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‘आधार-कार्ड’ हो सकता है निराधार : नंदन निलेकनी UIDA को ‘गुड-बाई’ करने पर आमादा
चाणक्य जैसे कुटिल राजनीतिज्ञ आज नहीं हैं, लेकिन “चापलूस” और “चाटुकारों” की डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में कमी नहीं है. आईटी की दुनिया का ‘भीष्म पितामह’ कहलाने वाले नंदन निलेकनी मनमोहन सिंह सरकार और योजना आयोग के आला सहयोगी की शतरंजी चाल में फंस गए हैं
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि जब राजा प्रजा के हित की बात सुनना बंद कर दे और निरंकुश हों जाये तो राजा के सबसे निकटतम सलाहकार को अपने बस में करना और उसे जन-हित और राष्ट्र-हित के बारे में ज्ञान देकर राजा को वश में किया जा सकता है. लेकिन यह बात उस समय की थी जब चाणक्य अपने शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को अखंड-भारत का “सर्वश्रेष्ठ” राजा बनाने और अलेक्जेंडर सहित सेल्युकस और केलेस्थिनिज को भारत वर्ष के हित में वापस भेजने की बात सोच रहे थे.
हालांकि चाणक्य जैसे कुटिल राजनीतिज्ञ आज नहीं हैं, लेकिन “चापलूस” और “चाटुकारों” की डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में कमी नहीं है. यहाँ भारत वर्ष का हित सोचने वाला और आईटी की दुनिया का ‘भीष्म पितामह’ कहलाने वाले नंदन निलेकनी मनमोहन सिंह सरकार और योजना आयोग के आला सहयोगी के शतरंजी चल में फंस गए हैं. शायद इसी कारण पिछले कई दिनों से कुछ लॉबीस्ट माने जाने वाले पत्रकार इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए थे। कईयों ने इस प्रोजेक्ट के डाटा की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिए थे।
केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलुवालिया द्वारा बनाये गए इस चक्रब्यूह का शिकार बन रहे हैं निलेकनी, जो पिछले वर्षों से अपने अथक प्रयास के द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिक को उसकी अपनी एक पहचान पत्र के द्वारा भारतीय होने का अधिकार प्रदान कर रहे हैं. लेकिन यदि, चल रहे हालत को माना जाय तो वह समय दूर नहीं है कि किसी दिन नंदन निलेकनी इस चापलूस और चाटुकारों की दुनिया को त्यागकर अपनी आईटी की दुनिया में वापस चले जाएँ.
निलेकनी के अत्यंत करीबी के एक अधिकारी ने “मीडिया दरबार” को बताया कि “अभी इस विषय पर कुछ भी टिपण्णी करना ठीक नहीं होगा, लेकिन बनते हालत में इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि निलेकनी अपना त्यागपत्र प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को समर्पित कर अपनी आईटी की दुनिया में वापस चले जाएँ.” निलेकनी स्वयं बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं थे. गौरतलब है कि निलेकनी ने प्रधान मंत्री के ‘विशेष अनुरोध’ पर ही इनफ़ोसिस छोड़ा था और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की मदद के लिए दिल्ली आये थे.
सूत्रों का मानना है कि गृह मंत्री चिदम्बरम ने इस विभाग पर होने वाले खर्चों को फिजूल खर्च बताया है और इससे प्रेरित होकर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने अगले वित्तीय वर्ष (2012-13) में यूआईडीए को आवंटित होने वाले कुल राशि में 50 फीसदी की कमी कर दी है. निलेकनी इस बात को लेकर मानसिक तौर पर काफी परेशान है और शायद अपना मन भी बना चुके हैं इन खुर्रांट राजनीतिज्ञों से अलग अपनी दुनिया में वापस होने का.
सूत्रों के अनुसार, अगले वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए यूआईडीए ने कुल 3,500 करोड़ की मांग की थी. दुर्भाग्यवश चिदम्बरम और अहलुवालिया की “मिली भगत” के कारण इस राशि को सीधे आधे से भी कम कर दिया गया और योजना आयोग ने मात्र 1,400 करोड़ राशि की पेशकश की है. आश्चर्य है कि पिछले वित्तीय वर्ष 2011-12 में यूआईडीए को कुल 3,000 करोड़ राशि मुहैया कराई गई थी.
