बसंत अब लगभग बिदाई की ओर है | होली के बाद अब गर्मी की मौसम की भी शुरुआत होने लगी है| इसके साथ ही अब रोज की दिनचर्या में ..
हर दिन 290 करोड़ लीटर सीवेज करता है गंगा को मैला
हमारे ग्रंथों में कहा गया है कि कलियुग के ५००० (5000) वर्षों बाद
गंगा नहीं रहेगी। चाणक्य नीति में भी इसका उल्लेख है। कलियुग को ५०००
वर्ष हो चुके हैं और गंगा केवल नाम की मोक्षदायिनी जगपाविनी रह गयी
है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी की बैठक को
संबोधित करते हुए बताया कि गंगा में प्रतिदिन २९० (290) करोड़ लीटर मल
आ कर मिलता है। यह मात्रा इतनी अधिक है कि मल संशोधन संयंत्रों के लिए
इसे शोधित विषहीन कर पाना संभव नहीं है जिनकी कुल क्षमता ११० (110)
करोड़ लीटर प्रतिदिन की ही है। यानी कि २९० (290) में से १८० (180)
करोड़ लीटर मल बिना शोधित हुए ही गंगा में रोज मिल रहा है।
प्रधान मंत्री ने राज्यों से अपेक्षा जताई कि वे औद्योगिक प्रदूषण,
अशोधित मल, एवं गंगा के पारिस्थिकीय संतुलन पर ध्यान दें। गंगा भारत
के ११ (11) राज्यों में बसी ४०% (40%) भारतीय जनसँख्या को जीवित रखती
है। मनमोहन सिंह ने कहा कि मल संशोधन संयंत्र लगाने के लिए धन उपलब्ध
है और राज्यों को आगे आना चाहिए। हालांकि केंद्र को भी गंगा की याद तब
आई है जब आईआईटी दिल्ली के ८० (80) वर्षीय सेवा निवृत प्राध्यापक जी
डी अग्रवाल २ (2) महीने तक आमरण उपवास पर बैठे रहे। इससे पहले साध्वी
उमा भारती भी गंगा को बचाने के आन्दोलन में लगी रही हैं और उन्होंने
सोनिया गाँधी से मिल कर कुछ करने की प्रार्थना भी की थी। सोनिया ने
उन्हें आश्वासन दिया था।
लेकिन केवल मल ही समस्या नहीं है। औद्योगिक प्रदूषण उससे अधिक बड़ी
समस्या है क्योंकि वो विषैले होते हैं और उनका जैविक विघटन भी नहीं
होता। गंगा की सफाई के लिए पहले ही २६०० (2600) करोड़ रुपये के
प्रोजेक्ट शुरू करने की अनुमति दी जा चुकी है पर परिणाम सबके सामने
है।
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