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एक कथित सेकुलर देश की विडम्बना और विनोद पंडित का आमरण अनशन...
यह एक कथित सेकुलर देश का निवासी होने की विडम्बना है। कश्मीरी हिन्दू हितों के लिए संघर्ष कर रहे ऑल पार्टीज़ माइग्रेंट कोर्डिनेशन कमेटी (APMCC) के प्रमुख श्री विनोद पंडित के आमरण अनशन का आज 14वां दिन है और उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है। विनोद पंडित गुजरात के पोरबंदर में ३० जनवरी से आमरण अनशन पर है। उनकी प्रमुख मांग है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में शारदा पीठ मंदिर, जो 1947 के बाद से बंद है, उसे पुनः खुलवाया जाए और हिन्दू श्रद्धालुओं को शारदा मंदिर की यात्रा सुलभ कराने के लिए भारत सरकार पाकिस्तान से बातचीत करे। उनकी अन्य प्रमुख मांगों में जम्मू और कश्मीर में शारदा पीठ विश्वविद्यालय की स्थापना, गैर प्रवासी कश्मीरी हिंदुओं के लिए एक विशेष रोजगार पैकेज और मंदिरों और हिन्दू धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए एक बोर्ड स्थापना है।
ओह! क्या आपको पता नहीं? पता चलता भी कैसे, हमारा कथित सेकुलर मीडिया तो वेटिकन के पोप की ‘महान त्याग गाथा’ के गान और ‘मासूम’ आतंकी अफजल गुरु के साथ हुई ना-इंसाफ़ी पर छाती कूट-कूटकर आँसू बहाने व्यस्त है। (अफजल की फांसी की खबर देते वक़्त बरखा दत्त का रूआँसा चेहरा तो नहीं भूले होंगे आप?)
फिर भी विनोद पंडित और उनके साथी कश्मीरी हिंदुओं के लिए संघर्ष किए जा रहे हैं! करीब 2 वर्ष पूर्व मुझे विनोद जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन आँखो मे जिजीविषा की धधकती ज्वाला थी। एक आश्वासन था... कश्मीर के हिंदुओं की रक्षा, उनकी खोई हुई गरिमा को वापस लौटाने का। 2 वर्ष के भीतर ही उन्होने अपनी बात सिद्ध कर दिखाई। कश्मीर मे 400 वर्ष पुराने विताल भैरव मंदिर तथा प्राचीन कात्यायनी मंदिर को 22 वर्षों बाद पुनः खुलवाया। साथ ही वर्षों बाद घाटी के हिन्दू बच्चों का समूहिक उपनयन संस्कार सम्पन्न हुआ। और आज जब वे हिंदुओं के लिए 14 दिन से भूखे हैं तब हम उनका साथ नहीं दे रहे।
यदि हिन्दू हितों की रक्षार्थ आमरण अनशन कर रहे विनोद पंडित को कुछ हुआ तो उसके जिम्मेदार हम हिन्दू होंगे। हम हिंदुओं की निष्क्रियता होगी। कश्मीरी हिंदुओं की दर्दभरी चीखें आजतक वादियों मे गूंज रही हैं। हिन्दू विरोध के मनोविकार से ग्रस्त कथित बुद्धिजीवी इन चीख़ों का लुत्फ उठा रहे हैं। अलगाववादी गिद्ध देश के शरीर को टुकड़ा-टुकड़ा नोंच रहे हैं, लूट रहे हैं, चबा रहे हैं फिर भी हम लिजलिजी निष्क्रियता से बाहर आना नहीं चाहते। जब देश के किसी हिस्से मे हिंदुओं पर अत्याचार होता है, हम झट से किसी खोह मे दुबक कर चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं। रेत मे मुंह गड़ाकर खुद को सुरक्षित समझने वाले शतुरमुर्ग हो चुके हैं हम।
हमे फर्क ही क्या पड़ता है? फर्क तो तब भी नहीं पड़ा था जब कश्मीर घाटी के प्रत्येक हिन्दू के घर पर “We want Kashmir without Hindu men but with their women” और “कश्मीर मे रहना है तो अल्लाह-हू-अकबर कहना होगा” जैसे गंदे और घोर सांप्रदायिक नारे लिख दिये गए और अगले ही दिन उन्हे अमल मे लाया गया। हजारों कश्मीरी हिंदुओं का भीषण नरसंहार हुआ। महिलाओं को सड़कों पर घसीटकर उनसे बलात्कार किया गया। उनका अपराध केवल इतना था कि वे हिन्दू थे। और तभी तो... पूरा देश आराम से उनकी बर्बादी को टुकुर-टुकुर ताकता रहा।
हम तो आज भी चुप हैं जब एक हिन्दू हमारे अधिकारों के लिए आमरण अनशन पर बैठा है तब हम रोज़ डे, हग डे, चॉक्लेट डे और ना जाने कौन कौनसे डे मनाने के अति महत्वपूर्ण कार्य मे व्यस्त हैं। मगर एक बार... लाखों भाई-बहनो के आंसुओं को, उनकी आह, उनकी टीस, उनके संघर्ष को भी याद कर लें! विनोद पंडित के इस आंदोलन की वजह से हमे यह स्वर्णिम अवसर मिला है कि हम कश्मीर को फिर से धरती का स्वर्ग बना सकें। वरना हो सकता है कि इस ‘धर्मनिरपेक्ष’ देश में कल आपके या मेरे साथ भी वही सब अत्याचार हों और शेष हिन्दू valentine सप्ताह मनाने मे व्यस्त रहें!!
समय बार-बार अवसर नहीं देता ...
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