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राष्ट्रीय सुरक्षा और चीन की चुनौती: भावी खतरे का स्पष्ट संकेत

पिछले कुछ वर्षों में भारत की सीमाओं पर लगातार बढ़ते तनाव से
उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियां उस खतरे का स्पष्ट संकेत हैं, जिसका सामना
निकट भविष्य में भारत को करना पड़ेगा। देश के भीतर लगातार बढ़ रही
हिंसा की घटनाएं भी इसी का प्रतिफल हैं। देश में जगह-जगह हो रहे
बम-विस्फोटों, आतंकी हमलों, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं, नक्सलवाद,
आतंकवाद, पड़ोसी देशों से हो रही घुसपैठ आदि को अलग-अलग नहीं देखा
जाना चाहिए। ये सभी कहीं-न-कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और भारत के
सबसे बड़े व खतरनाक पड़ोसी चीन द्वारा भारत को अस्थिर बनाए रखने के
प्रयास ही इन सभी समस्याओं का मूल है।
चीन न केवल भारतीय सीमा पर लगातार सैन्य-दबाव बना रहा है, बल्कि भारत
की सीमा का बार-बार अतिक्रमण करते हुए सैन्य व असैन्य संपत्ति को
क्षति पहुँचा रहा है और सीमावर्ती क्षेत्रों के नागरिकों को आतंकित कर
रहा है। भारत का यह सबसे बड़ा व सबसे खतरनाक पड़ोसी चारों ओर से भारत
को घेरने के सुनियोजित प्रयास कर रहा है। भारत के अन्य पड़ोसी देशों
में चीन की सैन्य-उपस्थिति, वहां उसके द्वारा सैनिक-अड्डों का विकास
और उन देशों के साथ चीन के लगातार बढ़ रहे रणनीतिक संबंधों को गंभीरता
से लिया जाना चाहिए। भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का सशस्त्रीकरण,
पाक-अधिकृत कश्मीर में चल रहे भारत-विरोधी आतंकी कैंपों को संरक्षण व
इस क्षेत्र में चीन की सैन्य-सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में
शासन का सूत्रधार बनने का प्रयास तथा बांग्लादेश, म्यांमार व श्रीलंका
में चीनी सैन्य विशेषज्ञों की उपस्थिति भारत पर हो रही इस चीनी
घेराबंदी के कुछ स्पष्ट उदाहरण हैं।
इसके अलावा सीमा पार से देश में आतंकवाद को बढ़ावा देने, पूर्वोत्तर
के उग्रवादी गुटों को सक्रिय सहयोग प्रदान करने एवं देश के भीतर
नक्सलवाद को प्रोत्साहित करके भारत में आंतरिक विद्रोह व अशांति
फैलाने के चीनी प्रयत्न भारत की एकता व अखंडता को सीधी चुनौती हैं।
इसके अलावा अपने साइबर-योद्धाओं (हैकर्स) के माध्यम से लगातार देश के
सूचना व संचार तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएं एवं भारत के विभिन्न
संवेदनशील स्थानों के आस-पास विकसित होने वाली परियोजनाओं के लिए
अत्यंत कम मूल्य पर निविदाओं के माध्यम से हो रहा चीनी गुप्तचर तंत्र
का प्रवेश भी भारत की सुरक्षा के लिए एक गंभीर संकट है।
दिनांक 14 नवंबर 1962 को भारतीय संसद ने चीन द्वारा उसी वर्ष छीनी गई
38,000 वर्ग किमी भारतीय भूमि को वापस लेने का संकल्प पारित किया था।
इस दिशा में कोई प्रयास तो दूर की बात है, अब तो ऐसा लगता है कि भारत
सरकार यह संकल्प ही भूल चुकी है। दूसरी ओर चीन हमारी 90,000 वर्ग किमी
अतिरिक्त भूमि पर भी अपना दावा जता रहा है और भारत की भूमिका उस पर भी
अत्यंत कमज़ोर दिखाई देती है। चीन के इन दावों और सीमा क्षेत्र में
चीन की सैन्य गतिविधियों को देखते हुए सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए
जैसी आधारभूत संरचनाएं (दूरसंचार, रेल-मार्ग, सड़कें, हवाई-अड्डे आदि)
होने चाहिए, उनके विकास की प्रति भी भारत का रवैया उदासीन व उपेक्षा
का ही दिखाई देता है.
चीन द्वारा एक साथ कई परमाणु बम ले जाने में सक्षम लंबी दूरी की
अंतर्महाद्विपीय मिसाइलों को भारतीय सीमा पर तैनात किया जाना भी भारत
की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। चीन ने उपग्रह-भेदी
प्रक्षेपास्त्र भी विकसित कर लिए हैं, जिनकी सहायता से वह अंतरिक्ष
में घूम रहे किसी भी उपग्रह को कुछ ही मिनटों में नष्ट करके किसी भी
देश की संचार-व्यवस्था को ठप कर सकता है। इसके अलावा उसने जहाज भेदी
प्रक्षेपास्त्रों के भी सफल परीक्षण कर लिए हैं। चीन ने 8500 किमी की
दूरी तक परमाणु बम ले जाने में सक्षम पनडुब्बी प्रक्षेपित बैलेस्टिक
मिसाइल व परमाणु पनडुब्बियां भी विकसित कर ली हैं। इन सभी के प्रभावी
प्रतिकार की शक्ति विकसित करके अविलंब नियुक्त करना भारत की सुरक्षा
के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हालांकि, हमारी सेना सभी प्रकार के खतरों से निपटने में पूरी तरह
सक्षम है और हमारे सैन्य-बलों ने अनेकों बार अपनी इस क्षमता का
प्रदर्शन भी किया है। लेकिन, उनके लिए वांछित सैन्य आधुनिकीकरण व
ढांचागत सुविधाओं के लिए भारत सरकार द्वारा पर्याप्त सहयोग न किए जाने
के समाचार दुर्भाग्यपूर्ण हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत न
केवल अपनी सीमाओं व राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम
उठाए, बल्कि साथ ही चीन के समर्थन से जारी आतंकवाद, नक्सलवाद,
अलगाववाद व अवैध घुसपैठ जैसी सुरक्षा चुनौतियों के विरुद्ध कठोर
कार्यवाही भी करे। एक नागरिक के रूप में हममें से हर एक व्यक्ति का ये
कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के प्रति सजग
रहे और इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिए जन-प्रतिनिधियों व
सामाजिक संगठनों के माध्यम से लगातार दबाव बनाए। अंततः हमें याद रखना
चाहिए कि हम तभी तक स्वतंत्र व सुरक्षित हैं, जब तक यह देश स्वतंत्र व
सुरक्षित बना हुआ है। इसलिए इसकी स्वतंत्रता व सुरक्षा की ज़िम्मेदारी
केवल सीमा पर पहरा दे रहे जवानों या संसद में बैठे जन-प्रतिनिधियों की
ही नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक की है।
(विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित)
सुमंत विद्वांस | लेखक से फेसबुक पर जुडें facebook.com/sumantvidwans
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लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं एवं यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं
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