वैसे प्रधान मंत्री जो कि योजना आयोग के अध्यक्ष भी होते हैं, ने इस विषय पर किसी भी प्रकार की “दखलंदाजी” अब तक नहीं की है, लेकिन प्रधान मंत्री कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक, वे स्वयं इस घटनाक्रम से स्तब्ध हैं. सूत्रों के मुताबिक, प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के “व्यक्तिगत अनुरोध” पर ही नंदन निलेकनी अपनी आईटी की दुनिया को छोड़ कर देश के प्रत्येक नागरिक को एक भारतीय होने का पहचान पत्र और नागरिक संख्या उपलब्ध कराने के लिए यूआईडीए का कार्यभार संभाला था.
यूआईडीए के अधिकारी ने बताया कि “यह दलगत राजनीति और कुंठित मानसिकता” का परिणाम है. अधिकारी के अनुसार, “यूआईडीए में निलेकनी किसी भी मौद्रिक विषय में अपने आप को नहीं जोड़े हैं. किसी भी तरह के मौद्रिक लेन देन में सम्बंधित बिलों का भुगतान सीधा सरकार द्वारा किया जाता है, जहाँ किसी भी प्रकार का कोई गोलमाल संभव नहीं है. हों सकता है, यह भी एक कारण सकता है जो गृह मंत्री या योजना आयोग के उपाध्यक्ष के गले नहीं उतरता हों. प्रधान मंत्री इस विषय से वाकिफ है या नहीं अब तक मालूम नहीं, लेकिन बनते हालातों में निलेकनी का प्रधान मंत्री से मिलकर अपना त्याग पत्र समर्पित करने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है.”
आतंरिक छान-बीन से ऐसा प्रतीत होता है कि “गृहमंत्रालय ‘आधार’ की बढती लोकप्रियता को कमजोर कर नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को प्रमुखता देना चाहता है. एनपीआर भी लगभग ‘आधार’ जैसा ही एक प्रयास है जो देश में लोगों कि आबादी के अतिरिक्त कुछ अन्य सूचनाओं को एकत्रित कर रहा है. चुकि इस कार्य का करता-धर्ता गृह मंत्रालय है और गृह मंत्री की देख रेख में है, इसलिए ‘आधार’ के बजट में कटौती कर उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है. इसमें मंत्री के अलावा इस कार्य में जुड़े आला अधिकारियों की आमदनी संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है.”
आतंरिक सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्री यह चाहते हैं कि एनपीआर के तहत एकत्रित आंकड़े और सूचनाओं का इस्तेमाल यूआईडीए के अधीन किये जा रहे यूआईडी में किया जा सकता है इसलिए यूआईडीए पर होने वाले सभी व्यय “बेकार” हैं. इतना ही नहीं, गृह मंत्रालय ने तो यूआईडीए की स्थापना और इसकी स्वायतत्ता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. सूत्रों के अनुसार यूआईडीए की स्थापना और इसकी स्वायत्ता तब तक मान्य नहीं है जब तक नेशनल ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया बिल 2010 संसद द्वारा पारित नहीं हो जाता. गौरतलब है कि यह बिल अभी संसद की स्टैंडिंग कमिटी के पास अवलोकनार्थ पड़ा है.
एक अधिकारी तो यहाँ तक कह गए: “यह कैसे संभव है कि जिस संस्था का कोई संवैधानिक आधार नहीं हो, भारत की संसद उसकी स्थापना और स्वायत्ता को क़ानूनी रूप ना दे दे, तब तक इस पर इतनी बड़ी राशि का व्यय तो तर्क संगत नहीं लगता, साथ ही, इसके द्वारा इस स्थिति में ‘आधार कार्ड’ निर्गत करना क्या क़ानूनी दस्तावेज हों सकता है?” यूआईडीए अब तक एक करोड़ आधार कार्ड बनाकर वितरित कर चुका है और आगामी 2014 तक साठ करोड़ आधार कार्ड वितरित करने का लक्ष्य है.
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