनसँख्या घनत्व वाला देश), हैती (जो गत वर्ष भूकंप से तबाह हुआ था) और कोंगो (मध्य अफ्रीकी देश) हमसे भी हीनतर अवस्था में हैं |
यद्यपि कांगो अकेला देश है जिसकी खाद्य सुरक्षा की स्थिति गत १० वर्षों में हीनतर हुयी है, परन्तु अन्य सभी देशों की तुलना में भारत ने गत १० वर्षों में न्यूनतम प्रगति करने का अपयश अर्जित किया है | यद्यपि भारत की स्थिति "अत्यंत चिंताजनक" से "चिंताजनक" हो गयी है अर्थात भारत का सूचकांक २० से २९.९ के अंतराल में है | चीन, ब्राज़ील, एवं इरान वे देश हैं जिन्होंने गत दशक में अपने सूचकांक संखायों को आधा अथवा आधे से भी कम कर लिया है|
यूपीए सरकार मानसून सत्र में खाद्य सुरक्षा विधेयक नहीं ला पाए एवं अभी भी इस पर सहमति का अभाव है की खाद्य सुरक्षा विधेयक किसे "निर्धन" मान कर अनुवृत्त (सुब्सीडाइज्ड) मूल्य पर अन्ना उपलब्ध कराया जाना चाहिए |
संस्थान का प्रतिवेदन (रिपोर्ट) कहता है की वैश्विक खाद्य बाजारों में वर्धित अस्थिरता ३ कारणों से व्याप्त है - पहला, खाद्य फसलों का जैविक ईंधन के रूप में बढ़ रहा प्रयोग, जलवायु परिवर्तन एवं विषम मौसम, तथा तीसरा पण्य-द्रव्य के विपणन में बढ़ता व्यापार | ये कारण अत्यधिक संकेंद्रित निर्यात बाजारों से और अधिक बढ़ जाते हैं जो विश्व के खाद्य आयात को कुछ ही देशों पर निर्भर छोड़ने का काम करते हैं | ऐतिहासिक रूप से खाद्य भंडारों में हुआ ह्रास, एवं मांग एवं आपूर्ति के चक्र को सुनियोजित कर सकने वाली विश्व खाद्य निकाय से सम्बंधित समयबद्ध सूचनायों का अभाव भी इसके लिए उत्तरदायी हैं |
संस्थान के संचार निदेशक एवं इस प्रतिवेदन के प्रमुख लेखक क्लॉस वॉन ग्रेब्मर के अनुसार खाद्य मूल्यों में त्वरित वृद्धि अप्रत्याशित परिवर्तन से निर्धनतम लोगों का समूह सबसे अधिक त्रस्त होता है | ज्ञातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अन्वेषण संस्थान का यह प्रतिवेदन खाद्य एवं कृषि संगठन की "विश्व में खाद्य असुरक्षा की दशा - २०११" जिसने खाद्य मूल्य अस्थिरता के अगले एक दशक तक बढ़ने की संभावना जताई थी, उस के एक दिन बाद प्रकाशित हुआ है |
— अभिषेक टंडन (हिंदी)
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