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आजकल टीवी चैनलो पर बाबा रामदेव की बुराई करने का एक चलन सा चल निकला है। जो कोई चैनल आप चला दो, एक ही राग है-- बाबा चोर है, ठग है... धोखेबाज़ है, राजनीति करता है और न जाने क्या-क्या! कई बार तो ऐसा लगता है कि मान लो जैसे कि पाकिस्तान तो अब सुधर गया है और जरदारी साहब भारत को अपना बड़ा भाई मान बैठे हैं... असम से सारे बंगलादेशी घुसपैठिये वापिस लौट गए हैं... 7 रेसकोर्स से दूध की नदियाँ बह रही है... मतलब कहो तो आनंद ही आनंद है... भ्रष्टाचार समाप्त, टूजी का पैसा वापिस... कोयला घोटाले की कालिख साफ़... सब कुछ चकाचक... और भैया अब तो एक ही समस्या बची है और वो है यू हरयाणवी बाबा!
सहसा मुझे पुराने दिन स्मरण हो गए... बाबा टीवी पर नए-नए आने शुरू हुए थे और पतंजलि योगपीठ का पहला चरण पूरा ही हुआ था बात है 6 अप्रैल 2006 की... पतंजलि योगपीठ के पहले चरण का उद्घाटन था और जानते हो भैया कौन आया था... भारत के उपराष्ट्रपति... अब लोग कहेंगे कि तो क्या हुआ, तब तो उपराष्ट्रपति थे भैरो सिंह शेखावत और वो थे संघ के एजेंट... और बाबा तो घोषित संघी है, एक संघी के यहाँ दूसरा संघी आया तो क्या हुआ भला? यहीं तो धोखा खा गए न... भैया, भारत में 28 राज्य हैं न... उन में से 17 राज्यों के मुख्यमंत्री भी आये थे... अब भला 17 राज्यों में तो भाजपा वालो के बाप के बसकी भी न है सरकार बनाना... और कम्युनिस्ट भगवा चोले वाले के यहाँ आवेंगे न... तो बाकि मुख्यमंत्री कौन सी पार्टी के... उसी के, जिसका महासचिव आजकल खुले में रोज़ बाबा को चोर-डकैत-ठग और न जाने क्या-क्या कहता है... फिर 2009 में जब योगपीठ के दूसरे चरण का उद्घाटन हुआ तो 13 राज्यों के मुख्यमंत्री थे... पतंजलि मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन किया कांग्रेस के मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने और भारत के सबसे बड़े फ़ूड पार्क का उद्घाटन किया 11 मुख्यमंत्रियों के साथ दूसरे कांग्रेसी सुबोधकांत सहाय ने।
तो भैया, मैं पूछना चाहता हूँ कि यू बाबा बावला है के?? इसे क्या ज़रूरत पड़ी थी, मार खाने की, पंगा लेने की... ? रहता आराम से, बढ़िया फाइव-स्टार आश्रम है ही, सारे मंत्री-नेता-अधिकारी-उद्योगपति चेले... जो चाहो, करवा लो.फिर काहे कू मैदान में उतर पड़ा... सोचना पड़ेगा...
ये शासन व्यवस्था बाबा का कुछ न बिगाड़ सकती थी... ये खा रही थी हमको... और हम मजे में बैठे हैं... बाबा ११ लाख किलोमीटर चल के आया है... रोज़ धमकियाँ मिलती हैं... जान पर खतरा है... सब से पंगा ले लिया है पर हिल न रहा... क्यों? क्योंकि वो जानता है की सवाल माँ भारती के भविष्य का है... और हम शांत रह जाए क्या?
विदेशी कंपनियां किस की कमाई बाहर ले जाती हैं -- बाबा की?
ये काला धन किस का हक मार के जमा हुआ है -- बाबा का?
विदेशी शासन व्यवस्था किस का अहित कर रही है -- बाबा का?
इस भूल में न रहना भैया... ये तुम्हारा अधिकार है, जिस पर पिछले ६५ सालो में हमला हुआ है... ये लोग तुम्हारा हक मारे बैठे हैं... तुम्हारे-हमारे-सबके भविष्य पर चोटें की जा रही है... कब तक शांत रहोगे? अगर ये आन्दोलन मर गया, तो बाबा का तो जादा कुछ न बिगड़े, वो तो सब कुछ दांव पर लगाये बैठा है... दुर्गति हमारी ही होनी है... जब आने वाली पीढियां पूछेंगी न के "पिताजी, जब भारत को मुक्त करने की लड़ाई चल रही थी, तो आप कहा थे?'' तो क्या कहोगे? के बेटा, मैं तो सरकार के डर से दुबक के बैठा था"| क्षमा नहीं मिलेगी... आज हम सब का कर्त्तव्य है की भारत माँ के गौरव की पुनः स्थापना के इस महान आन्दोलन में सहभागी बनें ताकि आने वाली पीढ़ी को कुछ गर्व से बताने लायक बन पाएं। परिणाम की चिंता नहीं, वो तो शुभ ही होगा... ह्रदय में शुभ संकल्प लें के जब तक माँ भारती को पुनः विश्व सिंहासन पर सुशोभित नहीं करेंगे, चैन नहीं लेंगे...
शुभ्र ह्रदय की प्याली में, विश्वास दीप निष्कंप जलाकर...
कोटि-कोटि पग बढे जा रहे, तिल-तिल जीवन गला-गला कर...
जब तक ध्येय न पूरण होगा, तब तक पग की गति न रुकेगी...
आज कहे जो चाहे दुनिया, कल को झुके बिना न रहेगी...
वन्दे मातरम
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