वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा है कि प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के योग्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दादा को राष्ट्र..
चाइना बाजार के रूप में तब्दील हुआ सदर बाजार, 50 फीसदी हिस्से में चीनी वस्तुओं का कब्जा
सुधीर कुमार, नई दिल्ली देश के महत्वपूर्ण व्यवसायिक स्थलों में से एक सदर बाजार चाइना बाजार में तब्दील हो गया है। चीन से आयातित सामानों का यह भारतीय हब बन गया है। इस बाजार से न केवल दिल्ली, बल्कि देश के कई हिस्सों में सामानों की आपूर्ति की जाती है। इस बाजार के 50 फीसदी हिस्से में चीनी वस्तुओं का कब्जा है। चीन के बढ़ते दबदबे का ही कमाल है कि यहां के व्यापारियों का चीन जाना आम हो गया है।
कारोबारी चीन की व्यापारिक नीतियों से अभिभूत नजर आते हैं। करीब छह वर्ष पहले तक यहां व्याप्त असुविधाओं के कारण सदर बाजार बाजार का रूतबा घटने लगा था। बाजार में खरीदारों की कमी होने लगी थी। लेकिन उसी दौरान चीनी सामानों का आयात शुरू हुआ। इसने यहां के बाजार में जान डाल दी। अब तो हालत यह है कि यहां बिकने वाला कोई ऐसा सामान नहीं बचा जो चीन से न आ रहा हो। यही वजह है कि यहां यह जुमला आम हो गया है कि सुई से लेकर हवाई जहाज तक चीन से ही आ रहा है।
यहां के बाजारों में घूमने के बाद तो एकबारगी ऐसा लगता है कि पूरा बाजार ही चीन के माल से अटा पड़ा है। मोबाइल व खिलौनों में तो चीन का दबदबा पहले से ही है। अब बेल्ट, सजावटी सामान, बिजली के उपकरण, मूर्तियां, टेलरिंग मेटेरियल, गुब्बारे, आर्टिफिशियल ज्वेलरी और स्टेशनरी पर भी चीन का कब्जा हो गया है।
फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन परमजीत सिंह पम्मा कहते हैं कि इनके अलावा फर्नीचर, छाता, क्राकरी, जूता, बैटरी, घड़ी, सजावटी फ्लावर के अलावा टॉफी तक चीन से आ रही हैं। फेडरेशन के अध्यक्ष पवन कुमार कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सदर बाजार पूरी तरह से चीन के माल पर निर्भर है। यहां भारतीय उत्पाद भी बहुतायत में मिलते हैं।
यह जरूर है कि सदर बाजार 50 फीसदी तक चीनी सामानों पर आधारित हो गया है। वह कहते हैं कि एक तो आयात के बाद भी चीन का माल भारतीय उत्पादों से 20 से 30 फीसदी तक सस्ता है। कुछ मामलों में यह प्रतिशत और भी ज्यादा है। इसके अलावा वहां के माल की क्वालिटी भारतीय उत्पादों से अच्छी है। जब उनसे पूछा गया कि क्या चीन के सामान की क्वालिटी घटिया है? वह कहते हैं कि जो कारोबारी वहां से घटिया सामान लाते हैं वही खराब होता है।
कई कारोबारी वहां से रिजेक्ट माल भी ले आते हैं। कुमार कहते हैं कि चीन की व्यापारिक नीतियों की वजह से वहां का माल सस्ता है। चीन सरकार व्यापारियों के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखती है। उन पर करों का बोझ नहीं है। इसके उलट भारत सरकार का व्यापार के प्रति रूख उदासीन है। यहां के कारोबारी और उत्पादनकर्ता दर्जनों करों के बोझ तले दबे हैं। एक व्यापारी कहते हैं कि एक शर्ट बनाने में भारत में धागे से लेकर, बटन, कपड़ा, टेलरिंग मैटेरियल, पैकेजिंग के साथ-साथ तैयार माल पर भी कई तरह का टैक्स देना पड़ता है। चीन में ऐसा नहीं है।
Share Your View via Facebook
top trend
-
प्रणब को राष्ट्रपति बनाना राष्ट्रीय अपमान - राम जेठमलानी
-
कश्मीर में कर्मयोगी सम्राट अवन्तिवर्मन का राज्यकाल सुरक्षा और विकास का स्वर्ण युग
शांति, विकास और न्याय की दृष्टि से कश्मीर के इतिहास में अवन्तिवर्मन का अठ्ठाइस वर्षों का शासनकाल विशेष महत्व रखता है। इस..
-
गोरखपुर में संघ की बैठक प्रारंभ, निशाने पर चीन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मण्डल की बैठक गोरखपुर में शुरू हो चुकी है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्..
-
संघ और भाजपा में दम है तो रोके सांप्रदायिक हिंसा बिल : सलमान खुर्शीद
केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एन.ए.सी) क..
-
पांडवों की कुलदेवी मां हथीरा देवी
पांडवों द्वारा कुरु भूमि पर धर्मरक्षा और न्याय के लिए महाभारत का भीषण युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिक..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)