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कमाई डीटीसी की, लाभ निजी कंपनियों को ― दिल्ली परिवहन निगम को करोड़ों का चूना
नई दिल्ली जब योजना किसी और को मुनाफा देने के लिए बने तो घाटा होना लाजमी है? ऐसे ही सौदों की वजह से डीटीसी (दिल्ली परिवहन निगम) को भी करोड़ों का चूना लग रहा है। बसों की खरीद को लेकर तो विवाद उठते ही रहे हैं, लेकिन नई बसों को मरम्मत खर्च देने का मामला भी अपने आप में अटपटा है।
लो फ्लोर बसों की पहली खेप खरीदने पर बसों का मरम्मत खर्च प्रति किलोमीटर 1.60 रुपये से 1.80 रुपये तय हुआ था। दूसरी बार हुई खरीददारी में मरम्मत खर्च दोगुना कर दिया गया। यह खर्च बसों के चलने के साथ साल दर साल बढ़ता ही जाएगा।
इससे लो-फ्लोर बसें मुहैया करा रही कंपनियों को फायदा ही फायदा है। दूसरी ओर बसों में मरम्मत कार्य न होने पर परेशानी यात्रियों को हो रही है। डीटीसी बेडे में शामिल नॉन एसी लो-फ्लोर बस की कीमत 52 लाख रुपये और एसी लो-फ्लोर बस की कीमत 62 लाख रुपये है।
इन बसों की मरम्मत के लिए डीटीसी किलोमीटर स्कीम के तहत भुगतान कर रही है। मरम्मत कार्य के लिए कंपनियों को सालाना भुगतान करीब 72.38 करोड़ रुपये होता है। जबकि यात्रियों को बसों में बंद एसी और खराब पंखों की समस्या के साथ-साथ बसों की कमी के कारण बैठने के लिए सीट तक नहीं मिलती।
सूत्रों के अनुसार डीटीसी में 10 साल पुरानी बसों पर इस समय मरम्मत खर्च करीब 7 से 8 रुपये प्रति किलोमीटर आ रहा है। जबकि इतने साल चलने पर लो-फ्लोर बसों को करीब 19 रुपये प्रति किमी की दर से भुगतान किया जाना तय है।
जिससे जाहिर होता है कि सौदे के दौरान कंपनियों को हर तरफ से फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई। राजधानी में 3700 लो फ्लोर बसें हैं। इनमें से 1280 एसी और 2420 बसें नॉन एसी हैं। एक बस औसतन 154 किलोमीटर चलती है।
इस हिसाब से डीटीसी को मरम्मत के लिए एसी बसों पर सालाना करीब 42.93 करोड़ रुपये और नॉन एसी बसों पर 29.45 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता है।
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