अमित मिश्रा।। नई दिल्ली || ' अगला स्टेशन ..... है, दरवाजों से हटकर खड़े हों' जैसी आवाजें मेट्रो के पैसेंजरों के लिए आ..

पंडित भीमसेन जोशी को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। वह किराना
घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे। 1932 में वह
गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े। अगले दो वर्षो तक वह बीजापुर, पुणे
और ग्वालियर में रहे। उन्होंने ग्वालियर के उस्ताद हाफिज अली खान से
भी संगीत की शिक्षा ली। लेकिन अब्दुल करीम खान के शिष्य पंडित रामभाऊ
कुंडालकर से उन्होने शास्त्रीय संगीत की शुरूआती शिक्षा ली। घर वापसी
से पहले वह कलकत्ता और पंजाब भी गए।
पंडित भीमसेन जोशी ने अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को
समृद्ध किया और दूसरे घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में
समाहित किया। उनको इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने कई रागों को
मिलाकर कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की रचना की। उन्हें खयाल
गायन के साथ-साथ ठुमरी और भजन में भी महारत हासिल की है। पंडित भीमसेन
जोशी का देहान्त २४ जनवरी २०११ को हुआ।
भारत रत्न : ४ नवम्बर, २००८ को देश के सर्वोच्च
नागरिक सम्मान, भारत रत्न पुरस्कार के लिए चुना गया, जो कि भारत का
सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 'भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन
१९८५ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। कर्नाटक के गडक जिले में
4 फरवरी वर्ष 1922 को जन्मे पं. भीमसेन जोशी को इससे पहले भी पद्म
विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री समेत कई अलंकरण और सम्मान दिए जा चुके
हैं।
योगदान : किराना घराना के 86 वर्षीय शास्त्रीय गायक
पंडित भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की आयु में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच
से अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया था। उन्होंने पहली बार अपने गुरु
सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिवस पर जनवरी 1946 में पुणे अपना गायन
प्रस्तुत किया था। उनके द्वारा गाए गए गीत पिया मिलन की आस, जो भजे
हरि को सदा और मिले सुर मेरा तुम्हारा बहुत प्रसिद्ध हुए।
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