अजय पांडेय, नई दिल्ली। एक तरफ जहां कांग्रेस के बड़े नेता नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल को खारिज कर रहे हैं, वहीं केंद्र ने..
मोदी नहीं होते, तो कोई और होता : नरेन्द्र मोदी "प्रवृत्ति" का उदभव एवं विकास...
एक संयुक्त परिवार है, जिसमें अक्सर पिता द्वारा बड़े भाई को यह कहकर दबाया जाता रहा कि, "तुम बड़े हो, तुम सहिष्णु हो, तुम्हें अपने छोटे भाई को समझना चाहिए और उसकी गलतियों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए…"। जबकि उस परिवार के मुखिया ने कभी भी उस उत्पाती और अड़ियल किस्म के छोटे बेटे पर लगाम कसने की कोशिश नहीं की…।
इस बीच छोटे बेटे को भड़काने वाले और उसके भड़कने पर फ़ायदा उठाने वाले बाहरी तत्त्व भी इसमें लगातार घी डालते रहे… और वह इसका नाजायज़ फ़ायदा भी उठाने लगा तथा गाहे-बगाहे घर के मुखिया को ही धमकाने लगा। यह सब देखकर बड़े बेटे के बच्चे मन ही मन दुखी और क्रोधित थे, साथ ही घर की व्यवस्था भंग होने पर, पिता द्वारा लगातार मौन साधे जाने से आहत भी थे। परन्तु बड़े बेटे के संस्कार और परिवार को एक रखने की नीयत के चलते उसने (एक-दो बार को छोड़कर) कभी भी अपना संतुलन नहीं खोया…।
IBTL Columns
मित्रों… मैंने यहाँ नरेन्द्र मोदी "प्रवृत्ति" शब्द का उपयोग किया है, क्योंकि अब नरेन्द्र मोदी सिर्फ़ एक "व्यक्ति" नहीं रहे, बल्कि प्रवृत्ति बन चुके हैं, प्रवृत्ति का अर्थ है कि यदि नरेन्द्र मोदी नहीं होते, तो कोई और होता… मोदी तो निमित्त मात्र हैं। यह तो प्रतीकात्मक कहानी है… अब आगे…
अमूमन 1984 (अर्थात इन्दिरा गाँधी की हत्या) तक भारत एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष मॉडल पर चलता रहा। 1984 में इन्दिरा की हत्या के बाद हुए दंगों में देश ने पहली बार "सत्ता समर्थित" साम्प्रदायिकता का नंगा नाच देखा। इसके बाद देश ने बड़ी उम्मीदों के साथ एक युवा राजीव गाँधी को तीन-चौथाई बहुमत देकर संसद में पूरी ताकत से भेजा। भाजपा सिर्फ़ 2 सीटों पर सिमटकर रह गई जबकि कई अन्य पार्टियाँ लगभग साफ़ हो गईं। हिन्दू-सिखों में जो दरार आई थी, जल्दी ही भर गई…
इसके बाद आया सुप्रीम कोर्ट का वह बहुचर्चित फ़ैसला, जिसे हम "शाहबानो केस" के नाम से जानते हैं। देश का आम नागरिक इस मुद्दे को लेकर कोई विशेष उत्साहित नहीं था, लेकिन जब राजीव गाँधी ने तीन-चौथाई बहुमत होते हुए भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेके और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को संसद के जरिए उलट दिया…। धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं के मन पर यही वह पहला आघात था, जिसने उसके इस विश्वास को हिला दिया कि "राज्य सत्ता" और "कानून का शासन" देश में सर्वोपरि होता है… क्योंकि उसने देखा कि किस तरह से मुस्लिमों की तरफ़ से उठने वाली धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी "आरिफ़ मोहम्मद खान" जैसी आवाज़ों को अनसुना कर दिया गया…।
इस बिन्दु को हम नरेन्द्र मोदी प्रवृत्ति का उदभव मान सकते हैं…
हमने अब तक कांग्रेस के "साम्प्रदायिक इतिहास" और दोनो हाथों में लड्डू रखने की संकुचित प्रवृति के कारण देश के धार्मिक ताने-बाने और संविधान-कानून का मखौल उड़ते देखा… आईए अब 1989 से आगे शुरु करें…
