शनिवार को संसद के दोनों सदनों में लोकपाल पर सार्थक बहस और प्रस्ताव पारित होने के बाद गांधीवादी अन्ना हजारे आज रविवार को दस..
भारत में कितने मुसलमान हैं, जिन्होंने उसकी किताब 'सेटेनिक वर्सेस' पढ़ी है?
सलमान रश्दी को जयपुर के साहित्योत्सव में आने दिया जाए या नहीं,
यह सार्वजनिक बहस का विषय बन गया है, क्योंकि अनेक मुस्लिम संगठनों ने
रश्दी को आने देने का डटकर विरोध कर दिया है| उन्होंने कहा है कि यदि
रश्दी आएगा तो वे उसके विरोध में जबर्दस्त प्रदर्शन करेंगे| उनकी इस
धमकी से सबसे ज्यादा बुखार किसे चढ़ रहा है? केंद्र सरकार और राजस्थान
सरकार को| केंद्र सरकार को इसलिए कि रश्दी को भारत में घुसने देने या
न देने का निर्णय उसे ही करना है और राजस्थान सरकार इसलिए परेशान है
कि वह साहित्योत्सव जयपुर में हो रहा है| यदि रश्दी आ गए तो विरोध के
नाटक का रंगमंच जयपुर में ही सजेगा|
इन दोनों सरकारों से ज्यादा परेशान कांग्रेस पार्टी है, क्योंकि ये
दोनों सरकारें उसी की हैं| इससे भी ज्यादा परेशानी का कारण यह है कि
पांच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं| उप्र का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है
और वहां मुस्लिम मतदाताओं का रूझान कांग्रेस की नय्रया डुबा सकता है
और तैरा भी सकता है| राजस्थान के सज्जन मुख्यमंत्री बेचारे अशोक गहलोत
की जान फिजूल ही सांसत में आ गई है| वे तो चाहेंगे कि यह बला किसी भी
कीमत पर टल जाए|
लेकिन इस मुद्दे पर काफी गंभीरता से सोचने की जरूरत है| सबसे पहला
सवाल तो यह है कि यह शख्स, सलमान रश्दी है कौन? इसे कितने मुसलमान
जानते हैं? भारत में कितने मुसलमान हैं, जिन्होंने उसकी किताब
'सेटेनिक वर्सेस' पढ़ी है? पढ़े-लिखे मुसलमानों ने भी उसे नहीं पढ़ा
है| क्या सारी दुनिया में से ऐसे दस-पांच मुसलमान भी निकले हैं,
जिन्होंने रश्दी की किताब पढ़कर इस्लाम का परित्याग कर दिया हो या
पैगंबर मुहम्मद साहब या अल्लाह में से उनका विश्वास हिल गया हो? ऐसी
कमजर्फ़ किताब पर प्रतिबंध लगाकर ईरानी आयुतुल्लाहों ने रश्दी को जबरन
ही विश्व-प्रसिद्घ लेखक बना दिया| इसके अलावा यह किताब न तो अरबी,
ईरानी, उर्दू और न ही हिंदी में लिखी गई है| अंग्रेजी की इस किताब के
पाठक कितने हैं और कौन हैं? उन पर कुछ मूर्खतापूर्ण तर्कों या
हंसी-मजाक की फूहड़ बातों का कितना असर होता है? उसकी किताब पर
प्रतिबंध तो लगा ही हुआ है, अब रश्दी पर प्रतिबंध लगाकर हमारे मुसलमान
नेता उसे महान लोगों की श्रेणी में क्यों बिठाना चाहते हैं|
हमारे औसत मुसलमानों का रश्दी से क्या लेना-देना है? उनको तो अपनी
रोजी-रोटी से ही फुर्सत नहीं है| उन्हें सांप्रदायिक राजनीति का मोहरा
क्यों बनाया जा रहा है? रश्दी जयपुर आता है तो उसे आने दीजिए| वह क्या
कर लेगा? भारत इतना बड़ा नक्कारखाना है कि उसमें उसकी आवाज़ तूती की
तरह डूब जाएगी| अगर आप उसको नहीं आने देंगे तो आप संविधान की अवहेलना
तो करेंगे ही, सारी दुनिया में भारत सरकार मज़ाक का पात्र भी बन
जाएगी|
डा. वैद प्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, एवं यह उनकी
व्यक्तिगत राय है)
Share Your View via Facebook
top trend
-
अन्ना नहीं छोड़ना चाहते रामलीला मैदान, प्रशांत भूषण इसके खिलाफ
-
विकी खुलासा: सुषमा-जेटली पर भरोसा नहीं इसलिए संघ ने बनवाया गडकरी को अध्यक्ष
विकीलीक्स के ताजा खुलासे ने बीजेपी के इन दावों की पोल खोल दी है कि वो बिना किसी ‘रिमोट कंट्रोल’ के चलती ह..
-
बाघिन भाग-भाग कर थक चुकी थी, फिर भी मार दिया...
सुबह से भाग-भाग कर बाघिन पूरी तरह थक चुकी थी। वह मुझसे सिर्फ 10 फीट दूर मानो आत्म समर्पण की मुद्रा में थी। मुझे लगा कि भीड..
-
टीम अन्ना के फेसबुक पर हमला तक़रीबन १२ घंटे से बंद !
इंडिया अगेंस्ट करप्शन के फेसबुक पेज को बंद हुए लगभग १२ घंटे से अधिक हो चुके हैं समस्त सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इसकी चर्चा..
-
राष्ट्रीय संपत्ति घोषित नहीं होगा काला धन, बाबा रामदेव के एक भी सुझाव पर अमल नहीं
नई दिल्ली। अब लगभग यह साफ होता जा रहा है कि केंद्र सरकार काला धन पर बाबा रामदेव के एक भी प्रमुख सुझाव पर अमल करने नहीं जा ..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)