नई दिल्ली। अब लगभग यह साफ होता जा रहा है कि केंद्र सरकार काला धन पर बाबा रामदेव के एक भी प्रमुख सुझाव पर अमल करने नहीं जा ..
सलमान खुर्शीद और वीरप्पा मोइली के बाद खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सूचना अधिकार कानून में संशोधन के लिए समर्थन में खुलकर सामने आ गए।
केंद्रीय चुनाव आयुक्तों के सम्मेलन में उन्होंने आरटीआइ के दुरुपयोग और सरकारी कामकाज प्रभावित होने की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इससे ईमानदार अधिकारी अपनी राय रखने में डर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने गलत कार्यो को उजागर करने वालों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए जल्द ही विधेयक लाने की बात भी कही। इस मौके पर मौजूद मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने लोकपाल से पहले सीआइसी को संवैधानिक दर्जा देने का दावा ठोक दिया।
अभी हाल में ही सूचना के अधिकार के तहत आए एक पत्र से केंद्र के दो शीर्ष मंत्रियों प्रणब और चिदंबरम के बीच कलह सार्वजनिक होने के बाद से आरटीआइ में संशोधन की बहस तेज हो गई है। केंद्र के मंत्री भी आरटीआइ के जरिये फाइल नोटिंग और तमाम दूसरे गोपनीय मामलों को सार्वजनिक किए जाने का विरोध कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में बने माहौल के बीच आरटीआइ में संशोधन की कोशिशों के सियासी नफा-नुकसान को तौलने के लिए कांग्रेस ने खुद को दूर कर इस मसले पर बहस की जरूरत बताकर चर्चा से हट गया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने खुद आगे आकर प्रशासनिक व्यवस्था के मद्देनजर इस कानून में संशोधन की पैरोकारी शुरू कर दी।
केंद्रीय सूचना आयोग के दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा, 'आरटीआइ को सरकार की विचारात्मक प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करना चाहिए। एक चिंता है कि मौजूदा कानून ईमानदार लोक सेवकों को अपने नजरिये का इजहार करने से हतोत्साहित करेगा। इसको लेकर एक समालोचनात्मक नजरिया अपनाया जाना चाहिए और चिंताओं पर विचार विमर्श कर इनका निवारण किया जाना चाहिए।
हालांकि प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि आरटीआइ अधिनियम को कमजोर नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, 'हम सूचना का अधिकार अधिनियम को और प्रभावी उपकरण बनाना चाहते हैं ताकि इससे प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।' इसके साथ ही व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री ने कहा कि अगले कुछ माह में गलत काम के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए एक विधेयक को लागू किया जाएगा।
मुख्य सूचना आयुक्त ने वित्तीय स्वायत्तता की जरूरत पर जोर देते हुए सरकार से मांग की कि केंद्र और राज्यों में सूचना आयोगों को चुनाव आयोग तथा कैग की तर्ज पर संवैधानिक प्राधिकरण बनाया जाए। लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की खबर का हवाला देते हुए मिश्रा ने कहा, 'अगर लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाया जा सकता है, तो सीआइसी और एसआइसी को संवैधानिक दर्जा हासिल करने का उतना ही अधिकार है।' उन्होंने सूचना आयोग को वित्तीय स्वायत्तता नहीं मिलने का शिकवा भी किया।
आरटीआइ पर सवाल उठाकर घिरे पीएम
सूचना के अधिकार के लिए अपनी पीठ थपथपा रही सरकार के मुखिया डॉ.
मनमोहन सिंह इस पर सवाल उठाकर घिर गए हैं। मुख्य विपक्ष भाजपा ने जहां
इसी सहारे आरोप लगाया कि वह उन्हें बल दे रहे हैं जो आरटीआइ के दायरे
से बचने की कोशिशों में लगे हैं। वहीं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की
सदस्य अरुणा राय समेत टीम अन्ना ने भी प्रधानमंत्री के सुझावों से
असहमति जता दी है। उन्होंने आगाह किया है कि आरटीआइ को कमजोर करने की
कोशिश नहीं होनी चाहिए।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चौतरफा वार झेल रही सरकार और कांग्रेस आरटीआइ का हवाला देकर अपनी साफ मंशा का दावा करती रही है, लेकिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री के बयानों ने विपक्ष और सिविल सोसायटी को मौका दे दिया। मालूम हो कि सूचना आयुक्तों के एक समारोह का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कानून की समालोचना की बात कही थी। उन्होंने फाइल नोटिंग को सार्वजनिक करने पर जहां कुछ आशंका जताई थी वहीं प्रशासनिक कार्यो में इसे दखलअंदाजी के रूप में भी देखे जाने की भी बात कही थी।
आरटीआइ बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली सिविल सोसायटी ने तत्काल इस पर अपनी आपत्ति जता दी। अरुणा राय ने जहां वर्तमान कानून से अपना संतोष जताया वहीं टीम अन्ना के साथी अरविंद केजरीवाल ने फाइल नोटिंग को सार्वजनिक किए जाने का समर्थन करते हुए कहा इससे ईमानदारी को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने सवाल पूछा कि प्रधानमंत्री को कोई आशंका है तो उदाहरण देकर बताएं कि इससे ईमानदार अधिकारियों के लिए मुश्किल कैसे होगी। बातों-बातों में सिविल सोसायटी ने यह याद दिलाया कि सरकार में पहले भी इसे रोकने की कोशिश हुई थी। अंतत: संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद फाइल नोटिंग को सार्वजनिक करने का फैसला हुआ। अब फिर से इसे हटाने की कोशिश हुई तो अच्छा संकेत नहीं होगा।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि 2जी, राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श सोसाइटी समेत कई मामलों में सूचना के अधिकार से भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ। शायद सरकार इससे डर गई है। यही कारण है कि सरकार के उच्चतम स्तर से इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। रूड़ी ने परोक्ष रूप से आरोप लगाया कि पीएम उन लोगों को नैतिक बल दे रहे हैं जो किसी न किसी बहाने आरटीआइ के दायरे से बचने की कोशिशों मे जुटे हैं।
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