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अमेरिका में भी संघ के चर्चे, भूटानी शरणार्थियों की सेवा के लिए मिला मानवता पुरस्कार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किस प्रकार व्यक्ति निर्माण का कार्य कर
मानवता को नए नए रत्न प्रदान करता है, इसके उदाहरणों की कमी नहीं है
परन्तु उनमें बहुत से उदहारण सामने नहीं आते या आने नहीं दिए जाते। पर
अमेरिका के जॉर्जिया में ऐसा ही एक उदहारण सामने आया है। स्वदेश कटोच,
जो अमेरिका में एक आईटी फर्म चलाते हैं, उन्हें जॉर्जिया असोसिएशन ऑफ़
फिजिशियन ऑफ़ इंडियन हेरिटेज ने भूटानी हिन्दू शरणार्थियों के लिए
श्रेष्ठ कार्य करने के लिए १०००$ राशि का मानवता पुरस्कार दिया है।
स्वदेश इस राशि का प्रयोग पाकिस्तान में रह रही हिन्दू विधवाओं के लिए
करने की घोषणा भी कर चुके हैं।
१९८० के दशक के परार्ध से भूटान में हिन्दुओं का सामूहिक हत्याकांड
शुरू हुआ। वहाँ की बौद्ध बहुसंख्यक जनसँख्या ने हिन्दुओं को दक्षिण
भूटान में मारना शुरू किया। ये लगभग उसी के जैसा था जैसा कश्मीर में
उस समय हिन्दुओं के साथ हो रहा था। भूटान के रक्षा मामले देखने वाला
८० करोड़ हिन्दुओं का देश भारत उस समय क्या कर रहा था, ये विचार करने
योग्य प्रश्न है। १९९१ से उन शरणार्थियों का पुनर्वास संयुक्त राष्ट्र
द्वारा शुरू हुआ। १ लाख १० हज़ार शरणार्थियों को नेपाल के शरणार्थी
कैम्पों में जगह दी गयी।
२००६ में अमेरिका ने अपने द्वार खोलते हुए इनमें से ६०००० हिन्दुओं को
अपने यहाँ बसाने की अनुमति दे दी। ये ६०००० हिन्दू लगभग अशिक्षित थे
और शहरी तौर-तरीकों से परिचित भी नहीं थे। अमेरिकी सरकार द्वारा शुरू
के कुछ महीनों तक इन्हें सरकारी सहायता दी गयी थी। उसके बाद राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की अंतर्राष्ट्रीय शाखा हिन्दू स्वयंसेवक संघ ने इनकी
देखभाल का दायित्व उठाया।
स्वदेश कटोच, जो बचपन से संघ के स्वयंसेवक रहे थे, और अमेरिका में
अटलांटा प्रभाग के सेवा प्रमुख एवं सरकार्यवाह का दायित्व देखते हैं,
उन्होंने इसे एक आन्दोलन का रूप प्रदान किया और हिन्दू संगठनों को
एकजुट कर इन भूटानी शरणार्थियों की सहायता के लिए लगाया।
भूटानी हिन्दु शरणार्थियों के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक सूचना देने वाला एक
लेख २ वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था। लगभग ५ करोड़ बंगलादेशी
घुसपैठियों को पालने वाले और उन्हें यहाँ की नागरिकता देने की बात
करने वाले नेताओं को चुन कर संसद भेजने वाले भारत ने उन हिन्दुओं की
सहायता के लिए क्या किया, इस पर विचार की आवश्यकता है। इस्लामिक
आतंकवाद के विरुद्ध हर कीमत पर खड़े रहने वाले अमेरिका को हर बात में
कोसने वाले भारत के एक वर्ग के लिए ये भी एक शोचनीय विषय होना
चाहिए।
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