1989 के लोकसभा चुनाव वीपी सिंह द्वारा खुद को “शहीद” और “राजा हरिश्चन्द्र” के रूप में प्रोजेक्ट करने को लेकर हुए। इसमें वीपी सिंह के जनता दल ने भाजपा और वामपंथियों दोनों की “अदभुत बैसाखी” के साथ सरकार बनाई, लेकिन जनता दल का कुनबा शुरु से ही बिखराव, व्यक्तित्त्वों के टकराव और महत्त्वाकांक्षा का शिकार रहा। इस चुनाव में विश्व हिन्दू परिषद का सहयोग करते हुए भाजपा ने अपनी सीटें, 2 की संख्या से सीधे 85 तक पहुँचा दीं। चन्द्रशेखर की महत्त्वाकांक्षा के चलते जनता दल में फ़ूट पड़ी और घाघ कांग्रेस ने अपना खेल खेलते हुए बाहरी समर्थन से चन्द्रशेखर को प्रधानमंत्री भी बनवाया और सिर्फ़ कुछ महीने के बाद गिरा भी दिया… इस तरह देश को 1991 में जल्दी ही चुनावों का सामना करना पड़ा।
वीपी सिंह सरकार के सामने भी इस्लामी आतंक का स्वरूप आया, जब जेकेएलएफ़ ने कश्मीर में रूबिया सईद का अपहरण किया और देश के गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने वीपी सिंह के साथ मिलकर आतंकवादियों के सामने घुटने टेकते हुए अपनी बेटी को छुड़ाने के लिए पाँच आतंकवादियों को छोड़ दिया। हालांकि फ़ारुक अब्दुल्ला ने इसका विरोध किया था, लेकिन उन्हें बर्खास्त करने की धमकी देकर सईद ने अपनी बेटी को छुड़वाने के लिए आतंकवादियों को छोड़कर भारत के इतिहास में “पलायनवाद” की नई प्रवृत्ति शुरु की…।
हालांकि अभी भी यह रहस्य ही है कि रूबिया सईद का वास्तव में अपहरण ही हुआ था, या वह सहमति से आतंकवादियों के साथ चली गई थी, ताकि सरकार को झुकाकर कश्मीरी आतंक को मदद की जा सके। यही वह दौर था, जब कश्मीर से पण्डितों को मार-मारकर भगाया जाने लगा, पण्डितों को धमकियाँ, उन पर अत्याचार और हिन्दू महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी थीं…। धीरे-धीरे कश्मीरी हिन्दू घाटी से पलायन करने लगे थे। आतंकवादियों के प्रति नर्मी बरतने और पण्डितों के प्रति क्रूरता और उनके पक्ष में किसी भी राजनैतिक दल के ने आने से शेष भारत के हिन्दुओं के मन में आक्रोश, गुस्सा और निराशा की आग बढ़ती गई, जिसमें राम मन्दिर आंदोलन ने घी डाला…
भाग-2 में जारी ... लाखों कश्मीरी हिन्दू पलायन कर शरणार्थी कैम्पों में समा चुके थे
Share Your View via Facebook
top trend
-
दिल्ली सरकार को सूरत शहर की तर्ज पर चमकाने की सलाह
-
बाबा रामदेव ने जमकर किया कांग्रेस विरोधी प्रचार: हिसार उपचुनाव
योगगुरू बाबा रामदेव ने देशवासियों का आह्वान किया कि वे आगामी लोकसभा व राज्य विधानसभा के चुनावों में भ्रष्ट, बर्बर, तानाशाह..
-
‘मुसलमान पटाओ’ का पैंतरा, कांग्रेस का नया दांव
कांग्रेस ने इस बार गजब का दांव मारा है| यह दांव वैसा ही है, जैसा कि 1971 में इंदिराजी ने मारा था| गरीबी हटाओ! गरीबी हटी या..
-
अन्ना-आंदोलन कोरा गुब्बारा तो नहीं
अन्ना टीम के लोगों ने जब से हिसार पर मुंह खोलना शुरू किया है, कई तात्कालिक और मूलभूत सवाल उठ खड़े हुए हैं। जैसे यह कि हिसा..
-
तीस्ता सीतलवाड के पूर्व सहयोगी ने नानावटी आयोग को सौंपे झूठे शपथपत्र के प्रमाण
तीस्ता सीतलवाड कोई अपरिचित नाम नहीं है | ये वही है जिन्हें मीडिया के एक वर्ग ने 'न्याय की लड़ाई लड़ रही वीरांगना..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)