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मल्लिका जी, एक बार 'पवित्र परिवार' से माफ़ी माँगने को कहिये ना ?
मल्लिका साराभाई ने नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 2002 में साराभाई की जनहित याचिकाओं को खारिज करवाने के लिए उनके वकीलों को दस लाख रुपये की रिश्वत दी थी। अब जाकर 9 साल बाद मल्लिका साराभाई को इसकी याद आई है, इस आरोप के पक्ष में उन्होंने पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट के एफ़िडेविट का उल्लेख किया है, जो कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष झूठे साबित हो चुके हैं। अब बताईये मल्लिका मैडम… ठीक नरेन्द्र मोदी के उपवास के समय, आपके कान कौन भर रहा है?
वैसे बार-बार "गुजरात नरसंहार", "मोदी की माफ़ी" इत्यादि शब्दों का लगातार उपयोग करने वाली मल्लिका जी समेत सारी की सारी "सेकुलर गैंग" और "सिविल सोसायटी गिरोह" जानती नहीं होंगी कि आधिकारिक सरकारी आँकड़ों (जिसे केन्द्र ने भी माना है) के अनुसार 2002 के दंगों में 760 मुस्लिम और 254 हिन्दू मारे गये थे, इन 254 हिन्दुओं में से 100 से अधिक पुलिस की गोली से मारे गये। क्या सेकुलरिस्ट बता सकेंगे कि यदि "नरसंहार"(?) हुआ था तो फ़िर 254 हिन्दू कैसे मरे? एक भी नहीं मरना चाहिए था? और यदि नरेन्द्र मोदी ने कोई "एक्शन" नहीं लिया और दंगों के दौरान निष्क्रिय बने रहे, तब 100 से अधिक हिन्दू पुलिस की गोली से कैसे मरे?
परन्तु ऐसे सवालों से "सेकुलरों और सिविलियनों" को उल्टियाँ होने लगती हैं, इनमें से किसी ने आज तक दिल्ली में 3000 सिखों के मारे जाने पर कांग्रेस से माफ़ी की माँग नहीं की… इनमें से किसी की हिम्मत नहीं होती कि कश्मीर से "जातीय सफ़ाये" और "नरसंहार" करके भगाये गये 2 लाख से अधिक कश्मीरी पण्डितों की दुर्दशा के लिए "पवित्र परिवार" से माफ़ी मांगने को कहे…। परन्तु चूंकि नरेन्द्र मोदी को गरियाने से बिना पढ़े ही "सेकुलरिज़्म की डिग्री" मिल जाती है इसलिए सब लगे रहते हैं।
भूषणों, तिवारियों, सिब्बलों इत्यादि में यदि हिम्मत है, तो वह "पवित्र परिवार" से भागलपुर दंगों, सिख विरोधी दंगों, कश्मीर से हिन्दुओं के सफ़ाये, वॉरेन एण्डरसन को सुरक्षित भगा देने जैसे "किसी भी एक मामले में" माफ़ी माँगने को कहे।
(कुछ मित्रों को "पवित्र परिवार" शब्द पर आपत्ति है, परन्तु यह शब्द मीडिया के "दोगलों और भाण्डों" के लिए है, जिन्हें इस परिवार में पवित्रता के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता)
एक विशेष जानकारी :- मल्लिका साराभाई की माताजी मृदुला साराभाई, कश्मीर के शेख अब्दुल्ला (उमर अब्दुल्ला के दादा) की "घनिष्ठ मित्र"(?) थीं। मृदुला साराभाई ने 1958 में शेख अब्दुल्ला पर चल रहे देशद्रोह के केस में मुम्बई हाईकोर्ट में लगने वाला समूचा खर्च उठाया था। इस देशद्रोह वाले केस में शेख अब्दुल्ला को आजीवन कारावास हो सकता था, नेहरु नहीं चाहते थे कि शेख अब्दुल्ला को सजा मिले, इसलिए नेहरु सरकार ने अचानक 1964 में यह केस वापस ले लिया। इसमें मृदुला साराभाई की भूमिका महत्वपूर्ण थी…
पता नहीं ऐसा क्यों होता है, कि जब हम "सेकुलर बुद्धिजीवियों"(?) का इतिहास खंगालते हैं, तो उनकी "जड़ें और गहरी दोस्तियाँ" कभी कश्मीर से तो कभी पाकिस्तान से जा मिलती हैं। वैसे मृदुला साराभाई सम्बन्धी इस जानकारी का, मल्लिका साराभाई के "वर्तमान सेकुलर व्यवहार" से कोई लेना-देना नहीं है, परन्तु बात निकली ही है तो सोचा कि पाठकों का थोड़ा ज्ञानवर्धन कर दूँ…
— सुरेश चिपलूनकर (यह राय लेखक की व्यक्तिगत राय है)
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