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कोलावेरी डी : जावेद साहब, आप एक महान गीतकार हैं आप अपना काम कीजिये ना?

जावेद साहब हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के एक स्तम्भ हैं, उन्होंने
कई-कई बेहतरीन गीत लिखे हैं। खैर… जैसी कि हमारे मीडिया की परम्परा है
इस गीत के सुपर-डुपर-टुपर हिट होने के बाद जावेद साहब इस पर
प्रतिक्रिया चाही गई (आप पूछेंगे जावेद साहब से क्यों, गुलज़ार से
क्यों नहीं? पर मैंने कहा ना, कि यह एक “परम्परा” है…)। जावेद साहब
ठहरे “महान” गीतकार, और एक उम्दा शायर जाँनिसार अख्तर के सुपुत्र,
यानी फ़िल्म इंडस्ट्री में एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान… तो इस गीत की
“कटु” आलोचना करते हुए जावेद अख्तर फ़रमाते हैं, कि “इस गीत में न तो
धुन अच्छी है, इसके शब्द तो संवेदनाओं का अपमान हैं, यह एक बेहद
साधारण गीत है…” एक अंग्रेजी कहावत दोहराते हुए जावेद अख्तर कहते हैं
कि “जनता भले ही सम्राट के कपड़ों की वाहवाही कर रही है, लेकिन हकीकत
यह है कि सम्राट नंगा है…”।
यानी जो गाना रातोंरात करोड़ों युवा दिलों की धड़कन बन गया है, लाखों की
पसन्द बन गया है, उसे जावेद साहब एकदम निकृष्ट और नंगा कह रहे हैं। यह
निश्चित रूप से उनके अन्दर पैठा हुआ “श्रेष्ठताबोध” ही है, जो “अपने
सामने” हर किसी को ऐरा-गैरा समझने की भूल करता है।
जावेद साहब, आप एक महान गीतकार हैं। मैं भी आपके लिखे कई गीत पसन्द
करता हूँ, आपने “एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…” एवं “पंछी, नदिया, पवन
के झोंके…” जैसे सैकड़ों मधुर गीत लिखे हैं, परन्तु दूसरे के गीतों के
प्रति स्वयं का इतना श्रेष्ठताबोध रखना अच्छी बात नहीं है। धनुष
(रजनीकांत के दामाद) और श्रुति हासन (कमल हासन की पुत्री) जैसे कुछ
युवा, जो कि दो बड़े-बड़े बरगदों (रजनीकांत और कमल हासन) की छाया तले
पनपने की कोशिश में लगे हैं, सफ़ल भी हो रहे हैं… उनके द्वारा रचित इस
अदभुत गीत की ऐसी कटु आलोचना करना अच्छी बात नहीं है।
जावेद साहब, आप मुझे एक बात बताईये, कि इस गीत में आलोचना करने लायक
आपको क्या लगा? गीत “तमिलिश” (तमिल+इंग्लिश) में है, तमिल में कोलावरी
डी का अर्थ होता है, “घातक गुस्सा”, गीत में प्रेमिका ने प्रेमी का
दिल तोड़ा है और प्रेमी उससे पूछ रहा है, “व्हाय दिस कोलावरी डी…” यानी
आखिर इतना घातक गुस्सा क्यों? गीत में आगे चेन्नै के स्थानीय तमिल
Frases का उपयोग किया है, जैसे – गीत के प्रारम्भ में वह इसे “फ़्लॉप
सांग” कहते हैं, स्थानीय बोलचाल में “Soup Boys” का प्रयोग उन लड़कों
के लिए किया जाता है, जिन्हें लड़कियों ने प्रेम में धोखा दिया, जबकि
“Holy Cow” शब्द का प्रयोग भी इससे मिलते-जुलते भावार्थ के लिए ही
है…।
अब बताईये जावेद साहब!!! क्या इस गीत के शब्द अश्लील हैं? क्या इस गीत
का फ़िल्मांकन (जो कि अभी हुआ ही नहीं है) अश्लील है? क्या इस गीत की
रिकॉर्डिंग के प्रोमो में कोई नंगी-पुंगी लड़कियाँ दिखाई गई हैं? आखिर
ऐसी कौन सी बात है जिसने आपको ऐसी आलोचना करने पर मजबूर कर दिया?
