अंग्रेजो ने भारत से कितना धन लूटा एवं यह कैसे प्रारंभ हुआ ? : भाई राजीव दीक्षित

Published: Sunday, Jan 08,2012, 13:10 IST
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लूट के जो आंकड़ें प्राप्त हैं वह ही इतने बड़े है कि यदि ज्ञात एवं अज्ञात आंकड़ों का मिलान किया जाए तो सर चकरा जाता है। २३ जून सन १७५७ जब प्लासी का ' युद्ध ' होना था " मीर जाफर " ने १ करोड़ स्वर्ण मुद्राओं एवं उच्च राजपद की लालसा में विश्वासघात किया था। अपने ही राजा (सिराज उद्दौला) के १८ सहस्त्र (हज़ार) भारतीय सैनिकों को मात्र ३५० अंग्रेज सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया था अर्थात युद्ध हुआ ही नहीं था वरन एक संधि हुई थी, जिसमें एक सेठ " अमीचंद " रॉबर्ट क्लाईव की ओर से साक्षी बने थे।

अब इस संधि का परिणाम यह हुआ की अंग्रेजो को बंगाल की दीवानी (कर लेने का अधिकार) एवं विशेष कर कलकत्ता का राज्य प्राप्त हुआ जहाँ उन्होंने पहले मीर कासिम को राजा बनाया, उसे हटाया मीर जाफर को राजा बनाया, उसे हटाया एवं सत्ता औपचारिक रूप से भी अपने हाथ में कर ली। सात वर्षों तक रोबर्ट क्लाईव ने कलकत्ता को लूटा। जब लूट कर लंदन ले गया तब लंदन की संसद में उससे बहस की गई कि तुम भारत से क्या लाए हो, तो उसने कहा " सोने चांदी से भरे जहाज लाया हूँ " मंत्री पूछते है कितने लाए हो " उसने कहा कि ९०० जहाज लाया हूँ "

प्रधानमंत्री अचंभित हो जाते है पूछते है, यह कहाँ से लाए हो, सम्पूर्ण भारत से ?
तब रॉबर्ट क्लाईव कहता है संपूर्ण भारत से नहीं भारत के एक नगर कलकत्ता से संपूर्ण भारत में तो पता नहीं कितना सोना चांदी है।

आगे उससे पूछा गया इसका मूल्यांकन क्या है,
तब वह कहता है ' वन थाउजेंड मिलियन स्टर्लिंग पाउंड ' सन १७५७ के स्टर्लिंग पौंड की कीमत ३०० गुना कम हुई है (जैसे दस-२० पैसा पहले अधिक हुआ करता था)

थाउजेंड = १,००० (एक सहस्त्र या एक हज़ार)
मिलियन = १०,००० (दस लाख)
पाउंड = ८० रु (औसत अभी तो ८२ है)
अर्थात १००० * १०००० * ३०० * ८० आप स्वयं निकल ले, लाख करोड़ में उत्तर आयेगा।
{ = २४०,००,००,००,००० रु }

मात्र एक विदेशी का संस्था अधिकारी रोबर्ट क्लाईव भारत से इतना धन ले गया था। पहले रॉबर्ट क्लाईव आया, उसने लूटा, तदुपरांत वॉरन हेस्टिंग्स, कर्ज़न, लिल्निथ्गो, डिकिंस, विलियम वेंटिंग, कोर्नवोलिस ऐसे ऐसे भारत में ८४ अधिकारी आये थे।

यह लूट का क्रम वर्षों तक चलता रहा अभी २०११ के अंत में खोजा गया चाय, मसालों एवं चांदी से भरा SS Mantola जहाज भी इसी पुस्तक का एक पन्ना है। भारत को ईश्वर ने बहुत धनवान बनाया है बहुत से देशी को ईश्वर ने ही निर्धन बनाया है उनके यहाँ पूरे वर्ष में केवल ३-४ महीने सूर्य के दर्शन होते हैं। वही एक दो अन्न पैदा होते है गेहूँ-आलू, आलू-प्याज। धरती में भी खनिज पदार्थो की कमी रहती है। भारत तो कई कई वर्षों की लूट के बाद इतना अधिक धनवान है कि संभवतः केवल एक दो महादेश जैसे अफ्रीका आदि से ही उसकी तुलना की जा सकती है। इससे इस बात को भी बल मिलता है कि कई सहस्त्र वर्षों से भारत एवं अफ्रीका के बीच व्यापर इतना सफल कैसे रहा।

शेष भाग जल्दी ही : मातृभाषा का क्या महत्व है ?

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