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इशरत जहाँ एनकाउंटर केस : सामने आया मीडिया के एक वर्ग का घृणित चेहरा
गुजरात दंगों एवं सम्बंधित मामलो की जाँच कर रहे विशेष जाँच दल ने
अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इशरत जहाँ नामक १९ वर्षीय मुंबई की
छात्रा की पुलिस मुठभेड़ झूठी थी | मुठभेड़ से पहले ही इशरत जहाँ और
उसके तीन साथियों को मारा जा चुका था | इस विषय पर न्यायालय
बुधवार को अपना निर्णय सुनाएगा | परन्तु भारत के मीडिया के एक वर्ग ने
इस समाचार का प्रकाशन करने में पत्रकारिता के मूल्यों का निरादर किया
है |
अधिकाँश पत्रों एवं वेबसाइट पर समाचार को इस प्रकार से प्रकाशित किया
गया है जिससे यह सन्देश जाता है कि इशरत जहाँ एक मासूम छात्रा थी |
ध्यान रहे कि गुजरात पुलिस ने १५ जून २००४ को किये गए इस एनकाउन्टर का
कारण ये बताया था कि इशरत जहाँ और उसके तीनो साथी मुख्यमंत्री मोदी की
हत्या की फिराक में थे | इशरत के साथ जो तीन लोग मारे गए उनमें जावेद
शेख, और पाकिस्तानी नागरिक अमज़द अली रना व जीशान जौहर शामिल थे |
पुलिस ने कहा था कि ये चारों पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-इ-तोइबा से
जुड़े हुए हैं | स्वयं लश्कर के ही आतंकी डेविड कोलमन हेडली ने भी इशरत
और जावेद के लश्कर का सदस्य होने की पुष्टि की थी | यह बात भी सामने
आई थी कि मई, 2004 में जावेद व इशरत अहमदाबाद के एक होटल में रुके थे
और उन्होंने कई अहम स्थलों की रेकी की थी।
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English : Ishrat Jahan encounter case
: Obnoxious face of a section of Media
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परन्तु इशरत के लश्कर का आतंकी होने की बात आज कुछ समाचार पत्रों
ने न जाने अपने किन स्वार्थों के चलते छुपायी है| इशरत की माँ के
आंसुओं की याद पाठकों को दिलवा कर, इशरत के माता पिता के "हमारी बेटी
हमें लौटा दो" वाले वक्तव्यों और "मोदी को मेरी बेटी को मार के क्या
मिला" इस प्रकार की हेडलाइन प्रकाशित करके क्या ये समाचार पत्र
आतंकवादियों को सहानुभूति देना चाहते हैं? एक राजनैतिक दल के नेता
द्वारा "ओसामा जी" कहना अथवा एक विधायक द्वारा जम्मू कश्मीर विधान सभा
में अफजाल गूरु को क्षमा करना सम्बन्धी प्रस्ताव रखना समझ में आता है,
क्योंकि ये उनकी तुष्टिकरण की राजनीति के लिए आवश्यक है, परन्तु भारत
की पत्रकारिता को भी अब ये दीमक लग गयी है, यह गंभीर चिंता का विषय है
|
क्या मोदी कि निंदा करने के अपने 'कर्त्तव्य' अथवा 'आदेश' के प्रभाव
में मीडिया इतना अँधा हो गया है कि उसे उन जानों की भी चिंता नहीं जो
मोदी पर हमला होने की स्थिति में उनके साथ जाती ? निश्चित रूप से झूठी
मुठभेड़ करना अवैधानिक है और इसके लिए दोषी पुलिस कर्मियों को जाँच
पूरी होने पर अपराध सिद्ध होने पर उचित दंड भी मिलेगा, परन्तु क्या
झूठी मुठभेड़ में मारे जाने से आतंकी 'निरपराध' सिद्ध हो जाता है? क्या
देश की जनता को जान बूझ कर अपने तुच्छ स्वार्थों के चलते अथवा किसी
व्यापक षड़यंत्र के अंतर्गत भ्रमित करना राष्ट्रद्रोह नहीं है? और यदि
है, तो सम्पूर्ण मीडिया तंत्र विशेषकर अंग्रेजी मीडिया, इस अपराध के
दंड का अधिकारी क्यों नहीं?
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देखिये इशरत जहाँ के आतंकवादी होने सम्बन्धी समाचार (जुलाई २०१०) :
पढ़ने के लिए क्लिक करें : NDTV . Times of India . Indian Express . Outlook India
आतंकवादी होने की बात की स्वयं एसआईटी सदस्य द्वारा कहे जाने सम्बन्धी
समाचार (अक्टूबर २०११) : पढ़ने के लिए क्लिक करें : Times of India
और देखिये आज के समाचार जिनमें केवल एनकाउन्टर झूठा होने की रिपोर्ट
के आधार पर आतंकी को निरपराध बना कर, यहाँ तक कि 'martyr' (शहीद) जैसे
शब्दों का प्रयोग कर सहानुभूति जुटाने की भद्दी कोशिश की गयी है
: पढ़ने के लिए क्लिक करें : DNA India . IBN Live . Indian Express
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