मैंने तो कभी भी आपको, समलैंगिकता, लिव-इन-रिलेशनशिप तथा मुन्नी-शीला
जैसे गीतों की इतनी कटु आलोचना करते तो नहीं सुना? फ़िर कोलावरी डी ने
आपका क्या बिगाड़ दिया? जब आपकी पुत्री जोया अख्तर ने “जिंदगी ना
मिलेगी दोबारा…” जैसी बकवास फ़िल्म बनाई और उसमें स्पेन के “न्यूड बीच”
(नग्न लोगों के लिये आरक्षित समुद्र तट) तथा “टमाटर उत्सव” को बड़े ही
भव्य और “खुलेपन”(?) के साथ पेश किया, तब तो आपने उसकी आलोचना नहीं
की? आपकी इस फ़िल्म से “प्रेरणा”(?) लेकर अब भारत के कुछ शहरों में
“नवधनाढ्य रईस औलादें” अपने-अपने क्लबों में इस “टमाटर उत्सव” को
मनाने लगी हैं, जहाँ टनों से टमाटर की होली खेली जाती है, जबकि भारत
की 60% से अधिक जनता 20 रुपये रोज पर गुज़ारा कर रही है… क्या आपने इस
“कुकर्मी और दुष्ट” टाइप की फ़िज़ूलखर्ची की कभी आलोचना की है?
जावेद साहब, आप स्वयं दक्षिण स्थित एआर रहमान के साथ कई फ़िल्में कर
चुके हैं, फ़िर भी आप युवाओं की “टेस्ट” अभी तक नहीं समझ पाए? वह
इसीलिए क्योंकि आपका “श्रेष्ठताबोध” आपको ऐसा करने से रोकता है। समय
के साथ बदलिये और युवाओं के साथ चलिये (कम से कम तब तक तो चलिये, जब
तक वे कोई अश्लीलता या बदतमीजी नहीं फ़ैलाते, अश्लीलता का विरोध तो मैं
भी करता हूँ)। मैं जानता हूँ, कि आपकी दबी हुई दिली इच्छा तो गुलज़ार
की आलोचना करने की भी होती होगी, परन्तु जावेद साहब… थोड़ा सा गुलज़ार
साहब से सीखिए, कि कैसे उन्होंने अपने-आप को समय के साथ बदला है…।
“मोरा गोरा अंग लई ले…”, “हमने देखी है उन आँखों की खुशबू…”, “इस मोड़
से जाते हैं…” जैसे कवित्तपूर्ण गीत लिखने वाले गुलज़ार ने बदलते समय
के साथ, युवाओं के लिए “चल छैंया-छैंया…”, “बीड़ी जलई ले जिगर से…” और
“कजरारे-कजरारे…” जैसे गीत लिखे, जो अटपटे शब्दों में होने के बावजूद
सभी सुपरहिट भी हुए। परन्तु उनका कद आपके मुकाबले इतना बड़ा है कि आप
चाहकर भी गुलज़ार की आलोचना नहीं कर सकते।
संक्षेप में कहने का तात्पर्य जावेद साहब यही है कि, आप अपना काम
कीजिये ना? क्यों खामख्वाह अपनी मिट्टी पलीद करवाने पर तुले हैं? आपके
द्वारा कोलावरी डी की इस आलोचना ने आपके युवा प्रशंसकों को भी नाराज़
कर दिया है। आपकी इस आलोचना को कोलावरी डी के संगीतकार अनिरुद्ध ने
बड़े ही सौम्य और विनम्र अंदाज़ में लिया है, अनिरुद्ध कहते हैं कि,
“जावेद साहब बड़े कलाकार हैं और आलोचना के बहाने ही सही कम से कम मेरे
जैसे युवा और अदने संगीतकार का गीत उनके कानों तक तो पहुँचा…”। अब इस
युवा संगीतकार को आप क्या कहेंगे जावेद साहब?
सुरेश चिपलूनकर (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है) यह उनकी व्यक्तिगत राय
है ...
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