वासुदेव बलवंत फडके (4 नवम्बर, 1845 – 17 फरवरी, 1883) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें आदि क्रा..
एशिया की पहली दृष्टिहीन महिला सरपंच ने बदली गांव की तकदीर
सन् 1995 में गुजरात के आणंद जिले के छोटे से गांव चांगा में सरपंच का चुनाव हुआ था। काफी विरोधों के बावजूद भी दृष्टिहीन सुधाबहन सरपंच का चुनाव जीत गईं और इस तरह वह एशिया की पहली एकमात्र ऐसी महिला सरपंच बन गईं, जो देख नहीं सकतीं। लेकिन आंखों से दुनिया को कभी न देख पाने वाली सुधाबहन ने मन की नजरों से ही दुनिया देख ली।
सरपंच बनने के बाद इस दृष्टिहीन महिला की दीर्घदृष्टि भरे कॅरियर की असली शुरुआत हुई और आज उन्होंने पूरे गांव का नक्शा ही बदल कर रख दिया है। जो काम आंखों से देख पाने वाले भी नहीं कर पाते वही सुधाबेन ने कर दिखाए। सरपंच बनने के बाद से ही उनका पूरा ध्यान गांव के विकास पर रहा।
इसके अलावा वे विकलांगों के लिए शिक्षण और उनके पुनर्निवास के काम में भी पूरी तरह सक्रिय हैं। विकलांगों के हितार्थ सुधाबहन संकलित शिक्षण योजना और जलाराम सेवा ट्रस्ट से भी जुड़ीं हुई हैं। वर्तमान में यहां विकलांगों को 53 शिक्षकों द्वारा कक्षा 1 से 12वीं तक शिक्षा प्रदान की जा रही है।
यही नहीं, सुधाबहन की छोटी बहन राधा भी बचपन से दृष्टिहीन हैं। सुधाबहन के साथ वे भी शिक्षण कार्य से जुृड़ी हुई हैं। राधा ने तो दृष्टिहीन बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑडियो सीडी भी तैयार की हैं। इसके साथ ही गांव में हरेक काम की मदद के लिए दोनों बहनें तत्पर रहती हैं। यह सुधाबहन का ही कमाल है कि इस छोटे और पिछड़े से गांव में आज शिक्षा का बोलबाला है। दृष्टिहीन होते हुए भी उन्होंने गांव की तकदीर बदल दी और यहां के ग्रामीणों को ज्ञान के उस प्रकाश के दर्शन करा दिए, जिससे दर्शन वे मुश्किल से ही कर पाते हैं।
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