हस्तिनापुर के 'न्याय' में छुपे महाभारत के बीज

Published: Sunday, Feb 05,2012, 08:51 IST
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स्थान: हस्तिनापुर | समय: लगभग ५१५० वर्ष पूर्व
लाक्षाग्रह के बाद दुर्योधन को लगता था कि पांडव जल कर मर गए और वह निष्कंटक राज करेगा | पर पांडव वापस आये और इन्द्रप्रस्थ उनका हो गया | क्षत्रिय परम्पराओं का लाभ उठा कर शकुनि और दुर्योधन ने द्यूत सभा बुलाई | शकुनि की युक्ति के आगे पांडव एक एक दांव हारते गए | युधिष्ठिर अपना सब कुछ दांव पर लगाते गए | इन्द्रप्रस्थ का राज्य, चारों भाई, स्वयं वो, और द्रौपदी भी | और फिर, वो हुआ, जो भारत के इतिहास की सबसे बड़ी कलंक कथा है | द्रौपदी का चीरहरण करने का कुत्सित प्रयास | श्रीकृष्ण की कृपा से द्रौपदी की लाज बच गयी | द्रौपदी के श्राप देने के भय से कांपते धृतराष्ट्र ने पांडवों को दासत्व से मुक्त किया और उनका राज्य उन्हें लौटा दिया | पर दुर्योधन, दुशासन किसी को दंड नहीं मिला | तर्क ये था कि उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन तो किया नहीं | द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला तो युधिष्ठिर था और दुर्योधन, शकुनि, दु:शासन तो केवल अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे थे | पर कालिख तो पुत चुकी थी | भीम दु:शासन की छाती फोड़ कर उसका लहू लाने की प्रतिज्ञा कर चुका था | महाभारत का बीज पड़ चुका था |

स्थान: आधुनिक भारत | समय: वर्तमान
२००४ में कांग्रेस अकस्मात् चुनाव जीत गयी तो उसे लगा कि देश का शासन अब वो निष्कंटक चलाएगी | राडिया के टेपों ने मीडिया के कुछ कालिख पुते चेहरों और सरकार के मंत्रियों के कुत्सित सम्बन्ध को उजागर कर दिया | राजग सरकार की आवंटन नीति की कमी का लाभ उठा कर कांग्रेस और सहयोगियों ने २ जी स्पेक्ट्रम की बंदरबांट की | राजा की सारी मनमानी चिदंबरम के सहयोग से हुई और प्रधानमंत्री कार्यालय मूकदर्शक बना देखता रहा | फिर जब मामला गरमाया तो न्याय के रूप में सभी आवंटित १२२ अनुज्ञप्तियाँ निरस्त कर दी गयी, ठीक वैसे ही जैसे पांडवों का हारा राज धृतराष्ट्र द्वारा लौटा दिया गया था | चिदंबरम को न्यायालय ने निर्णय में सहभागी माना पर उसमें कुछ भी आपराधिक नहीं पाया | दंड तो दूर अभियोग भी चलाने की अनुमति नहीं मिली |

यद्यपि इस पर वैधानिक लड़ाई लम्बी चलने वाली है | न्याय के योद्धा बने आज के अर्जुन सुब्रमनियन स्वामी अकेले ही भ्रष्टाचारियों की सेना से लड़ रहे हैं | महाभारत में अर्जुन के पथ प्रदर्शक योगिराज श्री कृष्ण थे तो यहाँ स्वामी जी की सर पर योग-गुरु बाबा रामदेव का हाथ है | जिस प्रकार श्री कृष्ण कंस वध कर, जरासंध के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए थे, और एक अखंड भारत की स्थापना के लिए पांडवों की सहायता कर रहे थे, वैसे ही यहाँ बाबा रामदेव कालेधन के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए हैं | और भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस युद्ध में स्वामी जी के साथ खड़े हैं | श्री कृष्ण निशस्त्र थे | बाबा ने भी जनजागरण किया है | वो स्वयं कोई वैधानिक लड़ाई नहीं लड़ रहे | कालयवन के विरुद्ध युद्ध में श्री कृष्ण को भागना पड़ा था, इसीलिए उनका नाम रणछोड़ पड़ा | संयोग ऐसा कि बाबा को भी गत ४ जून की रात ऐसा ही कुछ करना पड़ा | श्री कृष्ण शान्ति का प्रस्ताव लेकर गए थे, तो बाबा भी मंत्रियों से अपने प्रस्ताव के साथ मिले थे | पर दुर्योधन ने उन्हें बंदी बनाने की कोशिश की | परिणाम दुर्योधन का विनाश हो गया | यह सरकार ने भी ऐसा कृत्या कर चुकी है |

न्याय अन्याय के इस युद्ध में कुछ ऐसे भी हैं जो सत्यनिष्ठ माने जाते हैं, पर सरकार का बचाव करने को विवश हैं, जैसी स्थिति तब भीष्म, द्रोण, और कृपाचार्य की रही थी | उनकी निष्पक्षता का ये छलावा भारत को छल रहा है और महाभारत की आधारशिला तैयार कर चुका है | श्री कृष्ण ने कहा था, "जो हस्तिनापुर एक द्रौपदी के अपमान पर चुप रहा, वह भी दंड का भागी है" | भारत की जनता अपने वोट से अपना मौन तोड़ सकती है | धर्मसंस्थापना का प्रण लेकर आये योगी और उनके निपुण योद्धा धर्मयुद्ध में रत हैं | गीता का अंतिम श्लोक इन योद्धाओं का संबल है, और आने वाले स्वर्णिम युग का वचन भी |

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यत्र योगेश्वरो कृष्णः यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। (गीता १८.७८) - हे राजन, जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहां गाण्डीवधारी अर्जुन हैं वहां श्री, विजय और विभूति निश्चित रूप से होगी, ऐसा मेरा अटल विश्वास है अर्थात जहां व्यक्ति में कृष्ण के रूप में ज्ञान है, पार्थ के रूप में कर्म की प्रेरणा है और हृदय में उत्पन्न उत्साह, ऊर्जा के रूप में हाथ में धनुष्यबाण है, वहां सफलता निश्चित है।

अभिषेक टंडन | twitter.com/bhaaratATmax | (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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