देश सेक्युलर प्रधानमंत्री ही चाहता है : राशिद अल्वी

Published: Monday, Oct 03,2011, 11:47 IST
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सीएजी, भ्रष्टाचार, बंगारू लक्ष्मण, निशंक, येद्दयुरप्पा

2जी घोटाले पर सरकार में घमासान मचा हुआ है। इसकी आंच अब प्रधानमंत्री तक पहुंच रही है। क्या उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए? पॉलिसी व भ्रष्टाचार दो अलग-अलग चीजें हैं। पॉलिसी जनता के फायदे के लिए बनी थी। फायदा हुआ भी। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट के शुरू में खुद लिखा है कि जो लक्ष्य 11वीं योजना के अंत तक हासिल होना था, वह दो साल पहले ही पूरा हो गया। 2जी का सारा मामला अदालत में है। अगर कोई भ्रष्टाचार में शामिल पाया जाता है तो अदालत खुद दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी।

नोट के बदले वोट मामले में खुद को व्हिसिल ब्लोअर बताने वाले जेल जा रहे हैं, लेकिन जिस सरकार को लाभ मिला उसकी जांच क्यों नहीं हो रही है? भाजपा के सांसद रुपये लेकर लोकसभा में गए। वहां बहुमत के लिए सरकार को उनके वोट की जरूरत नहीं थी और न ही उन्होंने सरकार के पक्ष में मतदान किया। अदालत ने भाजपा से जुड़े दो सांसदों व वरिष्ठ नेता के सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी को जेल भेज दिया। अदालत के फैसले से कोई इंकार कैसे कर सकता है।

मामले में स्टिंग की बात खुद आडवाणी खुद कह चुके हैं। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार को अस्थिर करने के लिए यह भाजपा की साजिश थी। भाजपा मध्यावधि चुनाव की संभावना भी देख रही है। इस बीच कांग्रेस में भी प्रधानमंत्री के बदलाव की बात चल रही है। क्या कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं? राहुल गांधी आज भी सिर्फ कांग्रेस के ही नहीं, बल्कि देश के नेता हैं।

मौजूदा प्रधानमंत्री अभी अपने पद पर हैं। रही बात भाजपा की, तो वह अपने भीतर ही एक ऐसी लड़ाई लड़ रही है, जिसकी दूर-दूर तक कोई गुंजाइश ही नहीं हैं। उसे सोचना चाहिए कि वह 65 साल में सिर्फ एक बार 28 पार्टियों को मिलाकर सरकार बना पाई। वाजपेयी को एक बार जनता ने मौका दे दिया, लेकिन यह देश सेक्युलर प्रधानमंत्री ही चाहता है। आडवाणी की यात्रा भाजपा की यात्रा है, लेकिन उसे हरी झंडी नीतीश कुमार दिखा रहे हैं। इसे भाजपा के अंदरूनी झगड़े का असर कहा जाए या भविष्य के लिए विपक्ष की रणनीति?

आडवाणी ने जब-जब रथयात्रा निकाली, उसका उद्देश्य नहीं पूरा नहीं हुआ। उनकी यात्रा का मकसद होता कुछ है और वह बताते कुछ और हैं। इस बार भ्रष्टाचार को बहाना बनाया है। वैसे यह प्रकरण बंगारू लक्ष्मण, निशंक, येद्दयुरप्पा व रेड्डी ब्रदर्स के बगैर पूरा ही नहीं होता। आडवाणी यदि वाकई गंभीर हैं तो यह यात्रा उन्हें कर्नाटक से निकालनी चाहिए। अन्ना हजारे व रामदेव के आंदोलनों का क्या असर होगा?

रामदेव के आंदोलन में भाजपा कार्यकर्ता मंच पर थे, जबकि अन्ना के आंदोलन के पीछे आरएसएस के लोग थे। उससे कांग्रेस व सरकार को कोई नुकसान नहीं। देश जानना चाहता है कि रामदेव कैसे संत हैं। उनके पास 1100 करोड़ की संपत्ति कहां से आई?

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