पड़ोसी पाकिस्तान और चीन से मिल रही गंभीर चुनौतियों के बीच भारतीय सेना के लिए एक चिंता में डालने वाली खबर है। सेना ने ..
दिल्ली में लगभग दो लाख रूपए की लागत से बना टॉयलेट अचानक गायब, थाने में रपट दर्ज
सूचना के अधिकार से अभी-अभी मालूम पड़ा है कि दिल्ली के एक गांव
में लगभग दो लाख रूपए की लागत से जो टॉयलेट बना था, वह अचानक गायब हो
गया है| नगर निगम ने एक सवाल के जवाब में माना है कि 2008 में इस
टॉयलेट को बनाने के लिए बाकायदा एक लाख 90 हजार रूपए खर्च हुए थे,
लेकिन अब एक नागरिक ने उसकी गुमशुदगी की रपट थाने में दर्ज कराई
है|
इस टॉयलेट का गायब होना क्या सचमुच कोई बड़ी खबर है? टॉयलेट तो बहुत
मामूली चीज है| बिहार और उत्तरप्रदेश में तो सड़कें, बांध, पुल, स्कूल
और अस्पताल गायब हो जाया करते थे| दो करोड़ क्या चीज है, आज के जमाने
में? उस सस्तेवाड़े में सौ-सौ करोड़ की सरकारी चीजें गायब हो जाती
थीं| उन दिनों हमारी राजनीति में महावीर त्यागी, राममनोहर लोहिया, मधु
लिमये और फिरोज गांधी जैसे सांसद हुआ करते थे| इस तरह की लूटपाट की
पोल संसद में सबसे पहले वे लोग ही खोला करते थे| विधानसभाओं में अनेक
प्रखर और तेजस्वी नेता हुआ करते थे| लेकिन अब हमारे नेताओं को इस तरह
के काम में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई क्योंकि इस तरह की खबरों के वे ही
मूल स्त्रेत बन गए हैं|
इस समय सांसदों और विधायकों को क्षेत्रीय विकास के नाम पर
लाखों-करोड़ों रूपए की राशि हर साल मिलती है| पता चला है कि अनेक
नेतागण इस राशि का इस्तेमाल या तो सिर्फ कागज पर करते हैं या
अपने-अपनों को रेवडि़यां बांटने के लिए करते हैं| जब जनता के
प्रतिनिधि ही हाथ साफ करने में जुट गए हैं, तो सरकारी कर्मचारी क्या
अपनी पांचों उंगलियां भी घी में नहीं भिगोएंगे? टॉयलेट और सड़के
इसीलिए गायब हो जाती हैं| अब अगर अखबार, टीवी चैनल और सूचनावीर नागरिक
पीछे नहीं पड़ें, तो इस महालूट का सिरा ढूंढना भी मुश्किल हो जाए|
पिछले कुछ दिनों में उज्जैन के एक चपरासी, इंदौर के एक क्लर्क और
भीलवाड़ा के एक कनिष्ठ इंजीनियर के यहां करोड़ों की राशियां पकड़ी गई|
मप्र में एक अफसर के यहां सैकड़ों करोड़ की राशि पकड़ी गई| अरे, ये तो
खटमल-मच्छर है| जरा मगरमच्छो को पकड़ो| जरा नेताओं पर हाथ डालो|
अरबों-खरबों का माल उनकी तिजोरियों से टपक पड़ेगा| यह काम कौन कर सकता
है? प्रधानमंत्री ही कर सकता है लेकिन वह स्वयं स्वच्छ और शुद्घ होना
चाहिए| यह काम डॉ. मनमोहन सिंह से बेहतर कौन कर सकता है, लेकिन आज यह
आपके लिए सोचने का विषय है कि वे असहाय और निरूपाय क्यों बने हुए हैं?
अगर वे थोड़ी-सी हिम्मत कर लें, तो वे इस देश को भ्रष्टाचार के दल-दल
से निकाल सकते हैं| इतिहास उन्हें तभी सचमुच का प्रधानमंत्री
मानेगा|
साभार वेद प्रताप वैदिक जी (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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